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कांग्रेस 2019 में रोने के लिए मजदूर कहाँ से लाएगी?

Special Coverage News
2 July 2017 6:12 AM GMT
कांग्रेस 2019 में रोने के लिए मजदूर कहाँ से लाएगी?
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Where will the Congress bring in workers to cry in 2019?

एक कहावत है। आपने भी जरूर सुनी होगी। ठोकर खाकर ठाकुर बन जाता है। लेकिन कांग्रेस पर इस कहावत का तनिक भी असर नही हुआ है। कांग्रेसी नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में लगे हुए है। अपने को दूसरे से ज्यादा ताकतवर सिद्ध करने के लिए कांग्रेस का बंटाधार करने की मुहिम छिड़ी हुई है। चार नेता और पांच धड़े। कांग्रेस डूबे या या उसका पतन हो, इससे किसी को फर्क नही पड़ रहा है। नाक नीची नही होनी चाहिए।

जर्जर इमारत की मरम्मत की जानी चाहिए। लेकिन कांग्रेसी नेता इस जर्जरित इमारत को ही गिराने पर आमादा है। कांग्रेस को पहले ही राहुल गांधी रसातल में पहुँचा चुके है। रही सही कसर उसके चमचे और मक्खनबाजी करने वाले पूरी करने में सक्रिय है। यही वजह है कि भाजपा दिनों दिन मजबूत और कांग्रेस गड्ढे में पहुँचने की तैयारी कर रही है। हालात यही रहे तो 2019 में कांग्रेस को रोने के लिए मजदूर भी नही मिलेंगे।


कांग्रेस आज राहुल गांधी के इर्द गिर्द सिमट कर रह गयी है। राहुल की अधिनायकवादी शैली के चलते पुरानी पीढ़ी के कांग्रेसी खामोश रहने को विवश है। पार्टी की दशा और दिशा क्या होगी, कोई नही जानता । खुद राहुल और सोनिया भी इससे अनभिज्ञ है । प्रियंका ने इस जंजाल से मुक्ति पाने का फैसला कर लिया है। अगरचे प्रियंका नेतृत्व संभालती भी है तो पार्टी इतनी खंड खंड होगई है कि वह भी कोई चमत्कार नही दिखा सकती। कांग्रेस का विभाजन या उसका खंडित होना सुनिशिचत होगया है। सौ-दो सौ साल पुरानी पार्टी की दुर्दशा इससे पहले कभी नही देखी गई।
राष्ट्रीय स्तर पर तो पार्टी में घमासान मचा हुआ हुआ है ही, राजस्थान में नेता खुले आम कुश्ती करने पर आमादा है। पायलेट उत्साही और परिश्रमी व्यक्ति है, लेकिन प्रदेश की जनता और यहाँ के कांग्रेसियो को वे ग्राहय नही है। राजस्थान में अगर कोई दमदार नेता है तो वह है अशोक गहलोत। लेकिन उनको गुजरात भेजकर पायलेट को फ्री हैंड कर कांग्रेस ने खुद ही आत्महत्या का निर्णय कर लिया है । रायशुमारी के मुताबिक प्रदेश की 43 प्रतिशत जनता अगले मुख्यमंत्री के रूप में गहलोत को देखना चाहती है । जबकि पायलट को महज 4 फीसदी लोग। दस गुना से भी ज्यादा का अंतर है दोनों की लोकप्रियता में। पायलट से ज्यादा तो घनश्याम तिवाड़ी लोकप्रिय है। 17 फीसदी लोग उन्हें अगला मुख्यमंत्री देखने के लिए लालायित है।
उधर राहुल के बहुत ही करीबी लेकिन राजनीति में पैदल भंवर जितेन्द्रसिंह अपनी समानान्तर दुकान खोलकर बैठे हुए है। अगले मुख्यमंत्री का सपना देखने वाले जितेंद्र सिंह के दरबार मे पायलट से ज्यादा लोगो की भीड़ लगती है। अलवर, भरतपुर, करोली, सवाई माधोपुर, धौलपुर और हरियाणा के बहुत से लोगो की यह मान्यता है कि टिकट वितरण में जितेंद्र सिंह की बहुत बड़ी भूमिका होगी। उधर सीपी जोशी परिदृश्य से अलग हो चुके है। कांग्रेस का यही हाल और नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई इसी प्रकार चली तो कांग्रेस का असितत्व ही खतरे में आ जाएगा!

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