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सहज ,कर्मठ और ईमानदार आईपीएस अधिकारी है सुलखान सिंह, पूरा परिचय जानें नए डीजीपी का
लखनऊ: रहने के लिए सिर्फ तीन कमरे का एक फ्लैट। लखनऊ के अलकनंदा अपार्टमेंट में। गृह जनपद बांदा में महज ढाई एकड़ जमीन। बतौर आइपीएस 36 साल की नौकरी में इतनी संपत्ति जुटा पाए हैं यूपी पुलिस के नए सुलतान बने सुलखान सिंह। आईएएस-आईपीएस की बात छोड़िए, आज जब बाबुओं के भी करोड़ों के जायदाद खड़ी कर लेने की खबरें आती हैं, तब सुलखान सिंह जैसे अफसर मिसाल पेश करते हैं।
सुलखान यूपी के उन बिरले आईपीएस हैं, जिन्होंने नेताओं के पैर छूकर पोस्टिंग के जमाने में भी अपनी रीढ़ की हड्डी सही-सलामत रखी है। कल्याण सिंह के जमाने में अगर पुलिस का इकबाल बुलंद हो सका था, वह उसलिए कि डीजीपी की कुर्सी प्रकाश सिंह जैसे तेजतर्रार और ईमानदार अफसर के हाथ में थी। जो जिलों और थानों की नीलामी नहीं लगाते थे। आज सुलखान सिंह के हाथ में यूपी पुलिस की कमान है। उम्मीद है कि अब थाने नहीं बिकेंगे। जैसा कि सपा सरकार में खबरें आती थीं। दारोगाओं को योग्यता नहीं बल्कि माल कमाकर देने की योग्यता से थाने मिलते थे।
सुलखान सिंह की ईमानदारी ही अब तक उनकी करियर की राह में रोड़ा बनी रही। अगर 2007 के बसपा राज में सुलखान सिंह मुलायम के समय यूपी पुलिस भर्ती घोटाले की पोल न खोलते तो अब तक कब के डीजीपी बन चुके होते। भला सोचिए, यूपी के आइपीएस अफसरों की सीनियारिटी लिस्ट में नंबर 1 पर नाम है। मगर अखिलेश यादव के राज में उनसे आठ सीढ़ी नीचे बैठे जावीद अहमद को डीजीपी की कुर्सी मिल गई। जावीद अहमद भी काबिल अफसर माने जाते रहे हैं मगर ऊपर के सात अफसरों को नजरअंदाज कर डीजीपी पद पर बैठाना सरकार की विशेष रुचि की तरफ इशारा करता है।
जब 2012 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो भर्ती घोटाले की जांच करने की कीमत चुकानी पड़ी। आम तौर पर उन्नाव के जिस पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में डीआइजी स्तर के अफसर की तैनाती होती थी, वहां सुलखान सिंह को तब भेजा गया, जब वह एडीजी रैंक के अफसर थे। यहां काम करते हुए 10 अप्रैल 2015 को प्रमोशन पाकर डीजी मिले। जिसके बाद डीजी ट्रेनिंग की कुर्सी मिली। भले ही अफसर इस पद को अपने लिए सजा मानते हों मगर सुलखान सिंह ने ट्रेनिंग के तौर-तरीकों को सुधारने में खास भूमिका निभाई। यानी जो भी जिम्मेदारी सरकार ने दी, उससे हरसंभव न्याय करने की कोशिश की। सुलखान सिंह ने आइआइटी रुड़की से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल किए। फिर एफआइआइ की। विधि स्नातक भी हुए। फिर सिविल सेवा की तैयारी की तो भारतीय पुलिस सेवा में चुने गए। वर्ष 1980 बैच के सुलखान सिंह की नौकरी ट्रेनिंग आदि के बाद 1983 में कन्फर्म हो गई। तब से लगातार कई जिम्मेदारियां संभालते गए। 2001 में लखनऊ में डीआइजी रहने के दौरान कई भ्रष्ट पुलिस अफसरों पर ट्रांसफर का हंटर चलाकर भी सुर्खियों में रहे।