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तुम मर क्यों नहीं जाती रूकईया, बदहवास सी पीडिता आंसू निकल आयेंगे!
रूकईया तुम मर क्यों नहीं जाती। अपनी डेढ़ साल की बेटी को लेकर जाओ किसी ट्रेन के आगे कूद जाओ। तुम्हें नहीं पता कि तुम्हें यहां न्याय नहीं मिल सकता। एक बार न्याय उसे मिल सकता है जो किसी इंसान के जुल्म का शिकार हो। लेकिन तुम, तुम्हारी दुधमुंही बच्ची और तुम दोनों जैसी हजारों औरतें तो मजहब का शिकार हो।
तुम सब सामुहिक आत्महत्या कर लो। यह कोर्ट, यह सरकार मजहब के आगे बेबस है। घुटने टेकते हैं ये मजहबी कानूनों के आगे।देखा नहीं तुमने, अभी परसों ही ट्रिपल तलाक और हलाला का विरोध करने वाली आधा दर्जन औरतों को बीच लखनऊ में कैसे पीटा गया। वे पुलिस को फोन करती रहीं, पर द्रौपदी और न जाने क्या-क्या उदाहरण देकर तुम्हारे साथ खड़ा होने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री की पुलिस उनकी मदद के लिए न आई। अरे मदद तो छोड़ो, उनकी एक अदद शिकायत भी चौबीस घंटे तक दर्ज न हो सकी।
तुम मर ही जाओ रूकईया। पर पहले अपनी बेटी का गला घोंट देना। इस मजहबी दुनिया की आबोहवा में उसके लिए सिर्फ जहर भरा है जहर। काश कि तुम गढ़, हापुड़ की उस रिजवाना जैसा कदम पहले ही उठा लेती जिसने ऐसे मजहब से ही तौबा कर लिया, जहां औरतें इंसान नहीं खेतियां हैं।
चन्दन श्रीवास्तव