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मायावती का बिखरता कुनबा, तो क्या मुस्लिम गद्दार है ?- डॉ डी एम मिश्र

मायावती का बिखरता कुनबा, तो क्या मुस्लिम गद्दार है ?- डॉ डी एम मिश्र
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मायावती की सबसे बड़ी कमजोरी पैसा है
ईमानदार नेता के साथ जब अच्छे लोग जुड़ते हैं तो उसकी ताकत दोगुनी हो जाती है और फिर वही पार्टी आगे बढ़ पाती है । दूसरी तरफ जब मुखिया ही बेईमान हो और उसमें भ्रष्ट लोगों का जमघट लग जाय तो वह एक - एक करके बिखरने लगती है और एक दिन टूटने के कगार पर आ खड़ी होती है । मायावती का कुनबा अभी पूरी तरह से खड़ा भी नहीं हो पाया था कि एक - एक करके स्तम्भ कहे माने जाने वाले उसके नेता और कार्यकर्ता बाहर जा रहे हैं । मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री जरूर रहीं , लेकिन उत्तर प्रदेश के बाहर उनकी पार्टी का कोई जनाधार नहीं। उनकी पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी बन पाती , उसके पहले ही बिखराव शुरू हो गया।


दुनिया जानती है कि बहन मायावती की सबसे बड़ी कमजोरी पैसा है। विधान सभा हो , लोक सभा हो या निकाय स्तर का ही चुनाव क्यों न हो वह खुलेआम टिकट की बोली लगाती हैं। आखिरी समय तक उम्मीदवार बदलती रहती हैं। बेचारा उम्मीदवार इसी दुविधा में फँसा रहता हैं कि कहीं उससे अधिक पैसा देने वाला कोई आ न जाय और उसका पत्ता साफ हो जाय । उनके शासन काल में सबको यह भली भँाति ज्ञात था कि बिना पैसा दिये उसका कोई काम किसी विभाग में नहीं होने वाला । चपरासी से लेकर मंत्री तक का अपना हिस्सा निर्धारित होता था । जिले के आला अधिकारियों को पैसे के ही दम पर अच्छी पोस्टिंग मिलती थी।

अब सवाल यह उठता है कि जब सारा लेनदेन और भ्रष्टाचार उनके इशारे पर उनके संज्ञान में ही होता रहा तो छोटे कर्मचारी , अधिकारी और मंत्री क्यों नपते रहे हैं और वह खुद दूध की धुली बनी रहीं । जबकि सर्वोच्च न्यायालय में आय से अधिक सम्पति का मुकदमा उन पर विचाराधीन है। मायावती की एक और विशेषता जगजाहिर है , वह अपने अलावा किसी को सही नहीं मानतीं। इसलिए वह किसी की एक नहीं सुनतीं। न किसी पर विश्वास करती हैं। बहुजन समाजवादी पार्टी आपसी भाईचारा , पारस्परिक समानता, ईमानदारी और सबका हित हो के सिद्धान्त पर बनी है । जब डी एस 4 नाम से मान्यवर कांशीराम ने पार्टी बनायी थी तब यह नारा जरूर था -ठाकुर , बनिया , बांभन छोड़ / बाकी सब हैं डी एस 4।

मायावती खुद अपनी पार्टी के मूल सि़द्धान्तों को नहीं मानतीं। अपने लिए तो उच्च आसन लगाती हैं वहीं अपनी पार्टी के मंत्री स्तर तक के लोगों को नीचे दरी पर बैठने के लिए बेालती है । उनकी पार्टी ब्राहमण वाद की धुर विरोधी रही है । ब्राह्मण का पहला पाठ ही है - चरण वंदन । फिर उन्होने चरन वंदन की परम्परा अपने यहाँ क्यों डाल ली ? लोगों का कहना है कि वह अपनी पार्टी में अपना दबदबा पार्टी कार्यकर्ताओं और विधायको - सांसदों पर इसलिए बनाती हैं ताकि वह मनमाने तरीके से धन की बेरोकटोक उगाही कर सकें । कोई डर के मारे बोले न । यही कारण है कि बहुजन समाजवादी पार्टी में लोकतांत्रिक व्यवस्था का पूर्ण अभाव है ।


बहुजन समाज पार्टी का विधिवत गठन मान्यवर कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 को किया था , जिसे दुनिया ने एक सामाजिक क्रान्ति के रूप में देखा था । वैसे मायावती 1977 में ही मान्यवर कांशीराम के सम्पर्क में आ गयी थीं और कोर कमेटी की सदस्य थीं । बाद में वह बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गयीं और मान्यवर कांशीराम संरक्षक बने । कहा जाता है कि मुख्यमंत्री का पद पाते ही , जो मान्यवर कांशीराम की अनुकम्पा से मिला था, मायावती का रंग ढंग बदलने लगा और उनकी महत्वाकंाक्षाएँ परवान चढ़ने लगी। एक प्रकार से देखा जाय तो मान्यवर कांशीराम ही उनका पहला शिकार बने । उन्हें सारे अख्तियार से महरूम कर दिया गया था । यहाँ तक कि जब मान्यवर कांशीराम बीमार पड़े तो मायावती ने उनके परिवार के सदस्यों को भी उनसे मिलने नहीं दिया।


दूसरा बड़ा झटका उन्होंने दिया अपने सबसे करीबी कद्दावर नेता बाबूसिंह कुशवाहा को। उनका नाम राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले में लिया गया। इसके लिए उन्हें सजा भी मिली। य़़द्यपि अभी तक उन पर कोई अपराध सिद्ध नहीं हुआ। सवाल यह उठता है कि जब कुशवाहा जी उनके बेहद करीबी थे तो ऐसी कोई बात नहीं हो सकती जो मायावती के संज्ञान में न रही हो। फिर भी सारा आरोप कुशवाहा पर लगा और मायावती केवल मूकदर्शक ही नहीं अपने को यह सिद्व करने में लगीं रहीं कि यह प्रकरण उनके संज्ञान में बिल्कुल नहीं। उस घोटाले से उनका कोई लेना देना नहीं । यहाँ तक कि उन्हें पार्टी से निष्कासित भी कर दिया। यह है मायावती की व्यक्तिगत नैतिकता और व्यावहारिक जीवन - आचरण। बाबूसिंह कुशवाहा से पहले भी उन्होने बहुजन समाज पार्टी के कई महत्वपूर्ण नेताओं को निकाला था। आर के चौधरी बसपा के महासचिव और सदस्यों में थे लेकिन मायावती ने 2001 में उन्हे भी बाहर निकाल दिया था। उन पर अनुशासनहीनता का आरोप लगा था । इसी प्रकार स्वामीनाथ मौर्य जो मायावती के बेहद विश्वसनीय माने जाते थे और पार्टी के महासचिव रहे पार्टी से बाहर गये और भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीतकर वर्तमान में मंत्री हैं । यो तो पार्टी से बाहर जाने वालों की एक लंबी फेहरिस्त है फिर भी कुछ महत्वपूर्ण नाम और भी है जिनका जिक्र इस लेख में जरूरी है। बसपा के संस्थापक रहे राजबहादुर ,दद्दू प्रसाद , जुगल किशोर , सोने लाल पटेल आदि जो मान्यवर कांशीराम के सहयोगी थे पार्टी सेे निकाले गये। पार्टी से अखिलेश दास का जाना भी बसपा के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है। मान्यवर कांशीराम के सगे छोटे भाई दरबारा सिंह का भी यही हस्र हुआ था। पार्टी से जो लोग गये वे या तो दूसरी पार्टी में जगह पा गये या खुद की नई पार्टी बना लिये। नतीजा यह हुआ कि पार्टी दिनोदिन कमजोर होती चली गयी और 2017 की यूपी विधान सभा का चुनाव बुरी तरह हार गयी। लेकिन मायावती नें हार के लिए ई वी एम सहित अन्य कारणेंा को बताया।


अब सबसे बड़ा झटका मायावती और बहुजन समाजवादी पार्टी को मिला है उनके सबसे करीबी कहे जाने जाने वाले मुस्लिम नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी से। नसीमुद्दीन सिद्दीकी मायावती के सबसे करीबी हैं तो उनके बारे में जानते भी ज्यादा होगे। मायावती भी अपने हर अच्छे बुंरे काम को उनसे साझा करती थीं। नसीमुद्दीन सिद्दीकी उनकी कार्यशैली से विधिवत परिचित थे। इसलिए वह पहले से ही तैयारी में थे। उनकी बातों को , उनके गुप्त आदेशों और निर्देशों को वह टेप भी करते चलते थे। जिसे हम सब ने अखबारों में पढा और टीवी चैनलों पर पर सुंना भी। जिससे साफतौर पर कहा जा सकता है कि मायावती नसीमुद्दीन सिद्दीकी की गतिविधियों और शातिराने चाल से पूर्णतया अनभिज्ञ थीं और नसीमुद्दीन सिद्दीकी अपनी चाल में कामयाब हो रहे थे । टेप में वह उतना ही बोल रहे है जितने की आवश्यकता थी । इसलिए मायावती ने जो पलटवार करके कहा है कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी '' ब्लैकमेलर '' हैं । उसमें भी किसी प्रकार के संदेह की गंुजाइश नहीं रह जाती। संभव है कि मायावती पर 50 करोड़ की माँग करने का आरोप लगाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने पहले मायावती से कोई सौदा किया हो और उसके पूरा न होने पर यह रास्ता अख्तियार किया हो । उनसे कहा हो मेरी माँग पूरी कीजिए नही तो मैं आपको बदनाम कर दूँगा। उस स्थिति में आप का मुस्लिम वोटर भी आपको छोड़ जायेगा। मायावती बातो - बातों में अपनी बुरी हार से तिलमिलायी तैश में कह गयी थीं - मुसलमान गद्दार है। नसीमुद्दीन सिद्दीकी के हाथ यह एक मजबूत हथियार लग गया, वह यह मान बैठे। वह स्वयं मुसलमान हैं और मुसलमान उनकी बातों पर ऐतबार करेगा इसलिए दाढ़ी वाले मौलानाओं के खिलाफ कहे मायावती के अभद्र शब्दों को भी संनाकर उन्होने अपना मामला बना लिया। एक बात और । दुनिया तो यही समझती रही - जैसे महाबली रावन के दो भाई कुम्भकरण और विभीषण थे । वैसे ही बहन मायावती के दो खास भाई हैं। सतीश मिश्र और नसीमुद्दीन सिद्दीकी। नसीमुद्दीन सिद्दीकी दूध के धुले कब परम पवित्र विभीषण बन बैठे , पता ही नहीं चला । पता तो तब चला जब उन्हें भी विभीषण की तरह बाहर कर दिया गया। अब देखना यह है कि कोई -''राम'' उन्हे भी अपनानें को मिलता हैं कि नहीं ? मायावती की सोने की लंका का आगे क्या होगा ?
डॉ डी एम मिश्र कवि व साहित्‍यकार
शिव कुमार मिश्र

शिव कुमार मिश्र

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