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अपने अस्तित्व के लिए कर रही संघर्ष... History of river Ashi erupted by the geography of Varanasi
आशुतोष त्रिपाठी
वाराणसी: वरुणा और असी नदी के बीच गंगा तट पर बसा सांस्कृतिक एवं धार्मिक नगरी वाराणसी प्राचीन काल से ही विभिन्न मत-मतान्तरों की संगम स्थली रही है। विधा के इस पुरातन और शाश्वत नगर ने सदियों से धार्मिक गुरूओं, प्रचारकों एवं सुधारको को अपनी ओर आकृष्ट किया है। चाहे वह भगवान बुद्व, शंकराचार्य, रामानुज,संतकबीर, गुरूनानक, तुलसीदास, चैतन्य, महाप्रभु, रैदास हो सभी किसी ना किसी प्रयोजन हेतु इस देवनगरी से जुडे़ रहे। आज यह नगर अपनी पहचान के अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।
वाराणसी में बहने वाली असी नदी जो कभी वाराणसी के नाम का हिस्सा थी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। आज असी नदी नाला बना दी गई है । इसे नाला घोषित करने के बाद तो मानो इस पर कब्जा करने की होड़ लग गयी। वरुणा एवं अस्सी जिनके योग से वाराणसी नाम पड़ा नाले के रुप में परिवति॔त हो चुकी है। इन दोनों नदियों में पानी कम कचरा अधिक नजर आता है। उधर से गुजरने वाले लोग बदबू के चलते नाक पर कपड़ा रखने को मजबूर होते हैं।
असी नदी में शहर के बड़े हिस्से का गंदा पानी बह रहा है। वरुणा में बड़े-बड़े गन्दे नाले बेरोकटोक गिर रहे हैं। नदी के दोनो किनारों पर अवैध कब्जा कर अट्टालिकाएं बन रही है। कालोनियों का सारा गंदा पानी नदी में गिर रहा है यही नही शहर का सारा कचरा इनके किनारों पर डाला जा रहा है। इसके लम्बे चौड़े पाट-किनारों पर भू-माफियाओं की निगाह ऐसी गड़ी कि मात्र पिछले10 वर्षों में ही इन भू-माफियाओं, धन पिपासुओं ने इसे नाले से नाली में बदल दिया। सब ने असी को सुखाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखा । पैसा देकर सरकारी कागजातों में असी नदी के प्रवाह मार्ग के सूखे भूखण्ड पर अवैध तरीके से पहले व्यक्तिगत नाम चढ़वाए गए, फिर पुलिस-प्रशासन और सत्ता की आड़ लेकर इन भूखण्डों पर कब्जा किया गया। विडम्बना तो यह है कि यह प्रक्रिया उस राज में ज्यादा परवान चढ़ी जिन्होंने हिन्दू सभ्यता और संस्कृति के नाम पर एक प्रकार से पिछले पन्द्रह वर्षों से वाराणसी पर अपना शासन जमा रखा था। वाराणसी नगर निगम पिछले एक दशक से भाजपा के पास है, वाराणसी लोकसभा की सीट तो दो दशक से भाजपा के पास रही और आज राज्य और केंद्र दोनों में भाजपा की सरकार है लेकिन किसी को फिक्र नहीं कि दम तोड़ चुकी असी का जीर्णोद्धार कर सके।
लोगों के सामने भी लाख टके का एक सवाल अनुत्तरित है कि असी (अस्सी) नदी गई कहां। हैरत की बात भी हैं। मसलन कुआं, सडक, खेत, खलिहान यहां तक कि पगडंडियों व नाला-नालियों तक का हिसाब रखने के लिए पटवारी से लगायत कलेक्टर तक के भारी भरकम अमले की नजर के सामने से अचानक एक मुकम्मल नदी असी गायब हो गई, .कैसे.....? सवाल का जवाब नदारद है। असी नदी के अवसान की दर्द भरी दास्तान कोई पौराणिक युग की घटना नहीं है। यह सब कुछ हुआ है चार पांच दशक के अंदर।
आश्चर्य इस बात का है कि आज जब सामान्य सी बरसात भी हो जाए तो यह नदी अपना पूर्व रूप लेने लगती है जिसके कारण नदी भू-भाग पर अवैध कब्जा कर अट्टालिकाओ में रहने वालो को जन -धन का खतरा बराबर बना रहता है फिर भी लोग विपदा और खतरे को भाँप नहीं पा रहे है ।
इस प्राचीन नदी को, जिसके कारण वाराणसी का अस्तित्व संसार के समक्ष आया, अन्तिम विदाई दे दी गई है । बात सुनने में हैरतअंगेज भले ही लगे पर सच यही है कि बनारस के भूगोल से असी का इतिहास तकरीबन मिट चुका है।
असी के अस्तित्व को लेकर जब वाराणसी के मेयर रामगोपाल मोहले से वार्ता करने का प्रयास किया गया तो मेयर साहब व्यस्तता का बहाना बना कर कन्नी काट गये।
बहरहाल वैश्विक स्तर पर मानव सभ्यता, संस्कृति और अध्यात्म को राह दिखाने वाली इस नदी के अस्तित्व के लिए कुछ सामाजिक संगठन छटपटाते और संघर्ष करते दिख रहे है।
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित देश के जाने-माने पर्यावरण विशेषज्ञ,प्रो. बी.डी. त्रिपाठी:- मनुष्य और नदियों का नाता किसी से छुपा नहीं है। पीने के पानी, नहाने, धोने से लेकर सिचाई तक मनुष्य नदियों पर निर्भर है। यहां तक कि सारे संस्कार एवं धार्मिक अनुष्ठान नदियों के किनारे सम्पन्न होते हैं। धार्मिक नगरी वाराणसी में गंगा प्रदूषण के चलते काली पड़ गयी है। उनका बहाव नाम मात्न का रह गया है।
किसी भी बडी नदी को प्रवाहमान रखने के लिए प्रकृति का अपना एक सिस्टम होता है। छोटी नदियां उससे संगम कर उसे प्रवाह प्रदान करती हैं। गंगा के साथ भी यही है। बिल्कुल सामान्य समझ वाली बात है कि वाराणसी नगर के सामनेघाट छोर पर असी नदी का जल गंगा को फोर्स देता था। इससे नगर की गंदगी आगे बढ जाती थी। पुन: आदिकेशव घाट छोर पर वरुणा नदी का जल गंगा में संगम कर गंदगी को और आगे बढा देता था। अब असी रही नहीं। वह नगवा नाले के रूप में हो गई। इससे उस गंगा का पूरा प्रवाह ही बाधित हो गया है | जिसके चलते वाराणसी में गंगा और प्रदूषित हो गई तथा घाटो पर सिल्ट का भी जमाव हो रहा है।
शिव कुमार मिश्र
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