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अखिलेश ने मानी ये बातें तो कोई नहीं रोक सकता 2017 में सरकार बनाने से

Special Coverage News
22 July 2016 4:36 AM GMT
अखिलेश ने मानी ये बातें तो कोई नहीं रोक सकता 2017 में सरकार बनाने से
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उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की सत्ता वापसी इतनी आसान नहीं है, जितनी आसान उसके नेता एवं सपा मुखिया मुलायम सिंह मान रहे हैं. ऐसा नहीं कि समाजवादी पार्टी इसके पहले जब सत्ता में रही, उस समय उसने विकास एवं जनहित के कार्य नही किये. उस समय मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे, जिन्होंने विकास के साथ-साथ अपने निर्णयों से जनता को सम्मोहित भी किया था. किन्तु वे सारे विकास कार्य एवं सम्मोहन हेतु किये गये कार्य उन्हें सफलता नही दिला सके. इस बार सपा मुखिया मुलायम सिंह के बयानों से भी यह लग रहा है कि वे अखिलेश यादव के विकास कार्य से संतुष्ट हैं, और उन्हें लगता है कि वे फिर से सत्ता वापसी करेंगे. लेकिन यहीं पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भूल कर रहे हैं. यदि समय रहते नहीं चेते, तो उसका खामियाजा सत्ता गवां कर भुगतना पड़ेगा. इसलिए यदि वे पुन : उस मिथक को तोड़ना चाहते हैं कि सपा दुबारा सत्ता नहीं प्राप्त करती, तो नीचे सुझाई गयी तब्दीलियों पर उन्हें अमल करना होगा.

1. डिम्पल के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाना मैं जानता हूँ कि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए यह निर्णय लेना बहुत कठिन है. लेकिन जिस तरह का चुनावी परिदृश्य बन रहा है, सपा की सभी प्रतिद्वंदी पार्टियाँ अपने दल की प्रमुख महिला नेताओं के नेतृत्व में चुनाव लड़ने जा रही हैं. कांग्रेस ने भी अपने पत्ते खोल दिए हैं, उसने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करके यह संकेत दे दिया है कि वह उत्तर प्रदेश में कई केंद्र बना कर चुनाव लड़ेगी. जैसा कि पुष्ट खबरें प्राप्त हो रही हैं, इस बार कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गाँधी भी रायबरेली एवं अमेठी से बाहर निकल कर कई क्षेत्रों में प्रचार करेंगी. इससे सपा को सबसे तीक्ष्ण चुनौती मिलेगी. इसके आलावा बसपा की मुखिया मायावती तो एक महिला हैं, उनके ही नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाना है. भाजपा के अन्दुरुनी खेमे से जो ख़बरें छन कर आ रही हैं, उससे साफ़ जाहिर है कि आगामी उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा स्मृति ईरानी को अपना स्टार प्रचारक बनायेगी. वैसे वह स्मृति ईरानी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार नही घोषित करेगी. पूरा चुनाव माँ गंगा के भक्त नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा. लेकिन यदि भाजपा बहुमत में आती है, तो मुखियामंत्री केवल स्मृति ईरानी बनेंगी. ऐसे में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को मिशन – 2017 चुनाव डिम्पल के नेतृत्व में लड़ने का निर्णय लेना चाहिए. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी अपने आँखों की काली पट्टी खोल कर डिम्पल को आगे करके चुनाव लड़ना चाहिए. तभी मिशन 2017 फतह हो सकता है.

2. टिकट देने में महिलाओं को तरजीह देना – मिशन – 2017 को फतह करने के लिए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपनी पार्टी की सभी चरित्रवान एवं पार्टी के लिए दिन रात समर्पित महिलाओं को टिकट देना चाहिए. यदि कोई पुरुष नेता इससे प्रभावित होता हो, तो उससे चर्चा करके उसे कहीं अन्यत्र अडजस्ट करने के लिए मनाना चाहिए. यदि सपा 33 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने में कामयाब हो गयी, तो आगामी चुनाव में उसकी जीत को कोई नहीं रोक सकता. सपा मुखिया को यह निर्णय लेने में भी बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. लेकिन यदि उन्होंने यह निर्णय ले लिया, तो आगामी विधान सभा में अप्रत्याशित नतीजे देखने को मिलेंगे.

3. अखिलेश को नई टीम की जरूरत – उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं सपा मुखिया मुलायम सिंह आप इस सच को स्वीकार कर लें कि अखिलेश की पुरानी टीम के अधिकाँश सदस्यों ने पूरे साढ़े चार साल ठेके-पट्टे में दलाली का काम किया है. यहाँ तक आप दोनों से मिलाई के नाम पर भी इस प्रदेश एवं बाहर के लोगों से पैसे ऐंठे हैं. उनकी छवि समाज में पूरी तरह खराब हो चुकी है. जनता उनके कहने पर वोट देने की बात तो छोड़िये, उनकी शकल भी देखना भी पसंद नहीं करती है. मैं यह नहीं कहता कि उनकी टीम के सारे सदस्य ऐसे ही हैं, कई सदस्यों को मैंने त्याग का प्रतिमान स्थापित करते हुए देखा है. उन्हें वे अपनी टीम में रखें. लेकिन लगभग 80 प्रतिशत लोग सत्ता की गंगोत्री में केवल मोती चुनते रहे हैं.

4. बूथ एवं सेक्टर लेवल के कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना – सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कान खोल कर सुन लें कि आपकी पार्टी के लिए जान की बाजी लगा देने वाला, अपने वोटरों को घरों से निकाल कर बूथ तक लाने वाले 99 प्रतिशत कार्यकर्त्ता आपके नेताओं की उपेक्षापूर्ण रवैया से बेहद नाराज है, यदि उसकी नाराजगी नही दूर की गयी, तो मिशन- 2017 जीतने की बात कौन कहें, आप पूरी चुनावी लड़ाई से ही बाहर हो जायेंगे.

5. पार्टी एवं सरकार को पानी पी-पीकर कोसने वाले विधायकों-मंत्रियों को टिकट न देना – सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यदि वास्तव में चुनाव जीतना चाहते हैं, तो अपने ऐसे मंत्रियों एवं विधायकों का टिकट सख्ती से काट दें, जो पूरे साढ़े चार साल लखनऊ में बैठे रहे, या मुंबई, गोवा की गलियों का चक्कर लगाते रहे, जो अपने क्षेत्र में कभी नही गये. जो अपने क्षेत्र की जनता के दुःख-दर्द में कभी शामिल नही हुए. जो लखनऊ में बैठ कर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को कोसते रहे, पार्टी को ऐसे लोगों को टिकट नही देना चाहिए. लेकिन ये लोग बहुत होशियार हैं, एक तो गणेश उनके गुरु हैं, सिर्फ 5 कालिदास की परिक्रमा में विशवास रखते हैं. यदि ऐसे लोगों को पार्टी ने टिकट दे दिया, तो निश्चित ही पार्टी की हार सुनिश्चित है.

6. संगठन में जुझारू एवं पार्टी में निष्ठा रखने वालों को तरजीह देना – अधिकांश जिलो के पार्टी संगठन को जंग लग गयी है. कई जिलों में तो पार्टी कार्यालय के ताले ही नहीं खुलते हैं. जब कोई मीटिंग वगैरह होती है, तभी लोग आते हैं. कई जिलों में कार्यालय तो खुलते हैं, पर पार्टी के जिला अध्यक्ष – महासचिव बत्ती जलाकर ढूढ़ने से भी नही मिलते. वे सिर्फ मोबाइल पर उपलब्ध होते हैं. किन्तु अधिकांश समय उनका मोबाइल भी स्विच ऑफ़ रहता है. कई जिलों में जिला अध्यक्ष बैठते तो हैं, लेकिन उनकी स्थिति कठपुतली जैसी है, जिसकी डोर उस जिले के किसी प्रभावी नेता के हाथ में रहती है, वह जितना खीचता है, उतना ही वह नाचती है. कहीं-कहीं के जिला अध्यक्षों की हालत इतनी ख़राब है कि वे अपनी निष्ठा अभिव्यक्त करने के लिए पूछ कर लघुशंका भी करते हैं. राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव एवं प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव को इस तरह के जिला संगठन को दुरुस्त करने के लिए कड़ा कदम उठाना चाहिए. तभी मिशन – 2017 को फतह किया जा सकता है.

7. संगठन एवं प्रत्याशियों में समन्वय जरूरीउत्तर प्रदेश में भ्रमण के दौरान मैंने पाया कि संगठन एवं प्रत्याशियों के बीच समन्वय का अभाव है. कहीं संगठन अहंकारी है, तो कहीं प्रत्याशी. दोनों के बीच में समन्वय का अभाव है. कहीं – कहीं संगठन तो प्रत्याशियों से वसूली में लगा है. वसूली न देने पर टिकट कटवाने की धमकी दे रहा है. ऐसे तमाम प्रत्याशियों ने मुझसे अपने दिल की पीड़ा कही. इसलिए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एवं अखिलेश यादव को अपने सभी प्रत्याशियों से बुला कर इस पर चर्चा करनी चाहिए, जो इस तरह प्रत्याशियों को परेशां कर रहा है, उसके खिलाफ पार्टी संविधान के अनुरूप कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.

8. पंचसितारा समाजवादी चिंतकों से सावधान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को उन पञ्च सितारा समाजवादी चिंतकों से सावधान रहना चाहिए, जो क्षेत्रों में घूमने के बजाय लखनऊ में पड़े रहते हैं. उनके पास सिर्फ किताबी ज्ञान है, दूसरे लखनऊ आने वाले अपने सम्पर्की नेताओ से वे कुछ आधी-अधूरी, सही-गलत जानकारियां प्राप्त कर लेते हैं. जिसके आधार पर ही उनका सारा समाजवादी चिंतन बनता-बिगड़ता है.

9. विकास के आलावा एक कोई स्पोर्टिंग मुद्दा लेकर चुनाव मैदान में जाना – सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यदि यह समझते हैं कि विकास के मुद्दे पर वे चुनाव फतह कर लेंगे, तो यह उनकी सबसे बड़ी गलतफहमी है. उन्हें एक कोई ऐसा संवेदनशील या युवाओं से जुड़ा मुद्दा खंगालना चाहिए, जिससे लोगों का सपा से दिली लगाव हो जाये. तभी मिशन – 2017 फतह किया जा सकता है.

10. विपक्षियों की चालों में न फंसकर सिर्फ अपनी रणनीति पर काम करना सपा मुखिया मुलायम सिंह एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को चुनाव के दौरान किसी विवाद में फंसने के बजाय सिर्फ अपनी रणनीति पर काम करना चाहिए. जैसा कि सुनने में आ रहा है, इस चुनाव में मुद्दे से भटकाने का प्रयास होगा, यदि उनकी रणनीति कामयाब हो गयी, तो उनके द्वारा उठाये गये मुद्दे इतने संवेदनशील होंगे कि जिसमें उलझने पर सपा को भारी नुकसाँ उठाना पड़ेगा.

11. बुन्देलखण्ड, पूर्वांचल, मध्यांचल एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश फतह करने की अलग-अलग नीति बनाना – सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि एक ही नीति पर इस बार वे मिशन – 2017 चुनाव फतह नही कर पायेंगे. क्योंकि बुन्देलखण्ड, पूर्वाचल, मध्यांचल एवं पश्चिमी उत्तर की राजनीतिक परिस्थितियां इस बार अलग-अलग है.

12. विवादस्पद नेताओं को चुनाव से दूर रखना जिन नेताओं के नाम पर उत्तर प्रदेश का हिन्दू बौखला जाता है, जिनके भाषणों का अपनी मनमर्जी से अर्थ निकाला जाता है, उन नेताओं को चुनाव के दौरान संवेदनशील मुद्दों पर अपनी राय रखने से बचना चाहिए. यदि इन नेताओं से चुनाव प्रचार करवाना जरूरी हो, तो उन्हें इस बात के लिए सचेत किया जाए कि वे हिन्दू-मुस्लिम से सम्बन्धी किसी भी मुद्दे पर प्रेस के सामने किसी भी प्रकार का की बयानबाजी न करें.

प्रो. (डॉ.) योगेन्द्र यादव

विश्लेषक, भाषाविद, वरिष्ठ गाँधीवादी-समाजवादी चिंतक, पत्रकार व्

इंटरनेशनल को-ऑर्डिनेटर – महात्मा गाँधी पीस एंड रिसर्च सेंटर घाना, दक्षिण अफ्रीका

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