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तीन तलाक को अवैध ठहराना कुरान को दुबारा लिखने जैसा होगा, इस्लाम खात्में की कगार पर
देश में तीन तलाक के मुद्दे पर बहस दिनोंदिन तेज होती जा रही है. अब इस बहस में आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने दखल देते हुए सुप्रीमकोर्ट से कहा है कि तीन तलाक को अमान्य करने का मतलब है कि अल्लाह के दिए निर्देशों को नहीं माने जैसा होगा. बोर्ड ने ये भी कहा कि तीन तलाक कानून को नहीं मानना मुस्लिमों के लिए सबसे बड़ा पाप होगा और कुरान को दुबारा लिखने जैसा कानून होगा. इस पाप को करने के लिए मुस्लिमों को मजबूर ना किया जाय.
बोर्ड ने कहा कि उसके प्राविधान सविधान की धारा 25(धार्मिक स्वतंत्रता) के तहत वैध है. अगर कुरान में लिखी बातों की बुराई इसी तरह होती रही तो बो दिन दूर नहीं होगा जब इस्लाम खात्में की कगार पर आ जाएगा. हालांकि तीन तलाक और डिवार्स में काफी अंतर है और तरीका भी अलग अलग है. लेकिन कुरान की पवित्र आयतों और पेगम्बर के आदेशों के मद्देनजर इसे अवैध घोषित नहीं किया जा सकता है.
तीन तलाक मसले पर सुनवाई से तीन दिन पहले बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को लिखित में अपनी दलीलें पेश की. बोर्ड ने कहा है कि तीन तलाक का आदेश कुरान से आता है. पवित्र कुरान के मुताबिक,'तीन बार तलाक कह देने पर बीवी अपने पुराने पति के लिए 'हराम' हो जाती है और यह तब तक रहता है जब तक 'हलाला' की प्रक्रिया पूरी न कर ली जाए. कुरान में साफ लिखा गया है कि तीन बार तलाक बोल देने के बाद फैसले को बदला नहीं जा सकता है. तलाक के बाद पति उस महिला के साथ दोबारा रिश्ते में तब तक नहीं आ सकता, जब तक कि वह अपनी पसंद के किसी और शख्स से शादी न कर ले. इतना ही नहीं महिला और उसके पूर्व पति के बीच रिश्ता तब जायज माना जाएगा जब महिला के दूसरे पति की मौत हो गई हो या उससे तलाक हो गया हो. AIMPLB के वकील एजाज मकबूल ने कहा कि तीन तलाक का मकसद तलाकशुदा महिलाओं को अपनी मर्जी से दोबारा शादी करने का हक देना है.
बोर्ड का कहना है कि सभी मुस्लिम कुरान और पैगम्बर के निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं. AIMPLB के मुताबिक अगर कोई मुस्लिम कुरान में मना किए गए कामों को अंजाम देता है तो वह गुनाह करता है. बोर्ड ने चेतावनी देते हुए कहा है कि कुरान के आदेशों के उल्लंघन का नतीजा अच्छा नहीं होगा. मसलन ऐसे रिश्तों से पैदा हुए बच्चे नाजायज कहलाएंगे और अपने पिता की संपत्ति में उनके हिस्से को लेकर विवाद हो सकता है.
बोर्ड ने कहा कि तीन तलाक कानून को नहीं मानने का मतलब है कि अल्लाह के बनाये नियम कानूनों को तोड़ना है. ये फिर से कुरान को लिखने वाला कानून बन रहा है जो नहीं हो सकता है. कुरान की आयतें अल्लाह के लिखे शब्द है यही इस्लाम का आधार है. कुरान के साथ छेड़छाड करना मुस्लिमों के मुलभुत नियमों को तोड़ने जैसा होगा.