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ऑनर किलिंग, सामाजिक समस्या का कानूनी समाधान?

Special Coverage News
2 July 2017 5:59 AM GMT
ऑनर किलिंग, सामाजिक समस्या का कानूनी समाधान?
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हमारे देश की संस्कृति, धर्म, सामजिक परम्पराएं सभी समान रूप से समाज में नैतिक मूल्यों के संरक्षण की बात करते है। वहीं पश्चिमी सभ्यता के चलन के कारण भारतीय युवा पीढ़ी पश्चिम की चका चौंध में आकर अपने सभी संस्कारों को तेजी से छोड़ रही है।
विश्व में हमारा देश एक धर्म प्रधान राष्ट्र है पश्चिमी सभ्यता संस्कृति के अन्धानुकरण के कारण भारतीय समाज में तेजी से भारतीय परम्पराए, सामाजिक मूल्यों का पतन हो रहा है। हमारे देश की संस्कृति,धर्म, सामजिक परम्पराए सभी समान रूप से समाज में नैतिक मूल्यों के संरक्षण की बात करते है। वहीं पश्चिमी सभ्यता के चलन के कारण भारतीय युवा पीढ़ी पश्चिम की चका चौंध में आकर अपने सभी संस्कारों को तेजी से छोड़ रही है।

वेलेंटाइन डे, मदर डे, फादर डे, ये सब पश्चिमी सभ्यता के प्रतिमान है इन्हें अब हमारा समाज भी स्वीकार करता जा रहा है। भारतीय धर्म, संस्कृति में नारी को सम्माननीय रूप देकर उसकी पूजा की जाती है। वहीं पश्चिमी देशो में संस्कृति व धर्म के सभी प्रतिमान धाराशायी हो गये है। इस कारण पश्चिमी देशो में नारी को भोग की वस्तु मान कर, उसके शरीर की संरचना के बल पर उसे बाजार की बिकाऊ वस्तु की तरह रूप सज्जा देकर बाजारू वस्तु बना दी है। महिला का रूप जो भारतीय संस्कृति में माँ, बहन, बहु, ताई, बुआ के रूप में है ये नारी के सभी रूप हमारे समाज में आदर के पात्र बने हुए हैं। वहीं, पश्चिम देशो में नारी एक दिल बहलाने का खिलौना बन गई है। कहीं नारी को उसकी देहिक सौन्दर्यता के बल पर उसे बाजार में नंगी करके साबुन, तेल बेचने वाली बना दी गई है।

हमारे रीति-रिवाजो धर्म-शास्त्रों की धार्मिक मान्यताओं के आधार पर प्रत्येक बाप के अनेक कर्तव्य है इनमे से एक यह भी कि माँ-बाप अपनी लाडली बेटी का कन्यादान करके पुन्य के भागी बने। हमारे देश में बेटी के जन्म लेने पर हिन्दू धर्म में बेटी को लक्ष्मी का रूप माना गया है। अनेक धार्मिक अवसरों पर कन्या भोज करके कन्याओ को खाना खिलाना धर्म अनुरूप पुन्य का कर्म माना जाता है। हमारे देश में हमारी सभ्यता अनुसार एक बाप बेटी के जन्म लेते ही उसकी शादी तक के सपने संजोने लग जाता है। पल-पल बढती बेटी को जवान होता देखकर बाप को अपनी जिम्मेवारियों का अहसास बढ़ता जाता है।

प्रत्येक माँ बाप की हसरतें होती है की उनके घर से उनकी लाडली बेटी की डोली की विदाई उनके हाथों से हो। बेटी के पीले हाथ करके हर माँ बाप चाहता है की सामाजिक, धार्मिक, रीती-रिवाजो से समाज के तौर तरीको से उनकी बेटी उनके घर से अपने ससुराल जाए। बाबुल के गीत गाये जाए, सखियों के साथ भाई माँ बाप का साथ छोड़कर जब बेटी पराई हो तो उनकी आँखों में अपने कर्तव्य के निर्वाह करने की ख़ुशी में आंसू छलके।

सदियों से हमारे समाज में बेटी की विदाई के विरह के गीत लिखे और गाये जाते है। हिंदी के मशहूर कवि 'अमीर खुसरो' के विदाई गीत हो या फिर फिल्मी गीतों के रूमानी शब्द 'बाबुल की दुआए लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले' हमारे समाज में हर माँ बाप की यही इच्छा होती है की मेरी बेटी को अच्छा घर अच्छा परिवार मिले। लाड-प्यार से पाली गई हमारी लाडो को हमारा घर छोड़ने के बाद उसके ससुराल में कभी कष्ट ना हो। इसलिए हमारे समाज में माँ बाप बेटी के रिश्तो के लिए काफी दौड़-धूप करते है। हर माँ-बाप के दिल में बेटी की विदाई की सामाजिक हसरते होती है। एक दिन अचानक जब जवान लड़की अपनी पसंद के लड़के से प्यार करने और शादी करने की जब माँ बाप से जिद करती है तो उसी क्षण माँ बाप की आँखों में बेटी की विदाई, कन्यादान करने के सपने जो उस वक्त पूर्ण आकार ले चुके होते है, वे अचानक चकनाचूर हो जाते हैं।

माँ बाप के सपनो को तोड़ने की मुजरिम यहाँ कोई और नही उसकी अपनी लाडली बेटी होती है, जिसे पाल पोसकर माँ बाप इस काबिल बनाते है की वो संसार में अपने अस्तित्व का बोध कराने में आज सक्षम है। दुर्भाग्य से 18-20 वर्ष जिनकी गोदियों में पलकर जवान होकर बेटी समझदार बनती त्योही वह अपनी चाहत के सामने माँ बाप को ठुकरा देती है। यहाँ जमाने के बदलते हालात से अनजान एक लड़की अनेक बार एक अनजानेसे, बिना आजमाये गये लड़के के प्रेम में वशीभूत होकर अपने माँ बाप के अनेक वर्षो की लड़ प्यार को भूलकर उनके विरुद्ध खड़ी हो जाती है। जब अपनी ही पाली हुई, गोद में खिलाई लड़की जब माँ बाप का अपमान करके घर की देहलीज को पराये से मर्द के लिए लांघ जाती है, तब उसके माँ बाप के दिल पर क्या बीतती है। बड़ा दुःख होता है जब ऊँगली पकड़ कर चलने वाली बेटी बूढ़े माँ बाप के सामने खड़ी होकर माँ बाप, परिवार, समाज की बनाई लक्षमण रेखा को अपनी जवानी के तेज कदमो से रोंद देती है।

यहाँ माँ बाप के दुःख को समझने के लिए हमारे देश का कानून, पुलिस, अदालत कोई भी तैयार नही है। पीड़ित माँ बाप का दुश्मन यहाँ समाज, लोक-लाज, कानून, पुलिस, अदालत उसकी अपनी बेटी सब बन जाते है। यहाँ गौरतलब होगा कि अमरीका के पूर्व राष्ट्रपिता बिल क्लिंटन ने एक बार कहा था की 21वी सदी के बाद अमरीका की आधी से ज्यादा आबादी हरामजादो की होगी जिनके बाप का पता उनको भी नही होगा। दुर्भाग्य से एक तरफ हमारा धर्म, हमारी संस्कृति, हमारी सामाजिक मान्यताए है जो हमें समाज में सामाजिक गरीमा के निर्वहन के साथ जीवन जीने का सन्देश देती है।

वहीं, दूसरी और हमारे देश की अदालते है जो, बिन फेरे हम तेरे, यानी, 'लिव इन रिलेशनशिप' को भी अब देश में कानूनी रूप से बढ़ावा दे रही है। यहाँ हमारा समाज दो भागो में स्पष्ट रूप से बंटा हुआ दिखाई देता है। एक तो देश का वह अभिजात वर्ग है जिसके लिए सारे सामाजिक बंधन गोण हो चुके है। यह वर्ग नारी की आजादी की बात करता है। पश्चिम की भाँती काफी हद तक समाज के इस वर्ग में बैठकर धर्म संस्कृति, मान मर्यादा की बात करने वाल व्यक्ति को अनपढ़, गंवार, रूढीवादी आदि माना जाता है। समाज के इस वर्ग की लड़कियों में ब्वाय-फ्रेंड, गर्ल-फ्रेंड का चलन है।

दूसरी और भारत के ग्रामीण परिवेश का वह समाज है जो आज भी अपनी बहन बेटियों के सम्मान के लिए मरने मारने को तैयार रहता है। सभी धर्मो में नारी की गरिमा को सम्मान देने के लिए उसे आदर्श रूप से शरीर ढकने वाले कपड़ो के परदे में रहने कोकहा गया है। नारी का सम्मान परदे में है नंगेपन में नही है जब सब कुछ ही आँखों के सामने है तो फिर और देखने का आकर्षण कहाँ रह जाता है ? दुर्भाग्य से हमारी सरकारे भी अंतर जातिय विवाह को बढ़ावा देकर इस सामाजिक समस्यां को और जटिल बना रही है। हाल ही में जयपुर में एक रिटायर्ड फौजी की पुत्री ने केरल राज्य के सिविल इंजिनियर करण नायर से लव मेरीज कर ली थी। लड़की की इस शादी से उनके मातापिता, भाई परिवार वाले सब नाखुश थे। लड़की द्वारा माँ बाप से बगावत करके करण नायर से शादी कर ली और अपने परिवार से सम्बन्ध भी तोड़ लिए।

जब जब लड़की का फौजी बाप गाँव के रिश्तेदारो में जाता था, तब तब उसे असहनीय ताने सुनने को मिलते थे। माँ बाप ने बहुत चाहा की अपनी बेटी की शादी का गम भूल जाए परन्तु समाज के ताने उन्हें रोज रोज अन्दर तक भेद देते थे। ऐसे ही कारणों से दुखी होकर रिटायर्ड फौजी ने किराये के शूटर को हायर करके एक दिन अपने ही दामाद को उसके घर जाकर मार डाला। इस अपराध के कारित होने से समाज पर अनेक दुष्प्रभाव पड़े जिनकी भरपाई करना शायद असम्भव है। मृतक करण नायर अपनी विधवा माँ का अकेला कमाने वाला पुत्र था जो मारा गया। अपनी ही पुत्री का सुहाग उजाड़कर अपने दामाद की ह्त्या में रिटायर्ड फौजी, उसकी पत्नी व उसका इंजिनियर पुत्र जेल चला गया।

इस एक अपराध के घटित होने से समाज के अनेक व्यक्तियों व उनके परिवारों के समक्ष इस घटना के बाद सम्मानपूर्वक जीने के लिए गंभीर संकट पैदा हो गये। हालांकि इस घटना के अभियुक्त को जयपुर वेस्ट जिले के पुलिस कप्तान अशोक गुप्ता ने टीम बनाकर तत्परतासे गिरफ्तार कर लिया है। यहाँ पर नारीवादी संगठनो द्वारा मोमबत्ती हाथ में लेकर प्रदर्शन करने से समाज को क्या लाभ हुआ ? मोमबत्ती लेकर प्रदर्शन करने वाली महिलाओ के द्वारा अपने प्रदर्शन से पुलिस पर एक अतिरिक्त दबाव बनाया जाता है। इस प्रकार के संगठन अपनी समाचार पत्रों की लाइनों में छपने की भूख को शांत करने के लिए किसी भी हद तक उतर जाते है जो उचित नही है।

इस घटना में जब जयपुर पुलिस झोटवाडा ए.सी.पी. आस मोहम्मद से पूछा गया तो उनका कहना था कि इस घटना में उनकी सहानुभूति लव मेरिज करने वली लड़की के पति को मारने वाले उसके फौजी पिता के साथ है। क्योंकि एक बाप का दर्द समाज, कानून, पुलिस, अदालत कोई भी सुनना नही चाहता है। यदि लड़की के बाप को कोई सुनकर यदि सही मार्ग बता देता तो शायद यह अमानवीय घटना घटित नही होती। समाज के सभी वर्गों को पुलिस अधिकारी आस मोहम्मद के कहे शब्दों पर विचार करने की शायद वक्त की बड़ी जरुरत है। समाज के सभी वर्गों को इस पर विचार करना भी चाहिए तभी एसी समस्याए रुकेंगी।

मो. हफीज, व्यूरो चीफ, राजस्थान



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