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समाज की हर कुंठा का समाधान है 'योनी'

Special Coverage News
31 July 2017 2:04 PM GMT
समाज की हर कुंठा का समाधान है योनी
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The solution of every frustration of society is vagina
एक लड़का एक लड़की को पसंद करता है। लड़की पसंद नहीं करती तो लड़का उसका बलात्कार करके अंगभंग कर देता है और फिर उसके सिर को गाड़ी से कुचल देता है। एक लड़की बहुत बहादुर बनती है, छींटाकशी बर्दाश्त नहीं करती तो उसे शाम में ऑफिस से लौटते वक्त 'सबक सिखाया' जाता है और उसका बलात्कार हो जाता है। दो घरों में दुश्मनी होती है, तोड़फोड़ होती है, आग लगायी जाती है। इससे बदला पूरा नहीं होता तो उन घरों की महिलाओं का बलात्कार हो जाता है। दुश्मन घर की महिलाओं की योनि में घुस जाना ही जीत का प्रतीक है। लड़कियां शौच के लिए जाती हैं तो बलात्कार हो जाता है और वो नीम के पेड़ की शोभा बन जाती हैं। लड़कियां स्कूल के लिए जाती हैं तो बलात्कार हो जाता है और सड़क पर फेंक दी जाती हैं।

बांग्लादेश के विभाजन की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना बांग्ला महिलाओं की योनि में घुसकर विजयी पताका फहरा रही थी। ये अचूक तरीका था जिससे बांग्लादेश कभी विभाजित नहीं हो सकता था क्योंकि उन औरतों के गर्भ में पल रहे हज़ारों बच्चे पाकिस्तानी 'योद्धाओं' के थे। बोको हरम को पश्चिमी सभ्यता और शिक्षा से आपत्ति होती है तो 276 स्कूली लड़कियां अगवा कर ली जाती हैं जो कभी वापस नहीं आतीं।
इस समाज को हर समस्या का रामबाण इलाज मिल गया है। हर कुंठा का समाधान है योनि। यहीं आकर इस ब्रह्मांड को असीम सुख की प्राप्ति होती है। क्रोध, दंभ, अहंकार, प्रतिशोध, हिंसा, नफ़रत और अनंत सुख के आग की पराकाष्ठा यहीं आकर शांत होती है। भारत ने 104 उपग्रह ब्रह्मांड में पहुंचा दिये और मंगल ग्रह तक पहुंच चुका , पर ये चूतिया समाज अब भी योनि में ही घुसने की होड़ लगा रहा है।
मुस्कुराती लड़कियों को प्रमाणपत्र मिल जाते हैं और बोल्ड लड़कियों को उपलब्ध मान लिया जाता है। हम वहां नारीवादी हो रहे हैं जहां रेप के वीडियो (आगरा में) 150 रुपये में धड़ल्ले से बिक रहे हैं और लोग उत्सुकतावश खरीद रहे हैं। अब उन्हें साधारण पॉर्न नहीं देखना, रेप वाला चाहिए।
ऐमेज़ॉन एक ऐश ट्रे बनाता है जिसे ट्रायपोलर क्रियेटिव ऐश ट्रे नाम दिया जाता है। इस ट्रे में एक महिला नग्न अवस्था में लेटी है, आपकी सिगरेट जैसे-जैसे खत्म होगी, उसकी राख को अलग करने के लिए आप उसे उसकी योनि में डालेंगे। रॉड, बोतलें, लाठियां सब घुसायी जाती रही हैं। आपकी मर्ज़ी है, आप वो कर सकते हैं जिससे आपको सुकून मिले। महिलाएं कर ही क्या पाती हैं चिल्लाने के सिवा। ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना की तो औरतों का सर्वस्व निर्धारण करने का अधिकार आपको ही दिया था।
ख़ैर, जब बोतल से लेकर लाठी तक वहां घुसायी जा सकती है तो सिगरेट क्यों नहीं! यही है इस ट्रे की 'क्रियेटिविटी'। मैं सोच भी नहीं पा रहा हूं कैसे किसी व्यक्ति ने ऐश ट्रे के इस मॉडल का प्रपोज़ल रखा होगा और किस मंशा के तहत टीम ने उसे अनुमति दी होगी। इसे किस आधार पर रचनात्मक कहने की ज़हमत उठायी गयी है! हाड़-मांस के लोथे के अलावा औरतों का कोई वजूद नहीं है? क्या स्त्रियां सिर्फ और सिर्फ़ भोग्या हैं ?
क्या आपको आनंदविभोर करने के अतिरिक्त इनके हिस्से कोई काम नहीं आया! क्या आपकी इस तृष्णा मात्र के लिए ही स्त्रियां आपकी पूरक हैं! शर्म आती है ऐसी रचनात्मकता पर! लानत है उस पूरी टीम पर जिसने इसे पास कर बाज़ार में उतारने की अनुमति दी। जिस समाज को योनि में आकर ही सुकून मिलता है उसे आप न घर-परिवार की दुहाई देकर सुधार सकते हैं और न सेक्स एजुकेशन देकर।
बधाई हो! आपकी रचनात्मकता ने हमारे पास कोई विकल्प नहीं छोड़ा है।
By- रीवा सिंह टाइम्स ग्रुप में सीनियर कॉपी एडिटर हैं.
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