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मुफ़्ती अहमद हसन खां, जिनके मरीज थे राष्ट्रपति और आम आदमी

Arun Mishra
25 March 2017 2:23 PM GMT
मुफ़्ती अहमद हसन खां, जिनके मरीज थे राष्ट्रपति और आम आदमी
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राजस्थान राजपुताना की धरती पर टोंक रियासत का इतिहास अपने आप में बेमिसाल है। उतना ही यहाँ पर जन्म लेने वाले लोगों का जीवन बेमिसाल रहा है। टोंक की धरती जो देश विदेश में उर्दू, अरबी, फारसी भाषा के ज्ञानियों के ज्ञान के लिए चर्चित रही है। इस धरती पर हाफिज, कारी, हकीम मुफ़्ती अहमद हसन खां साहब ने भी परवरिश पाई है। इनके इल्म और हकीमी इलाज के चर्चे देश विदेश में खूब सुने जाते हैं।

टोंक की सरजमीन पर पैदा होकर इस्लाम धर्म की उच्च कोटि की तालीम हासिल करके मुफ़्ती साहब ने कुरआन शरीफ को कंठस्थ याद किया। कुरआन शरीफ को पढने और उसको सुनाने के सात तरीके होते है जो हकीम साहब को सम्पूर्ण रूप से आते थे। इसके पश्चात इस्लाम धर्म के कानून की पढाई करके मुफ्ती की डिग्री हासिल की। धर्म के उच्च कोटि के विद्वान बनने के बाद हकीम साहब ने यूनानी इलाज पद्वति की शिक्षा हासिल की। मूलरूप से मुफ़्ती साहब नाडी को पकड़कर शरीर विज्ञान की भाषा समझने व शरीर की आवश्यकता अनुसार इलाज करने में माहिर माने जाते थे। इनके इलाज की शोहरत ईराक इरान, अफगानिस्तान, ब्रिटेन, पकिस्तान के साथ पूरी दुनिया में फैली हुई थी। इनके द्वारा देश विदेश की मशहूर हस्तियों का इलाज किया गया।

भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह जयपुर के महाराजा, महारानी गायत्री देवी, निजाम हैदराबाद, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. बरकतुल्ला खां, हरिदेव जोशी, भेरो सिंह शेखावत, इंदिरा गाँधी की मोसी, जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे जी.एम.शाह, शीशराम ओला, शिव चरण माथुर, बरकतुल्ला की पत्नी उषी खां जैसे जाने माने लोग इनके पास इलाज के लिए मरीज बन कर आते थे। स्व. ज्ञानी जेल सिंह के नाम पर इन्होने एक खमीरा जेल सिंह के नाम से एक नई दवा बनाई। दिल को पड़ने वाले दिल के दौरे में यह दवाई बहुत फायदा करती है। इस दवा को लेने के बाद जेल सिंह ने कहा था कि अगर यह दवा उन्हें पहले मिल जाती तो वे अमेरिका में जाकर बायपास सर्जरी नही करवाते।

जयपुर शहर में शिक्षा के क्षेत्र में मिशन स्कूल की स्थापना करने वाले जे. हैनरी के गले की पथरी को हकीम साहब ने बिना किसी चीरफाड़ के अपनी दवाइयों के बल से बाहर निकाल दिया था। सर्वप्रथम नवाब रामपुर ने अफगानिस्तान में बसे पठान जाति के हकीम साहब के पूर्वज किफ़ायत खां कमाल जई को बुलाकर अपनी रियासत में बसाया था। हकीम साहब के पूर्वजो में सभी एक से बढ़कर एक विद्वान हुए है। इनके ज्ञान की चर्चा सुनकर टोंक नवाब जो खुद पठान जाति से थे उन्होंने हकीम साहब के पूर्वजो को टोंक रियासत में बुला कर बसाया। अपने समय के देश के ख्याती प्राप्त कर सूर्य के उपनाम धारी मोलवी इमामुद्दीन खां साहब को टोंक नवाब ने प्रमुख न्यायाधीश का पद दिया। इनकी न्याय प्रियता के करण एक मुकदमे में उन्होने टोंक नवाब को अपनी अदालत में बतौर एक मुजरिम कठघरे में खड़ा कर दिया था। इनकी न्याय प्रियता से खुश होकर टोंक के तत्कालीन नवाब वजीर द्दोला ने एक लाख अशर्फी उन्हें इनाम में दी जो मोलवी साहब ने वही गरीबो में बाँट दी।

न्यायाधीश के रूप में आपने टोंक नवाब के विरुद्ध भी फैसले किये। इस परिवार में जन्म लेने वाले मुफ्ती हकीम अहमद हसन खां साहब अपने परिवार के अकेले पुत्र थे। घर वालो ने लाड प्यार के कारण इनके घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी थी। जवान होने के बाद आपने अपने जमाने के मशहूर इल्म के उस्तादों से इल्म सीखा। अपने ज्ञान शील चरित्र के कारण हकीम साहब देश भर में बेहतरीन हस्त लेखन के विशेषज्ञ माने जाते थे। टोंक के मशहूर खलील टोंकी आपके शिष्य रहे है, जिन्हें हस्त लेखन में दो बार राष्ट्रपति पदक मिला था। हकीम साहब सात प्रकार की स्याही अलग-अलग रंगों में बनाना जानते थे। जयपुर की सरजमीन पर आपकी हिकमत और ज्ञान के हजारो किस्से लोग सुनाते हैं।

अपने जीवन के 105 वर्ष की आयु में आपने कभी चश्मा नही लगाया था। मुझ लेखक को भी हकीम साहब से दवाई लेने और नब्ज दिखाने का सोभाग्य प्राप्त हुआ है। 105 वर्ष की आयु में भी आप मरीज की नब्ज देखर इलाज करते थे और बगेर चश्मे के पर्ची पर दवाऐ लिखते थे। देश की आजादी के बाद आप टोंक से जयपुर आकर बस गये।जयपुर शहर में आपने रामगंज बाजार में आपके उस्ताद के नाम पर इरफानी दवाखाना खोलकर अपने प्रियगुरु के नाम को आवाम में जिन्दा रखा। स्व. मुफ़्ती साहब वर्ष 2016 में इस दुनिया से रुखसत हो गये। आप के परिवार की तरह आप में हकगोई, ईमानदारी के साथ लोगो की सेवा करने का जज्बा कूट कूट कर भरा था। आप जीवन भर लोगों को अच्छे आचरण करने के लिए कहते थे। आप जयपुर शहर में हिन्दू मुस्लिम एकता के सबसे बड़े नायक रहे है।

कांग्रेस की शिवचरण माथुर सरकार में जब जयपुर शहर में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए तब आपने इसके लिए राज्य के मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को सब लोगो के सामने खूब बुरा भला कहा था। भारतीय सिनेमा जगत की सबसे बड़ी हस्ती दिलीप कुमार के स्वास्थ्य के बारे में उनकी पत्नी सायरा बानो फोन पर हकीम साहब से परामर्श लिया करती थी। राष्ट्रपति भवन से पुरुषकृत करने के लिए आपके पास अनेक बार खत आये परन्तु आप ने सादगी से उन सबको ठुकरा दिया। इस संसार में संसार की रचना करने वाले ईश्वर के सच्चे मित्र इस संसार में किसी से नही डरते है और नाही किसी नेता मंत्री अफसर की परवाह करते है कुरआन शरीफ में भी यही ईश्वर फरमाता है। मुफ़्ती अहमद हसन खां पठान जाति के विद्वान और सच्चे ईश्वर के मित्र थे। जब हकीम साहब की शवयात्रा जयपुर शहर में निकली तो एक लाख से अधिक लोगो की भीड़ का हुजूम ईश्वर के इस दोस्त को अपनी भीगी आँखों से आखिरी विदाई सलामी देने के लिए सडको पर उमड पड़ा था। अपने जीवन में लाखो गरीबो का इलाज मुफ़्ती साहब ने मुफ्त में किया था। हकीम साहब के बाद उनके अनेक चेले स्वयं को मुफ़्ती बनाने के लिए मुफ़्ती साहब के परिवार से हाथ पाँव जोड़ रहे थे। ऐसे लालची चेलो में गरीबो की सेवा का भाव शायद नही के बराबर है। हकीम साहब की खानदानी विरासत के मुताबिक़ आज भी उनके पुत्र हजारो गरीबो का मुफ्त में इलाज कर के अपनी खानदानी परम्परा को जिन्दा रखे हुए है। देश प्रदेशवासियों के लिए यह घराना आज भी पूज्यनीय है। हम भी तहे दिल से इस खानदान और उसकी परम्परा को सर झुका कर सलाम करते है। हकीम साहब जैसे लोगो के बल पर ही दुनिया में इंसानियत भाई चारा जिन्दा है हकीम साहब जैसे लोग मरने के बाद भी लोगो के दिलो में रहकर जिन्दा रहते है। ऐसे लोग मरकर भी अमर हो जाते है।
मो. हफीज, व्यूरो चीफ, राजस्थान
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