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मायावती कितनी मुश्किल में हैं, उसे समझने के लिए यह घटनाक्रम जानिए!
चन्दन श्रीवास्तव
स्वामी प्रसाद मौर्य ने हिंदुओं के धार्मिक अनुष्ठानों को लेकर एक विवादित बयान दिया था। करीब डेढ़ साल पहले। सतीश चंद्र मिश्रा व अन्य सवर्ण और पिछड़े नेताओं ने स्वामी प्रसाद के बयान पर मायावती के समक्ष सख्त आपत्ति दर्ज कराई। कि इस बयान से हिंदू वोटों में बड़ी गिरावट आएगी। बसपा में स्वामी के विरोधी लम्बे समय से यही बिंदु उठाकर बहन जी के कान भर रहे थे।
बार-बार एक ही बात सुनने के बाद बहन जी भी कनविंस हो गईं कि स्वामी की वजह से हिंदू खासकर सवर्ण वोट बिदकेगा। पिछड़ों के वोट सामान्यतः बसपा को नहीं मिलते। 2007 से बसपा दलित और सवर्ण वोटों पर ही दांव लगाती आई है। लिहाजा स्वामी नेता प्रतिपक्ष तो बने रहे लेकिन उनके पर कतर दिए गए। यहां तक कि सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने पर भी उन पर बंदिश लगा दी गई।
सिर्फ सवर्ण वोटों की नाराजगी से बचने के लिए।
लेकिन स्वामी सतीश मिश्रा या नसीमुद्दीन की तरह बिना आधार वाले नेता नहीं हैं। सो उन्होंने मायावती को बहुत करारा झटका दे दिया। बहरहाल जिस मायावती ने सवर्ण वोटों के लिए अपने एक बड़े नेता को लगभग पिंजड़े में बंद कर दिया, उस मायावती का स्वाति सिंह की ललकार के बाद क्या हाल होगा? दयाशंकर के परिवार को गाली पड़ने के बाद सवर्ण जनमानस में बसपा को लेकर भयानक नाराजगी है। इस नाराजगी का इल्म मायावती को भी है। इसीलिए आज यानि 25 जुलाई को अपने अपमान के विरूद्ध होने वाले प्रदर्शनों को उन्होंने मुल्तवी करने का आदेश कल ही दे दिया।
इस समय मायावती वह शख्स हैं जो किसी से भी ज्यादा यह चाहती हैं कि दयाशंकर प्रकरण समाप्त हो। अब इस मुद्दे पर बसपा के वरिष्ठ नेता भी कोई बयान दें, शायद असम्भव है।
वैसे मायावती की आज की हालत देखकर बुजूर्गों की यह सीख बिल्कुल सत्य लगती है कि मूर्ख दोस्त से अच्छा बुद्धिमान दुश्मन होता है।