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नई दिल्ली: भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का यह कहना कि वन्दे मातरम कहने के लिये किसी को बाध्य नही किय जा सकता है. यह बात सोलह आने सच है.
लेकिन नकवी साहब से यह अवश्य पूछना चाहिए कि मस्जिद मे प्रवेश करते वक्त सर पर रूमाल या कपडा ढ़कना का कौन सा नियम है ? क्या वे खुद या अन्य कोई व्यक्ति बगैर कपडा ढके मस्जिद मे प्रवेश कर सकते है ? जब मस्जिद के लिये कपडा ढँकना अनिवार्य है तो देश के लिये वन्दे मातरम से गुरेज क्यो ?
देश में जब जो समस्या आई उसको राजनैतिक लोंगों ने वोट की खातिर एक नया मोड़ दिया. नासमझ जनता उनके पीछे चल दी. यही इस भारत का इतिहास है. जब तक हम लोग अपनी बुराई और भलाई को नहीं सोचेंगे तब तक कुछ नहीं होगा.
अभी जदयू के मुस्लिम मंत्री ने सिर्फ एक बार जय श्री राम बोल दिया तो उनको सरेआम माफ़ी मंगनी पड़ी और बाकायदा दुबारा कलमा भी पढ़ाया गया. निकाह भी दुबारा हुआ. तब मुस्लिम धर्म में उनकी वापसी हुई.
और एक हमारा हिन्दू धर्म है हमारे ही देवी देवताओं और हमारे धर्म को अपमानित करने वाले नेताओं को कोई कुछ भी नहीं बोल सकता है. इसे कहते है एकजुटता. हम कई टुकड़ों में बंटे है. क्योंकि हम दलित, पिछड़े और सवर्ण की बात करते है. हम ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य, शुद्र की बात करते है. हम वोट की खातिर बामन , ठाकुर , अहीर लोधी . जाटव , कोरी , कुशवाहा की बात करते है. जब सब आपस में बंट जाते है तब हिन्दू धर्म की बात करते है. जब तक हम जातीयता से बाहर नहीं निकलेंगे तब तक हम और हमारा समाज ऐसे ही वैकफुट पर आता रहेगा.
जबरदस्ती बंदेमातरम् बुलवाने से अच्छा यही हो कि हमें जानकारी हो कि ये लोग वंदेमातरम् के अनुयाई नहीं है. लेकिन हम टोपी पहनकर रोजा अफ्तार जरुर कराएँगे लेकिन नवदुर्गा में कोई फलाहार क्यों नहीं कराता क्या कारण है? अगर समझ में आये तो जरुर बताना . आगे का विश्लेष्ण अगले भाग में...