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स्वामी को नहीं मिल रहा कोई स्वामी, खा गये गच्चा

Special Coverage News
9 July 2016 6:56 AM GMT
स्वामी को नहीं मिल रहा कोई स्वामी, खा गये गच्चा
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लखनऊ
पिछले सप्ताह से राजनैतिक गलियारों में ये सवाल तैर रहा है कि हाथी से उतरने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य का नया आशियाना कौन सा होगा? लेकिन आज हम आपको ये बताएंगें कि स्वामी प्रसाद मौर्य ऐसी कौन सी शर्तें लगा दे रहे हैं कि समाजवादी पार्टी में उनकी बात नहीं बनी और बीजेपी को पसीने आ रहे हैं।

बीस साल मायावती के हाथी की सवारी करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य जब हाथी से उतरे तो उनको साइकिल पर सवार कराने के लिए बिना समय गंवाए मंत्री आजम खान और प्रदेश प्रभारी सपा और मंत्री शिवपाल यादव उनसे मिलने पहुंच गए। मौर्य समाजवादियों के गले तो मिल गए लेकिन दिल नहीं मिले। समाजवादियों के स्वामी प्रसाद मौर्य से इस मोहभंग की वजह जानकारी हम आपको बताते हैं। समाजवादी पार्टी ने स्वामी प्रसाद मौर्य की तरफ गर्मजोशी से हाथ बढ़ाया लेकिन स्वामी ने इतनी भारी भरकम डिमांड कर दी कि साइकिल पर वह चढने से पहले ही उतर गए।
सूत्रों के मुताबिक स्वामी प्रसाद मौर्य ने तीन मंत्री पद और 50 सीटे मांगने लगे। स्वामी ने समाजवादी पार्टी को भरोसा देने की कोशिश की कि वो बीएसपी में और बड़ी टूट करा देंगे। पहले ही हारी सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर चुकी समाजवादी पार्टी के बाकी सारे सीटिंग विधायक हैं।

समाजवादी पार्टी और स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक दूसरे को झटके में ही राम राम बोल दिया। सूत्रों के मुताबिक लखनऊ में समाजवादी पार्टी और बीजेपी में दिल्ली से स्वामी प्रसाद मौर्य एक साथ डील कर रहे थे। स्वामी प्रसाद मौर्य और बीजेपी में पिछले चार महीने से गुपचुप बात चल रही थी लेकिन पहले तो बीजेपी ने रुख ठंडा रखा फिर स्वामी प्रसाद मौर्य ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की डिमांड रख दी।

सूत्रों के मुताबिक बीजेपी ने मौर्य की काट के लिए केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया तो बातचीत ठंडे बस्ते में चली गई। अब नए सिरे से बीजेपी और स्वामी की बातचीत शुरु हुई है लेकिन जानकारी के मुताबिक बीजेपी स्वामी को उनकी मांग पूरी कर पाने में सक्षम नहीं दिख रही तो अब स्वामी ने अपनी पार्टी बनाकर बीजेपी से गठबंधन का प्रस्ताव भी दिय़ा है। लेकिन बड़ा सवाल है कि बीएसपी में जो ओहदा और रुतबा स्वामी प्रसाद मौर्य का रहा। 48 घंटे के भीतर पार्टियां उतना महत्व उनको नहीं दे रहीं। मौर्य भी अब भली भांति समझ गये कि बसपा बाला रुतबा तो नहीं है मिलने वाला। वैसे भी बसपा छोड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति का हाल मौर्या जैसा ही रहा है
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