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बशीरहाट की पीड़ा: शरिया की गिरफ्त में बंगाल, चौंका देने वाली असलियत

Special Coverage News
8 Aug 2017 4:16 PM GMT
बशीरहाट की पीड़ा: शरिया की गिरफ्त में बंगाल, चौंका देने वाली असलियत
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अश्वनी मिश्र, बशीरहाट-बादुरिया से लौटकर "साभार पांचजन्य"

प. बंगाल में सत्ता की आंखें बंद हैं और मजहबी उन्मादियों ने हिन्दुओं पर हिंसा का कहर बरपाया हुआ है। स्वामी विवेकानंद, खुदीराम बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सुभाष चन्द्र बोस, बाघा जतिन और बिपिन चन्द्र पाल की धरती आज न केवल जिहादी तत्वों के शिकंजे में जकड़ी है बल्कि ममता सरकार की उसे कथित शह भी मिली हुई है


''हमारी भरी-पूरी कपड़े की दुकान थी। रोज की तरह हम दुकान पर थे कि अचानक यतीमखाने से सैकड़ों की संख्या में लड़के आए और धमकाते हुए दुकानें बंद कराने लगे। वे 'अल्लाहो अकबर', 'आर्यों यहां से भागो, यह जमीन हमारी है', 'हिन्दुओं का सब कुछ लूट लो' जैसे भड़काऊ नारे लगा रहे थे। सड़क पर 500 से ज्यादा लोगों की उन्मादी भीड़ थी। इसमें सबसे आगे यतीमखाने के लड़के, स्थानीय और बाहरी मुसलमान शामिल थे। कोई हिन्दू जब उनसे कुछ पूछने की हिम्मत करता तो भीड़ उसे दुकान से घसीटकर निकालती और मारने लगती थी। लिहाजा लोगों ने डर कर दुकानें बंद कर दीं। इसके बाद तलवार, सरिया, तमंचे और देसी बम से लैस मजहबी तत्वों की भीड़ हिन्दुओं की दुकानों पर टूट पड़ी और लूटपाट की। उपद्रवियों ने दुकानें तहस-नहस कर दीं, उनमें आग लगाई और जिसने भी विरोध किया, उसे बेरहमी से पीटा। लेकिन मुसलमानों की दुकानों को छुआ तक नहीं। जो मुसलमान हमारे साथ उठते-बैठते थे, हम उनसे मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। उलटे वे हमारी दुकानों को तबाह होते देख हंस रहे थे। उनमें से कई तो भीड़ को उकसा रहे थे और उनकी मदद भी कर रहे थे। हमारा सबकुछ खाक हो गया। हम तबाह हो गए। हमारी खैरियत पूछने वाला कोई नहीं है। बच्चे को दूध पिलाने तक के पैसे अब हमारे पास नहीं हैं। भीख मांगने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा।''
बादुरिया और बशीरहाट का दंगा पूरी तरह से तृणमूल द्वारा सुनियोजित था, क्योंकि लगातार अल्पसंख्यकों का समर्थन कम होता जा रहा है। यह समर्थन कैसे बना रहे इसलिए कुछ ऐसा करवाते हैं जिससे लगे कि वे ही मुसलमानों के सबसे बड़े हितैषी हैं।
—कर्नल दीप्तांशु, प्रदेश भाजपा नेता
प्रशासन कानून-व्यवस्था संंभालने में पूरी तरह सक्षम है। हम किसी भी असामाजिक तत्व को छोड़ने वाले नहीं हैं। अब हालात सामान्य हैं।
—सी सुधाकर,
पुलिस अधीक्षक, उत्तर 24 परगना

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बादुरिया और बशीरहाट दंगों की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। हम देखना चाहते हैं कि इसमें कौन लोग शामिल थे। राज्य सरकार न्यायिक आयोग को हर जानकारी उपलब्ध कराएगी। एक निष्पक्ष जांच होने दीजिए।
—ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल
इतना बताने के बाद 43 वर्षीय तन्मय गैन बेतहाशा रोने लगे। तन्मय पश्चिम बंगाल के बादुरिया-सहस्रनगर दंगे के पीड़ितों में से एक हैं। बादुरिया-सहस्रनगर कोलकाता से 70 किलोमीटर दूर भारत-बंगलादेश सीमा के पास बसा एक गांव है। दरअसल 30 जुलाई को उत्तर 24 परगना जिले के बादुरिया-रुद्रपुर निवासी 17 वर्षीय किशोर की फेसबुक से एक आपत्तिजनक पोस्ट हुई। उसकी मित्र सूची में कई मुस्लिम भी जुड़े थे। कुछ ही समय में इस पोस्ट पर मुस्लिमों की नजर गई और विरोध होने लगा। बादुरिया बाजार में सुन्नत-ए-जमात नामक संगठन चलाने वाले अब्दुल मतीन ने तत्काल एक बैठक बुलाई जिसमें नगर निगम के चेरयरमैन और तृणमूल कांग्रेस के नेता तुषार भी थे। इसी बैठक में दंगे की योजना बनी थी। हालांकि जिस दिन यह आपत्तिजनक पोस्ट आई, उसी दिन शाम से बादुरिया में खौफ का साया मंडराने लगा था। लेकिन कोई अप्रिय घटना नहीं हुई थी। इसी बीच, पुलिस ने आरोपी किशोर को साइबर अपराध के तहत गिरफ्तार कर लिया। जिस दिन उस किशोर को पकड़ा गया, उसी रात करीब दो बजे चार हजार से ज्यादा दंगाई बादुरिया थाना पहुंचे और पुलिसवालों को धमकाया। उपद्रवियों ने थाने पर भी हमला किया। धीरे-धीरे यह आग आसपास के गांवों में फैलनी शुरू हुई और वहां भी उपद्रवी हिंदुओं के विरुद्ध हिंसक हुए। इसी बीच दंगाइयों ने पुलिस अधीक्षक को घेरकर उन पर हमला किया और उनके वाहन को क्षतिग्रस्त कर दिया। सुनियोजित तरीके से बशीरहाट, रुद्रपुर, तेंतुलिया, त्रिमोहनी, मैलाखोला, बादुरिया, डोंडीहाट, मायार बाजार, शिवाटी, बुईकरा, बांगजोला, नारायणपुर, स्वरूपनगर, मांगरी श्रीरामपुर, रसुई, जीवनपुर, बैराछाया, जंगलपुर, रामचंद्रपुर, केवटशा, पायकीहाट, कारीगर पारा, नाटुरिया, आशुलबुईकर, स्टेशन पारा सहित कई गांवों को निशाना बनाया गया। दंगाई केवल हिंदुओं की दुकानों, मकानों, ढाबों और प्रतिष्ठानों को लूट रहे थे। यह उत्पात 30 जून की रात से 4 जुलाई तक विभिन्न जगहों पर चलता रहा और पुलिस प्रशासन मूकदर्शक बनकर देखता रहा। हालात इतने बेकाबू हो गए कि प्रशासन को इंटरनेट बंद करना पड़ा। बीते दिनों उत्तर 24 परगना जिला दंगे के चलते राष्ट्रीय अखबारों और समाचार चैनलों में तो छाया रहा लेकिन राज्य के मीडिया के लिए यह कोई बड़ी खबर नहीं थी।
दंगा प्रभावित क्षेत्र में प्रशासन की सख्ती के बावजूद हम बशीरहाट से करीब 35 किलोमीटर दूर भारत-बंगलादेश राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित सहस्त्रनगर पहुंचे, जहां तन्मय का घर है। रास्ते में कई जगह दंगे का खौफनाक मंजर दिखाई दे रहा था। जली हुई दुकानें और प्रतिष्ठान बर्बादी की कहानी बयां कर रहे थे। बाजार में गश्त करते बीएसएफ के जवान भी दिखे। तन्मय की बस्ती में एक अनजान शख्स को देखते ही लोग सतर्क हो गए और पूछताछ करने लगे। हम कुछ कहते, इससे पहले ही हमारे एक साथी ने बांग्ला में उनसे हमारा परिचय कराया। ''ये पत्रकार हैं और दिल्ली से आप लोगों का दुख जानने आए हैं। दंगाइयों ने आपके साथ जो सुलूक किया, आप इन्हें बताएं।'' हम जिस जगह बैठे थे वह तन्मय के घर का बाहरी हिस्सा था। बार्इं ओर खपरैल से बना उनका घर था, जहां मातम पसरा हुआ था। पास में खड़े तन्मय के दोनों बेटों, एक बेटी, पत्नी और माता-पिता, सबके चेहरे पर मायूसी साफ झलक रही थी। आस-पास बस्ती के जितने भी लोग खड़े थे, उनके चेहरे से डर और तनाव दिख रहा था। शुरू में तो वे ज्यादा कुछ बताने में हिचक महसूस कर रहे थे लेकिन जब उन्हें इस बात का विश्वास हो गया कि ये हमारा दुख-दर्द ही जानने आए हैं तो वे सभी बारी-बारी से अपना दर्द साझा करने लगे। बस्ती में खौफ का आलम यह था कि बेटे को गोद में लिए आपबीती सुना रहे 36 वर्षीय विनोद पाल की पत्नी बाहर नजर रख रही थी कि कहीं कोई आ न धमके और फिर से कुछ दंगा-फसाद शुरू हो जाए। डरे-सहमे लोग दो शब्द बोलते, फिर चौकन्नी निगाहों से इधर-उधर देखते। जैसे माहौल में किसी अज्ञात भय को टटोलने की कोशिश कर रहे हों। विनोद ने कहा, ''यहां पहली बार ऐसा नहीं हुआ है। बहुत दिनों से यहां उन्माद फैलाने का काम किया जा रहा है। मामूली बात पर भी मुसलमान उग्र हो जाते हैं और हिंदुओं को धमकाते हैं। चूंकि इस बार उनके आतंक का दायरा व्यापक था, इसलिए यह सभी को दिख गया। इस दंंगे में तृणमूल के स्थानीय नेताओं का हाथ है। वे हमारी जमीनों पर कब्जा करना हमें भगाना चाहते हैं।'' महिलाओं का करके था कि अब इस जगह हिंदुओं का रहना दूभर हो गया है।
कोलकाता विश्वविद्यालय से परास्नातक विनोद मुंबई में बैंक कर्मचारी हैं और छुट्टी पर घर आए हुए थे। वे दंगे का मंजर याद करते ही सिहर उठते हैं। वे कहते हैं, ''ऐसा दंगा मैंने पहली बार देखा। वे चुन-चुन कर हिंदुओं के घरों में तोड़फोड़ और आगजनी कर दुकानें लूट रहे थे और विरोध करने वालों को बेरहमी से पीट रहे थे। मेरे लिए यह सब अजीब था। मुझे लग रहा था कि पुलिस इस पर नियंत्रण करेगी लेकिन वह इन्हें छू तक नहीं रही थी उलटे उनकी मदद कर रही थी।'' वे बताते हैं, ''अब यहां बाहरी मुसलमान बहुत आते हैं, खासकर बंगलादेश के मुल्ला-मौलवी। वे यहां जमीन खरीद कर बस रहे हैं। तृणमूल के कुछ मुस्लिम नेताओं की सरपरस्ती में यह सब हो रहा है। यही वजह है कि पूरे क्षेत्र में मस्जिदों की भरमार है और उसी वजह से यहां इस तरह के दंगे हो रहे हैं।''
मंदिरों को बनाया निशाना
दंगे में उपद्रवियों ने दर्जनों मंदिरों को तहस-नहस कर दिया। उन्होंने जगन्नाथजी की रथयात्रा पर हमला किया और रथ को तोड़ डाला। इसके अलावा मैलाखोला का काली मंदिर, बशीरहाट का शिवमंदिर, डोंडीहाट, माया बाजार, स्टेशन पारा एवं अन्य जगहों पर दर्जनों छोटे-बड़े मंदिरों की मूर्तियों को खंडित करके उन्हें बम से उड़ाने तक की कोशिशें कीं।
हम सुबह के करीब 7:30 बजे बशीरहाट के उस मंदिर के पास थे, जिसे दंगाई बम से उड़ाना चाहते थे, लेकिन हिंदुओं के कड़े विरोध के कारण वे सफल नहीं हुए। मंदिर के पास ही चाय की एक दुकान है, जो एक तरह से हिन्दू-मुस्लिम बस्ती की सीमा रेखा है। वहां भी कुछ लोगों से बात की। चाय की चुस्कियां ले रहे मोलोई दत्त का दवाओं का कारोबार है। वर्षों तक कम्युनिस्ट पार्टी में सक्रिय रहे दत्त बताते हैं, ''सामने ये जो मंदिर देख रहे हैं, मुसलमानों ने इसे तोड़ने और बम से उड़ाने की पूरी कोशिश की, लेकिन बस्ती के हिंदुओं ने उनका मंसूबा पूरा नहीं होने दिया। लेकिन दूसरी जगहों पर कई मंदिरों को उन्होंने तोड़ दिया। तीन दिन चले दंगे ने मेरी आंखें खोल दीं। मुझे लगता था कि मैं कम्युनिस्ट पार्टी से हूं तो दंगाई मुझे नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। लेकिन मेरी धारणा गलत निकली। उपद्रवी यह नहीं देख रहे थे कि कौन किस दल या संगठन से जुड़ा है, वे तो बस हिंदुओं पर हमले कर रहे थे।''
पेशे से अध्यापक शंकर कुमार विश्वास ने बताया, ''दंगे में दर्जनों हिन्दू हताहत हुए हैं और सैकड़ों की जान-माल की क्षति हुई है। लेकिन सरकार का कोई भी मुलाजिम यहां की खबर लेने तक नहीं आया। बशीरहाट में मुसलमानों की आबादी 60 फीसदी से अधिक हो गई है। वे नहीं चाहते कि हिंदू यहां रहे। वे यही चाहते हैं कि यहां सिर्फ मुसलमान ही रहें और शरीअत के हिसाब से कानून चले। वे अपने इरादों में काफी हद तक सफल हो रहे हैं।'' इस दौरान हमने कई लोगों की बातें सुनीं। सभी का एक ही बात पर जोर था कि मुस्लिम आबादी जैसे-जैसे क्षेत्र में बढ़ रही है, हिन्दुओं का रहना दूभर हो रहा है।
इसी बीच हमारा पास के कई दंगा प्रभावित गांवों में जाना हुआ। पहले शिवाटी गए जहां मुसलमानों ने हिन्दुओं के घरों में तोड़फोड़ की थी और कई लोगों पर धारदार हथियारों से हमला किया था। शिवाटी से लगभग 15 किमी. दूर बादुरिया था। शिवाटी और बादुरिया के बीच एक नदी है जिसे पार कर बादुरिया पहुंचते हंै। इसी नदी के पास दर्जनों की तादाद में र्इंट के भट्ठे दिखाई देते हैं। पूछने पर पता चला है कि इलाके में र्इंट का बड़ा कारोबार होता है और यहीं से र्इंटें दूर-दूर तक जाती हैं। हम जिस नदी के पास नाव का इंतजार कर रहे थे, वहां की सभी नावों का ठेका बशीर रहमान नाम के एक व्यक्ति के पास था। वह जाने वाले हर व्यक्ति से पैसे वसूल रहा था। इसी दौरान मैंने उससे दंगे के बारे में जानना चाहा तो उसने बांग्ला में दो टूक जवाब दिया,''हमें कुछ नहीं मालूम। तुम बादुरिया जाओ। सब पता चल जायेगा।'' इस बेरुखे जवाब से साफ झलक रहा था कि वह कुछ भी बताना नहीं चाह रहा। खैर, कुछ ही पल में नाव पर सवार होकर हम बादुरिया के तट पर पहुंचे, जहां से थोड़ी दूर चलने के बाद पुुलिस थाना दिखाई दिया। दोपहर का वक्त था। बाजार में सन्नाटा पसरा था और जगह-जगह बीएसएफ के जवान गश्त करते दिखाई दे रहे थे। बाजार में जगह-जगह जली हुई गाड़ियां दिखाई दे रही थीं। थाने पर जिहादियों के किए हमलें के निशान स्पष्ट तौर दिखाई दे रहे थे। थाने के गेट पर खड़े पुलिस के सिपाही किसी को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं दे रहे थे। मीडिया को भी नहीं। जब हमने थाने के अंदर जाना चाहा तो गेट पर तैनात सिपाहियों ने बताया,''थाने में अभी कोई नहीं है। सभी गश्त पर गए हैं, जब आ जाएं तब आ जाना।'' लिहाजा मैंने वहां तैनात पुलिसकर्मी से ही घटना के बारे में पूछा। थोड़ी देर टालमटोल के बाद नाम न छापने की शर्त पर एक पुलिसकर्मी ने बताया,'' उस रात हजारों की तादाद में मुसलमानों की भीड़ ने थाने पर हुड़दंग किया और पूरे बादुरिया में उत्पात मचाया। यहां तक कि भीड़ पुलिस को भी नहीं बख्श रही थी। कई पुलिसवालों को मारा-पीटा, जबकि बाकी डर कर भाग गए। सारा बवाल बस एक फेसबुक पोस्ट से हुआ।'' इतना बता कर सिपाही चुप हो गया और आगे कुछ भी बताने से इनकार कर दिया।
हम अलग-अलग बस्तियों में गए और दर्जनों परिवारों से मिले जिनकी दुकानों को लूट लिया गया या आग लगायी गई थी। पास में ही रुद्रपुर भी जाना हुआ। रुद्रपुर ही वह जगह है जहां किशोर अपने चाचा के पास रहता था। घर के बार्इं तरफ मुस्लिम रहते हैं और पास ही एक मस्जिद भी है। दंगाइयों ने 30 जुलाई की रात इसी घर को तोड़ने और जलाने की कोशिश की थी। फिलहाल अब यहां कोई नहीं था और लोहे के गेट पर ताला जड़ा हुआ था। खिड़कियों के शीशे टूटे हुए थे। उन्मादियों द्वारा घर पर किए गए हमले के निशान साफ तौर पर दिखाई दे रहे थे। मैंने आस-पास के लोगों से जब उस खौफनाक रात के बारे में पूछने की कोशिश की तो कोई बात करने पर राजी ही नहीं हो रहा था। स्थिति ऐसी थी कि तबाही के मंजर को कैमरे में कैद करने में भी जोखिम था।
लेकिन फिर भी बस्ती में हम कई लोगों से मिले। पेशे से शिक्षक निरंजन मंडल (परिवर्तित नाम) डरे स्वर में बताते हैं,''दंगे की रात अचानक हजारों की संख्या में मुसलमानों की भीड़ कैसे जुट गई? जबकि यहां किसी राजनीतिक दल के कार्यक्रम में बार-बार बुलाने के बावजूद भी हजारों लोग नहीं जुटते। इससे साफ झलकता है कि दंगा पहले से तय था।'' वे कहते हैं,''कुछ दिनों से यहां के मुस्लिम हिंदुओं को भगाने की साजिश रच रहे हैं। वे कई बार हिन्दुओं को धमका चुके हैं और जगह नहीं छोड़ने पर जान से मारने की धमकी भी दे चुके हैं। फेसबुक पोस्ट बस एक बहाना थी।''
सुरक्षा की उम्मीद किससे करें?
दंगे से पीड़ित हिन्दुओं का आरोप है कि राज्य पुलिस पक्षपातपूर्ण रवैया अपना रही है। पुलिस हिन्दुओं से सख्ती से निबटती है, जबकि मुसलमानों के प्रति उसका रुख नरम रहता है। लोगों का कहना है कि पुलिस सुरक्षा देने की बजाय धमका रही है। बादुरिया के राम कौशिक व्यवसायी हैं। वे बताते हैं, ''पुलिस हिन्दुओं को लगातार धमका रही है और कुछ न बोलने के लिए कह रही है। इसी का फायदा उठाकर मुसलमान खुलेआम हिन्दू बस्तियों में कहते फिर रहे हैं कि बीएसएफ यहां कब तक तैनात रहेगी? जिस दिन जाएगी, उस दिन तुम सब भुगतोगे।'' इतना कहने के बाद कौशिक अपने घर की खिड़कियां बंद करने के बाद गली में झांक कर देखते हैं, फिर पास आकर बताते हैं, ''जिस दिन बादुरिया थाने में दंगाइयों ने आग लगाई, उस दिन 30 से ज्यादा ट्रकों पर स्थानीय एवं बाहरी मुसलमान हथियार और बमों से लैस होकर आए थे। वे सड़क जाम कर हिंदुओं को ललकार रहे थे। गनीमत रही कि उस दिन बारिश आ गई और घंटों तक मूसलाधार बारिश होती रही। वरना मजहबी उन्मादियों की भीड़ पूरे बादुरिया को जलाकर राख कर देती।'' वे आशंका जताते हुए कहते हैं, ''सुना, कि देवी पूजा के दौरान एकबार फिर यहां जबरदस्त उत्पात होगा। लेकिन उससे पहले ही यहां कोई बड़ी घटना न घट जाए, इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता।''
सुरजीत देव कहते हैं,''जब तक यहां बीएसएफ के जवान तैनात हैं, तब तक हम खुद को सुरक्षित मान रहे हैं। जिस दिन यहां से फोर्स गया, पता नहीं उन्मादी कब हमला कर दें। पुलिस भी कुछ नहीं कर पाएगी। क्योंकि वह खुद अपनी रक्षा नहीं कर पाती तो हमारी क्या करेगी। बीएसएफ के जाने के बाद आखिर हमें कौन सुरक्षा देगा?
दंगे के 'मास्टरमांइड'
इस दंगे के पीछे तृणमूल के लोकसभा सांसद इदरीस अली, सिमी के पूर्व महासचिव एवं वर्तमान में राज्यसभा सांसद अहमद हसन इमरान एवं स्थानीय नेता अब्दुल बारिक विश्वास का नाम लिया जा रहा है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, इनकी दंगों में पूरी संलिप्तता है और इन्होंने ही मुसलमानों को भड़काया। लोग दबी जुबान में बताते हैं कि स्थानीय नेता बारिक विश्वास पहले मामूली ट्रक चालक था। लेकिन गो तस्करी करके उसने अकूत संपत्ति अर्जित की है। पूरे इलाके में उसका खौफ है। तृणमूल के तीन और नेता शरीफुल मंडल, सेफिकुल और सहानूर उसके करीबी बताए जाते हैं। यही लोग उसका तस्करी का व्यापार संभालते हैं। शरीफुल ने तो 2004 में गोतस्करी के दौरान बीएसएफ के जवानों पर हमला कर एक जवान को मार डाला था।
पेशे से व्यवसायी शान्तनु इनकी कारगुजारियों के बारे में बताते हैं, ''बशीरहाट और इसके आसपास के गांवों में जो दंगे हुए, उनमें बारिक, उसका भाई गुलाम नबी विश्वास भी शामिल है। इस इलाके से बड़े पैमाने पर गो तस्करी होती है जिसमें तृणमूल के कार्यकर्ता भी शामिल हैं। लेकिन भाजपाशासित राज्यों में गोतस्करी के खिलाफ सख्त कानून बनने के बाद बंगलादेश सीमा से गायों की तस्करी पर कुछ हद तक लगाम लगी है। तस्करी से होने वाली कमाई का एक हिस्सा चंदे के रूप में तृणमूल पार्टी और बड़ा हिस्सा कट्टपंथी मुस्लिम संगठनों को जाता था। अब चूंकि कमाई कम हो गई है तो गोतस्कर और स्थानीय तृणमूल नेता बौखलाए हुए हैं। यह दंगा उसी का परिणाम है।'' शान्तनु कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि दंगा अचानक हुआ। काफी समय से यहां का माहौल खराब करने के प्रयास हो रहे थे। वे एक सवाल उठाते हुए कहते हैं कि दंगे के तार जमात-ए-इस्लामी से जुड़े हुए हैं और यहां के स्थानीय मुल्ला-मौलवी उन्हीं के इशारे पर चलते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो अधिकांश गांवों में
रात को 10-10 ट्रकों में बाहरी मुसलमान कहां से आए?''
यतीमखाने या उन्मादियों की पनाहगाहें
पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर यतीमखाने हैं और इनकी तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। बाहरी दुनिया के लोग समझते हैं कि इन यतीमखानों में असहाय, लाचार और गरीब बच्चों को भोजन और शिक्षा दी जाती होगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां कथित तौर पर वह पौध तैयार की जा रही है जो भारतीयता के खिलाफ खड़े होकर तलवार की दम पर इस्लाम का राज कायम करे। दंगों में इन्हीं यतीमखानों के 'बच्चे' सबसे आगे थे और हिन्दुओं की दुकानों को लूटने के साथ आग लगा रहे थे। बशीरहाट के रहने वाले 32 वर्षीय गौतम स्नातक अंतिम वर्ष के छात्र हैं। वे बताते हैं, ''यहां की मस्जिदों और 'यतीमखानों' में देशविरोधी गतिविधियां चलती हैं। भारत-बंगलादेश सीमा से 12-15 किमी. के दायरे में कुकुरमुत्ते की तरह यतीमखाने खुल रहे हैं। इन यतीमखानों और मस्जिदों में बंगलादेशी मौलवी भी आते हैं। अगर खुफिया एजेंसियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया तो आगे भविष्य में किसी भयावह घटना से इनकार नहीं किया जा सकता। यहां के मुसलमानों का पहनावा, खानपान और रहन-सहन अरब के मुसलमानों की तरह होने लगा है।''
मैलाखोला के अरविंद मंडल के मुताबिक, पूरे क्षेत्र के मुसलमानों को टांकी रोड स्थित मस्जिद से दिशानिर्देश मिलते हैं। यह यहां की बड़ी मस्जिद है, जहां देश-विदेश के मुल्ला-मौलवियों का जमावड़ा लगता है। इन्हें तृणमूल का संरक्षण हासिल है, इसलिए ये जो चाहते हैं वह करते हैं। शासन-प्रशासन रोकने की बजाय इनकी भरपूर मदद करता है।''
बंगलादेशी मुसलमानों से जकड़ता बशीरहाट
बातचीत में एक तथ्य यह भी उभर कर आया कि भारत-बंगलादेश के सीमावर्ती गांवों से लेकर उत्तर 24 परगना एवं दक्षिण 24 परगना जिले में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। बशीरहाट और बादुरिया के जिन इलाकों में दंगे हुए, वहां मस्लिमों की आबादी 60-70 फीसदी है और कहीं-कहीं तो यह 90 से 95 फीसदी तक जा पहुंची है। इनमें बड़ी संख्या बंगलादेशी मुसलमानों की है, जो आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हैं। 64 वर्षीय कार्तिक कहार पेशे से किसान हैं और शिवाटी गांव में रहते हैं। यहां भी दर्जनों हिंदुओं के घरों को तोड़ा,जो सामने दिशा उसे उपद्रवियों ने मारा-पीटा। इसी हमले में कार्तिक भी घायल हुए। दंगाइयों ने तेजधार हथियार से उनके सिर पर हमला किया था, लेकिन उनका निशाना चूक गया और हाथ घायल हो गया। टूटे घर की देहरी पर बैठे कार्तिक ने कहा, ''हमें तो पता ही नहीं कि मुसलमानों ने हमारे गांव में क्यों दंगा-फसाद किया? हमने तो कुछ किया भी नहीं। वे अचानक हिन्दू बस्ती पर टूट पड़े और जो सामने दिखता, उसे बेरहमी से मारने लगते। इसमें स्थानीय मुसलमानों के साथ अधिकतर तो बाहरी मुसलमान थे जिन्हें इससे पहले हमने कभी नहीं देखा था।'' स्थानीय लोगों की मानें तो क्षेत्र के अधिकतर सीमावर्ती गांव, तेंतुलिया, सहस्र नगर, रुद्रपुर, टांकी, मलयपुर, मांगरीश्रीरामपुर, स्वरूपनगर, बांगजोला, बुईकरा, नारायणपुर में झुंंड के झुंड बंगलादेशी मुसलमान बस रहे हैं। पुलिस से लेकर सरकार तक उन्हें संरक्षण देती है। उन्हें राशन कार्ड से लेकर पहचान पत्र बड़ी आसानी से मिल जाते हैं।
तस्करी से आबाद हो रही मस्जिदें
उत्तर 24 पगरना जिले के बशीरहाट और बादुरिया जैसे सीमावर्ती इलाकों में तीन चीजें कदम-कदम पर दिखती हैं- मछली का कारोबार, र्इंट भट्ठे और आलीशान मस्जिदें। स्थानीय लोगों की मानें तो इस इलाके में 10 साल पहले बहुत कम मस्जिदें थीं और आज इन्हें गिनना मुश्किल है। लोगों का कहना है कि इलाके में तस्करी जमकर होती है। टांकी के दीप (परिवर्तित नाम) एक राजनीतिक दल से जुड़े हुए हैं। वे बताते हैं, ''10 साल पहले यहां के मुसलमानों की आर्थिक स्थिति जर्जर थी। उनके पास साइकिल खरीदने तक के पैसे नहीं थे। आज वे करोड़पति हैं और उनके पास सभी संसाधन हैं। क्योंकि वे गाय से लेकर सोना, हथियार और ड्रग्स तक की तस्करी करते हैं। तृणमूल के मुस्लिम नेता सीधे तौर पर तस्करी से जुड़े हुए हैं। अब्दुल बारिक विश्वास तो खुलेआम गोस्तकरी करता है और जो विरोध करता है उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि गोतस्करी का कारोबार ही करीब दो हजार करोड़ का है। यह बात आज किसी से छिपी नहीं है। इसी पैसे से यहां बड़ी-बड़ी मस्जिदें खड़ी की जा रही हैं। आज बादुरिया-बशीरहाट क्षेत्र में ही अकेले 200 से ज्यादा छोटी-बड़ी मस्जिदें हैं।''
घोजाढांगा भारत-बंगलादेश सीमा पर स्थित है। इसी जगह के रहने वाले राजू की मानें तो 'आस-पास जो भी गांव हैं वहां के मुसलमान पूरी तरह से तस्करी में लिप्त हैं। वे यहां से नमक, दवाइयां, कफ सीरप (भारत में बिकने वाला 30 रुपये का कफ सीरप बंगलादेश में 180 रुपये का बिकता है) की तस्करी करते हैं और यहां यतीमखाने, मस्जिदें और मदरसे खोलने में मदद करते हैं। अगर केंद्रीय एजेंसी से जांच कराई जाए तो मस्जिदों और मदरसों का सच सबके सामने आ जाएगा।'
एनआईए से कराई जाए दंगे की जांच
बशीरहाट से चार बार सीपीआईके सांसद रहे अजय चक्रवर्ती दंगे की एनआईए से जांच की मांग करते हैं और कहते हैं कि उनकी पार्टी ने दंगों की निंदा की है। उन्होंने कहा,'' दंगे ने यह साबित कर दिया कि ममता बनर्जी कानून-व्यवस्था के मामले में विफल रही हैं। यहां 2 से 5 जुलाई तक दंगा चला और पुलिस उसे रोकने में नाकाम रही। आखिरकार राज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद मुख्यमंत्री को दंगा प्रभावित इलाकों में अर्द्ध सैनिक बलों की तैनाती करनी पड़ी। बशीरहाट सहित जिन जगहों पर दंगा-फसाद हुआ उसमें बंगलादेश से आए हुए आतंकियों का हाथ है। जब से बंगलादेश में आतंकियों की धरपकड़ शुरू हुई है, वे यहां के सीमावर्ती गांवों में शरण लिए हुए हैं। वे यहां तस्करी कर रहे हैं। इस दंगे में राज्य की सत्ताधारी पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं का हाथ है। अब्दुल बारिक जो यहां का सबसे बड़ा गोतस्कर है, वह सीधे तौर पर इन दंगों से जुड़ा हुआ है। साथ ही, हाजी नरुलुम इस्लाम, नारायण गोस्वामी भी इसमें शामिल हैं।'' केवल अजय चक्रवर्ती ही नहीं, बल्कि स्थानीय भाजपा नेता डॉ. सुकमन वैद्य सहित आम जनता दंगों की एनआईए से जांच की मांग कर रही है। वैद्य कहते हैं,''ममता सरकार ने जो जांच आयोग बनाया है, उस पर हमें बिल्कुल भरोसा नहीं है। यह खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं है।'' वहीं, विवादित फेसबुक पोस्ट डालने वाले किशोर के अधिवक्ता दीपेश गाइन कहते हैं, ''इस पूरे मामले की एनआईए से ही जांच कराने पर हकीकत सामने आएगी। तभी इस मामले की परतें खुलेंगी।''
बंगाल में आएदिन होते दंगों से स्पष्ट हो गया है कि ममता की सेकुलर सत्ता मजहबी कट्टरवादियों के हाथों खेल रही है। लोकतंत्र के नाम पर जिहाद तंत्र चलाया जा रहा है। बशीरहाट और बादुरिया इसके उदाहरण हैं।

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