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उच्चवर्गीय हिन्दू और मुस्लिम जमातें दिन रात सांप्रदायिक बिसात फैलाने में लगी है- प्रेम कुमार मणि
उत्तरप्रदेश में बाबासाहेब आंबेडकर के नाम पर उन्माद फैलाकर सामाजिक तनाव पैदा करने की कोशिशों की मैं भर्त्सना करता हूँ . लेकिन इस मुद्दे पर उनलोगों से गहराई से विमर्श करने की अपील करता हूँ ,जो सामाजिक न्याय की अवधारणा में विश्वास करते हैं . उत्तरप्रदेश की जिन लोगों ने यात्रा की है , उन्होंने देखा होगा कि वहां वस्तुस्थिति क्या है .मुस्लिम इलाकों में हरे और हिन्दू इलाकों में केसरिया झंडों की भरमार है . उच्चवर्गीय हिन्दू और मुस्लिम जमातें दिन रात सांप्रदायिक बिसात फैलाने में लगी है .
सेक्युलर कहे जाने वाले लोग हिन्दू जमातों की आलोचना तो करते है ,मुसलमानो पर चुप लगा जाते है . दरअसल कबीर की परंपरा कमजोर हो गई है . वोट लेने केलिए कुछ लोगों ने मुस्लिम कट्टरवाद की आलोचना को से अपने को रोक रखा है . साम्प्रदायिकता का सबसे अधिक फायदा हिन्दू -मुसलमानो की अशरफ -सवर्ण जामतें उठाती हैं . दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुसलमानो के बीच सामाजिक सुधार के आंदोलन बहुत कमजोर रहे . पिछड़े -दलित मुसलमानो की कोई चिंता नहीं करता . मुलायम ,मायावती ,लालू सबने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अशरफ मुसलमानो के हितों की परवाह की . इससे मुस्लिम कट्टरवाद को बल मिला . जब एक जमात में कट्टरता बढ़ती है ,तो अन्य जमातों में भी स्वत:बढ़ने लगती है . इस सच्चाई पर ध्यान दिया जाना चाहिए .
मुझे तो उन लोगों पर हंसी आती है जो मुस्लिम -दलित एकता की बात करते हैं . कब थी यह एकता ? 1910 में मुस्लिम लीग ने अछूत -दलितों को हिन्दू के रूप में गणना न करने की मांग की थी . पाकिस्तान बनने के समय भी जिन्ना ने आधे अछूतों को पाकिस्तान के हवाले करने की मांग रखी थी .मानो वे ढोर -पशु हों .डॉ आंबेडकर की इस्लाम पर क्या राय थी ,इसे भी जानना चाहिए .-' इस्लाम जिस भातृत्व की चर्चा करता है ,वह मनुष्य का सार्वभौम भातृत्व नहीं है . यह तो केवल मुसलमानों के लिए है .
गैर मुसलमानों केलिए उसमे केवल तिरस्कार और शत्रुता है . मुसलमानों की निष्ठां केवल एक ऐसे राष्ट्र के साथ होती है , जिसका शासन किसी मुस्लमान के हाथ हो . मुस्लमान उस देश के साथ जुड़ाव यही रखता जहाँ वह रहता है ,बल्कि उस धर्म के साथ रखता है ,जिसे वह मानता है . dr ambedker (प्रतिमान ,अंक 7 .पृष्ठ 38 )
लेखक प्रेम कुमार मणि