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समाजवादी नेता व विधान सभा सदस्य शिवपाल सिंह यादव ने डॉ० लोहिया की जयंती एवं हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन के संयोजक भगत सिंह के बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में समाजवादी चिंतक व चिन्तन सभा के अध्यक्ष दीपक मिश्र द्वारा संपादित व संकलित लोहिया के ऐतिहासिक भाषणों की सीडी का विमोचन किया।
इस अवसर पर शिवपाल सिंह ने कहा कि भगतसिंह ने भारत को आजाद कराकर देश में समाजवादी व्यवस्था लागू करने का सपना देखा था। स्वतंत्रता और समाजवाद हमारे देश के शहीदों के दो आदर्श व मधुर स्वप्न थे। भगत के सपनों को डॉ० लोहिया ने सैद्धांतिक आधार दिया। आज भगत और लोहिया के विचार उनके जीवनकाल से भी अधिक प्रासंगिक व समीचीन हैं। नई पीढ़ी को दोनों दार्शनिकों के विचारों को पढ़ना चाहिए। दोनों के जीवन दर्शन से देशभक्ति, त्याग व समर्पण की सीख मिलती है। देश यदि लोहया के विचारों पर चला होता तो आज तस्वीर कुछ और होती। हमारा देश समग्र विकास में 129 देशों से पीछे न होता। लोहिया ने आजादी के बाद लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कई अभियानों एवं आन्दोलनों का सूत्रपात किया। लोहिया के प्रशंसकों में अल्बर्ट आइंस्टाईन जैसी महान विभूतियाँ भी थीं। लोहिया ने अमेरिका में रंगभेद के खिलाफ़ सत्याग्रह कर गिरफ्तारी दी थी। वे गोवा मुक्ति संग्राम तथा मणिपुर में लोकतंत्र की स्थापना हेतु चलाए गए आन्दोलन के भी सूत्रधार थे। लोहिया सही मायने में सर्वहारा थे। उनके भाषण अपने समय के अनमोल वैचारिक दस्तावेज़ हैं।
यादव ने कहा कि गाँधी के बाद लोहिया ने लोकमानस को सर्वाधिक प्रभावित किया और देश की राजनीति को नई दिशा दी। लोहिया अपने आप में चलते-फिरते विश्वज्ञानकोष थे। भारत छोड़ो आन्दोलन की सफलता का श्रेय लोहिया एवं भूमिगत समाजवादियों को जाता है।
विधान परिषद सदस्य एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री अशोक बाजपेयी ने कहा कि लोहिया ने चौखम्भा राज, विकेन्द्रीकरण, सप्तक्रांति जैसी अवधारणाएं दी। लोहिया ने अपने विचारों से लोकशाही व लोकतंत्र को गुणात्मक रूप से मजबूत किया। लोहिया ने सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी।
दीपक मिश्र ने कहा कि लास्की के बाद लोहिया ही एक मात्र ऐसे समाजवादी चिन्तक हैं जिन्होंने कई देशों के समाजवादी दलों को वैचारिक ताकत दी। वे जितने बड़े राजनेता उतने ही महान अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री व साहित्यकार थे। लोहिया ने "जन", "मैनकाइण्ड", "कृषक" व "इंकलाब" जैसी पत्रिकाएं निकाली। मिश्र ने लोहिया और पंडित दीन दयाल उपाध्याय जैसे चिंतकों को भारत रत्न से विभूषित न करने के लिए केन्द्र सरकार को आड़े हाथों लिया। संगोष्ठी को शिक्षक नेता व लुआक्टा के अध्यक्ष डा मनोज पाण्डेय, तिर्मल, दिनेश त्रिपाठी, अमित जानी, युवा साहित्यकार पंकज चतुर्वेदी, लालजीत यादव समेत कई बुद्धिजीवियों एवं समाजवादियों ने सम्बोधित किया।