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कश्मीर की जरूरत है समाधान,राजनीति और सेना नहीं : डॉ फई

कश्मीर की जरूरत है समाधान,राजनीति और सेना नहीं : डॉ फई
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बाल्टीमोर, मैरीलैंड: 'विश्व कश्मीर जागरुकता फोरम' के महासचिव डॉ गुलाम नबी फई ने अपनी आवाज उठाई है. डॉ ने कहा है कि कश्मीर समस्या पर संघर्षशील सैन्य साधनों के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता है. कश्मीर एक राजनीतिक मुद्दा है और संघर्ष के लिए सभी दलों को शामिल करके राजनीतिक साधनों के माध्यम से हल किया जाना चाहिए. यह भारत और पाकिस्तान की सरकारें और कश्मीरी प्रतिरोध के वैध नेतृत्व के सामने होना चाहिए. वह बाल्टीमोर कन्वेंशन सेंटर में 'उत्तरी अमेरिका के इस्लामिक सर्कल' के 42 वें वार्षिक सम्मेलन में कश्मीर विषय पर बोल रहे थे. इस साल के सम्मेलन में 20,000 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया अन्य पैनलिस्टों में शामिल थे जिनमे खास तौर पर श्री अडेम कैरोल, डॉ एमए धार, डॉ नकिबुर रहमान और ब्रो तारिक रहमान थे.


"कश्मीर में एक युवा नेतृत्व वाले स्वदेशी जन आंदोलन चल रहा है. यह आंदोलन आजादी के रोने के साथ उभरती है और एक साधारण सत्य में विश्वास करता है. कश्मीर में एक निष्पक्ष, निष्पक्ष जनमत संग्रह स्थापित है.डॉ फई ने कहा कि कश्मीर स्वंय एक अभिन्न हिस्सा है. इस कश्मीर समस्या को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाकर सुलझाने का सतत प्रयास किया जाय ताकि कश्मीरी समस्या का सफलतापूर्वक हल निकाला जा सके.
उन्होंने चेतावनी दी, अगर भारत या पाकिस्तान या कोई अन्य शक्ति कश्मीर के लोगों पर दबाव बनाने या किसी भी तरह से सहमत होने के लिए दबाव डालना चाहती है, जो अपनी आजादी के साथ समझौता करेगी, तो किसी तथाकथित शांति प्रक्रिया को पहले ही उखाड़ फेंका गया है. कश्मीर के लोग उस स्कोर पर किसी के मन में कोई संदेह नहीं छोड़ना चाहते.


भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता उनके राजनीतिक नेतृत्व के स्तर पर आयोजित होनी चाहिए. कश्मीर में सबसे पहले किसी भी पक्ष को चालाकी से कोई प्रक्रिया नहीं करने चाहिए और निर्दोष कश्मीरी नागरिकों की हत्या होना प्रमुखता से बंद होनी चहिये. इस प्रक्रिया को भारत और पाकिस्तान को इमानदारी से मानना चाहिए.
फाई ने आशा व्यक्त की कि संयुक्त राज्य अमेरिका और विश्व शक्तियां जो न केवल दक्षिण एशिया के क्षेत्र में शांति चाहती है. उन्हें कश्मीर मसले पर आगे आना होगा ताकि बाकी दुनिया में शांति स्थापित हो.
डॉ एमए धार ने कश्मीर के लोगों की पीड़ा और पीड़ा को पॉवर पॉइंट प्रस्तुति के माध्यम से वर्णित किया. उन्होंने जोर दिया कि कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन व्यवस्थित है और आधिकारिक तौर पर अधिकृत है. अपने भयावह मानव अधिकारों के रिकॉर्ड को सुधारने की मांग करने से, भारत ने कश्मीर में अपने राज्य प्रायोजित आतंकवाद को मंजूरी दी है.
डॉ धार ने कहा कि 199 0 के बाद से भारतीय सेना ने कश्मीर में अपने क्रूर दबदबे का एक विशाल अभियान शुरू किया है. कश्मीर में नागरिकों की मौत का आंकड़ा हजारों की संख्या में चला जाता है, 8,000 से अधिक व्यक्तियों को अपंग कर दिया गया है और 12,000 से अधिक महिलाओं ने उत्पीड़न और हमला किया गया है. दुर्भाग्य से, संयुक्त राष्ट्र में निंदा की कोई बात नहीं बोली गई है.


डॉ धर ने चेतावनी दी थी कि 700,000 भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों की भारी उपस्थिति कश्मीरी लोगों के लिए एक सतत अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि वे वही अधीन हैं और उनकी इच्छा के खिलाफ दास हैं. हर व्यक्ति के पास एक या एक से अधिक कहानियां हैं जो रोते हैं और चिल्लाने के लिए काफी हैं. उनका दर्द अंतरराष्ट्रीय समुदाय की खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका की चुप्पी और उदासीनता से बढ़ता जाता है, जो कि मानव अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता का प्रतीक है. इन संस्थाओं को आगे आकर कश्मीर समस्या का समाधान करना चाहिए ताकि कश्मीरी अवाम के लोग अपनी जिन्दगी आराम से जी सकें.
शिव कुमार मिश्र

शिव कुमार मिश्र

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