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सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला: निजता मौलिक अधिकार पर मोदी सरकार को झटका

सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला: निजता मौलिक अधिकार पर मोदी सरकार को झटका
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Supreme Court gives historic judgment: Modi's government blow on original fundamental rights

राइट टु प्रिवेसी पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह संविधान के आर्टिकल 21 (जीने के अधिकार) के तहत आता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला किया।

इन नौ जजों की समिति ने सुनाया फैसला

चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम सप्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अब्दुल नजीर ने सुनाया फैसला.

कोर्ट ने 1954 में 8 जजों की संवैधानिक बेंच की एमपी शर्मा केस और 1961 में 6 जजों की बेंच के खड्ग सिंह केस में दिए फैसले को पलट दिया। इन दोनों ही फैसलों में इसे मूलभूत अधिकार नहीं माना गया था। हालांकि, ताजा फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि निजता का अधिकार कुछ तर्कपूर्ण रोक के साथ ही मौलिक अधिकार है। कोर्ट के मुताबिक, हर मौलिक अधिकार में तर्कपूर्ण रोक होते ही हैं।

फैसला कितना जरूरी है
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान बेंच को यह तय करना था कि क्या भारतीय संविधान में राइट टु प्रिवेसी यानी निजता का अधिकार मौलिक अधिकार के तहत आता है? याचिकाकर्ता की मांग थी कि संविधान के अन्य मौलिक अधिकारों की तरह ही निजता के अधिकार को भी दर्जा मिले।

आधार का मामला इस केस से अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हुआ था। इस फैसले से आधार की किस्मत नहीं तय होगी। आधार पर अलग से सुनवाई होगी। बेंच को सिर्फ संविधान के तहत राइट टु प्रिवेसी की प्रकृति और दर्जा तय करना था।

शिव कुमार मिश्र

शिव कुमार मिश्र

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