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मोदी का विकल्प होंगे योगी आदित्यनाथ!

Arun Mishra
24 March 2017 8:13 AM GMT
मोदी का विकल्प होंगे योगी आदित्यनाथ!
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जिस प्रकार देश में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू इस समय सर चढ़ कर बोल रहा है उससे भाजपा संघ के भीतर एक बेचेनी दिखाई पड रही है। देश की बहुसंख्यक आबादी इस समय देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुणगान कर रही है। देश का राजनैतिक वातावरण इस समय नरेंद्र मोदी के राजनैतिक तेज की आभा से दमक रहा है।

नरेंद्र मोदी ने अपने समयानुकुल भाजपा के संगठन पर भी अपने विश्वस्त अमित शाह को बैठा कर उसे भी अपनी मर्जी अनुरूप चलाया जा रहा है। जिस प्रकार राजनिति के चतुर सुजान नरेन्द्र मोदी एवं अमित शाह ने सत्ता एवं संगठन दोनों पर कब्जा किया है उससे भाजपा एवं उसके मातृ संगठन संघ में भी चिंता की लकीरे खिंच गई है। संघ के प्रमुख सहित बी.एच.पी. के फायर ब्रांड आग उगलते प्रवीण तोंगडिया पर जेड सुरक्षा के घेरे का पहरा लगा दिया गया है।

देश की सत्ता के सुप्रीमो अब इन नेताओं से कौन कब मिलता है उसे आसानी से जान सकते है। केंद्र में भाजपा की सरकार में देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के कार्यालय से जासूसी के उपकरण बरामद किये गये थे। देश की सरकार के शक्तिशाली मुखिया का नाम तब इस जासूसी प्रकरण के सामने आया था। देश के लोकसभा चुनावों की चुनावी सभाओं में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भृष्टाचार मुक्त शासन देने के नारे लगाये गये थे। प्रधानमंत्री के भृष्टाचार मुक्त शासन देने के वादों को देश के अन्दर भाजपा की सरकारों से ही चुनोती मिलने लगी।

प्रधानमंत्री की राजनेतिक शेली को जानने वालो के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में काम करते हुए गुजरात राज्य की भाजपा में अपने सारे विकल्प बनने वाले नेताओं को ठिकाने लगा दिया था। गुजरात राज्य की भाजपा में राज्य के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का विकल्प बनने की सम्भावनाओ को समाप्त करने बाद नरेन्द्र मोदी राज्य की राजनीती में संघ भाजपा की मज़बूरी बन गये थे।

अनेक अवसरों पर संघ वी.एच.पी. के नेताओ की असहमति की कोई कीमत राज्य में नही बची थी। मोदी की राजनेतिक विशालता के कारण सत्ता एवं संगठन दोनों ही मोदी के इशारो पर चलने लगे I राज्य के एक नेता की हत्या में मोदी के करीबी अमित शाह पर तब उस नेता के पिता ने ही आरोप लगाये थे। भाजपा नेता की हत्या के पश्चात उसके पिता की आवाज को राज्य में अनसुना कर दिया गया। दिल्ली की सरकार के मुखिया बने नरेंद्र मोदी को राजस्थान व् मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की सरकारों में होने वाले उन्मुक्त भृष्टाचार से चुनौती मिलने लगी। राजस्थान राज्य में हुए खान घोटालो की धूम देश की मिडिया में होने लगी थी।

यहीं से फिर भाजपा में मोदी वाद की शुरुआत के तहत भृष्टाचार में लिप्त रहने वाले तीनो राज्यों के मुख्यमंत्री बदलने की प्रक्रिया पर काम होने लगा। राजस्थान, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को नही बदल पाने की कसक आज भी भाजपा में मोदी समर्थको में पाई जाती है। बिहार के चुनावों में देश के प्रधानमंत्री के बढ़ते प्रभाव को रोकने की रणनीति के तहत संघ के नेताओ से आरक्षण समाप्त करने के बयान दिलवाए गये।

भाजपा के भीतर इन दिनों राजपूत जाति के गृहमंत्री राजनाथ सिंह व राजस्थान मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों को एक गुट भाजपा में मोदी के विरोध में सक्रिय हो गया है। इस गुट को मोदी के प्रभाव से डरे अनेक संघ के नेताओ का भी समर्थन अन्दर खाने मिलने लगा है। संघ का शीर्ष नेतृत्व कभी नही चाहता की भाजपा की सरकारों को चलाने वाला उनका रिमोट कंट्रोल कभी कमजोर हो। संघ अपने विवादित एजेंडे को भाजपा की सरकारों के माध्यम से पूर्णरूप से लागू करवाना चाहता है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संघ के विवादित एजेंडे के साथ विश्वभर में बनाई अपनी छवि की भी चिंता है।

देश के प्रधानमंत्री के द्वारा कांग्रेस मुक्त भारत अभियान भी देश में चलाया जा रहा है। इस के तहत ही अन्य पार्टियों से आयातित नेताओ का इन दिनों भाजपा में खूब आदर सत्कार करके उन्हें मंत्री तक बनाया जा रहा है। अन्य पार्टियों से भाजपा में आये निष्ठावान नेताओ की निष्ठा मोदी, अमित शाह के प्रति संघ से अधिक है। इस कारण से मोदी, अमित शाह की संघ पर निर्भरता कम हो रही है। एक तीर से अनेक निशाने सांधने वाले राजनीती की इस कुशल जोड़ी से आज भाजपा एवं संघ दोनों में चिंता व्याप्त हो रही है।

यूपी के विधान सभा चुनावो में उग्र हिंदुत्व के साथ 'सबका विकास-सबका साथ' के नारे के घालमेल ने राज्य में भाजपा को प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने का बहुमत प्रदान कर दिया है। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने देश भर में मीडीया चैनलों के माध्यम से देश के मतदाताओ को भावनात्मक रूप से भरमाने का अकल्पनीय प्रयोग भी शुरू कर रखा है। इस प्रयोग के द्वारा विपक्षीदल चुनावी दंगल में पूर्णतया बेक फुट पर धकेल दिए जाते है। मजबूत व्यूह रचना के रचनाकार नरेन्द्र मोदी ने गुजरात राज्य में अपना विकल्प बनने वाले सभी नेताओ को राज्य में ढेर कर दिया था।

इस राजनेतिक शेली के कारण संघ के साथ भाजपा में गहरे रूप से अपनी जड़े जमाए बैठी राजपूत लाबी भी अब अपने सियासी वजूद के लिए नरेन्द्र मोदी की भाजपा में खतरा मान कर चल रही है। उत्तर प्रदेश की विजय के पश्चात यूपी में मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ, नरेन्द्र मोदी एवं अमित शाह के साथ राज्य के प्रभारी ओम माथुर की पसंद के नेता नही थे। यूपी में बनी विराट बहुमत की सरकार में संघ के नेता भी राम मंदिर के साथ उनके एजेंडे को पूर्ण रूप से लागु करने वाला मुख्यमंत्री चाहते थे। संघ के साथ भाजपा की राजपूत लाभी भी मोदी को रोकने की रणनीति के तहत यूपी में मोदी को टक्कर देने वाला नेता चाहती थी। यूपी के मतदाताओं से चुनावी सभाओ में भाजपा ने राज्य में दलित जाती से अथवा पिछड़ी जाती से मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था।

संघ भाजपा के राजपूत नेताओं की जुगलबंदी के परिणाम स्वरुप सारे अनुमान वादे तोड़कर देश के प्रधानमंत्री द्वारा हिंदुत्व के बल पर बनाई उनकी छवि का मुकाबला उग्र हिंदुत्व के प्रखर वक्ता योगी आदित्यनाथ से कराने का निर्णय लिया गया। संघ भाजपा की राजपूत लाबी का प्रभाव इन दिनों भाजपा की सरकारों में स्पष्ट रूप से दिखाई पड रहा है। देश में देश के गृहमंत्री, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री इन दिनों राजपूत समाज के व्यक्ति है। भाजपा में इन दिनों ब्राह्मण दलितो की उपेक्षा का युग चल रहा है। आने वाले समय में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के द्वारा लिए गये ताबड़तोड़ फैसले उन्हें देश भर में ख्याति दिलाएंगे।

गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के समय हुए दंगो के कारण मोदी के आभा मंडल में चमक आई थी। गुजरात राज्य में अनेक फर्जी मुठभेड़ करके अपने भाषणों में पाकिस्तान व् मियां मुसर्रफ के निशाना बनाकर सांप्रदायिकता का पुट अपने भाषणों में देने की कला के कारण ही नरेन्द्र मोदी को यह सफलता मिली है। नरेन्द्र मोदी के सामने उनका ही विकल्प संघ भाजपा ने यूपी में योगी आदित्यनाथ को राज्य का मुख्यमंत्री बनाकर खड़ा कर दिया है। गुजरात राज्य में अपना विकल्प बनने की सम्भावना वाले नेताओ के राजनेतिक जीवन को समाप्त करने वाले मोदी जी अब योगी से केसे निपटेंगे यह समय बताएगा। साम्प्रदायिक विद्वेष फेलाकर अपनी रथयात्रा से भाजपा के शिखर पर आने वाले लालकृष्ण आडवानी पर नरेन्द्र मोदी बहुत भारी पड रहे है।

गुजरात के दंगो के बाद राजधर्म नही निभाने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी राज्य के मुख्यमंत्री पद से मोदी को हटाना चाहते थे तब आडवाणी का बचाव करना मोदी के काम आया था। आडवाणी की यह भूल उन्हें जीवन के आखिरी पलो में बहुत भारी पड गयी। इतिहास एक बार फिर अपने आप को भाजपा में दोहरा रहा है। इस बार सब पर भारी पड़ने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने की भूल शायद उन्हें बहुत भारी पड़ने वाली है। राजपूत लाबी के दबाव में भाजपा संघ द्वारा लिया गया योगी को मुख्यमंत्री बनाने का यह निर्णय राजस्थान की मुख्यमंत्री के साथ कइयो के लिए अच्छा फलदायी होगा। देश के सबसे लोकप्रिय ताकतवर प्रधानमंत्री के लिए यह चुनोती भरा हो सकता है फिलहाल इसकी पूर्ण सम्भावना नजर आ रही है। देश की जनता को भी अब लगने लगा है कि भाजपा का इतिहास फिर एक बार भाजपा में दोहरा रहा है।
मो. हफीज, व्यूरो चीफ, राजस्थान
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