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बिहार महागठवंधन ना टूटने से बीजेपी और मीडिया हैरान क्यों?
बिहार में ताजा घटना क्रम से उपजा विवाद थमने का नाम मीडिया के हिसाब से नहीं ले रहा है, जबकि इसके उलट राजद, जदयू और कांग्रेस इसके लिए चुपचाप अपनी रणनीति बना रहे है. धीरे धीरे अन्य मामलों की तरह यह भी मामला ठंडा हो जायेगा.
लेकिन जिस तरह से मीडिया और बीजेपी ने यूपी में यादव परिवार का खेल खत्म किया उसी तरह बिहार के महागठवंधन को खत्म करने की क्या मीडिया ने सुपारी ली थी. किन्तु सुलझे हुए राजनीतिक नेताओं ने जिस तरह से इस घटना पर चुपचाप निपटाया है वो वास्तव में काबिलेतारीफ है.
अगर बात करें तो जिस तरह यूपी की अखिलेश सरकार को हर मुँहाने पर फंसाकर और परिवार की लड़ाई में उलझाकर यूपी में बीजेपी कामयाब हुयी वो वास्तव में काफी हद मीडिया की देंन था. जिस तरह हर बात पर अखिलेश और शिवपाल के बयान आना और उनको और बढ़ा चढ़ाकर पेश करना ही उनमें दूरियों का कारण बनी. अब एक दुसरे से अलग होकर अपनी अपनी औकात में आगये.
उसी तरह मीडिया ने लगता है बिहार में महागठवंधन को खत्म करने का भी बीड़ा उठाया है. अगर मीडिया के कारण विपक्ष कमजोर होता गया तो देश बरबादी की राह पर चल पड़ेगा जिसका जिम्मेदार कौन होगा? देश में असली विकास तब होता है जब विपक्ष भी मजबूत होता है. देश में अभी तो किसी भी पार्टी को विपक्ष का दर्जा भी हासिल नहीं है, जबकि उसी पार्टी का नेता दिल्ली में तीन विधायक होने पर विपक्ष के नेता का पद स्वीकार करता है.
कुछ भी हो जिस तरह लालूप्रसाद और नीतिश कुंमार ने महागठवंधन को बचाने का भरसक प्रयास किया है वो वास्तव में काबिले तारीफ है. जबकि अब सभी मामला भी ठंडा पड़ता जाएगा क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव भी होगया. क्या ये मुद्दा भी यूपी चुनाव के तीन तलाक की तरह ठंडे बसते में चला जाएगा या फिर?