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जामुन की मदद से आईआईटी के वैज्ञानिकों ने बनाया सोलर सेल

Vikas Kumar
1 May 2017 6:07 AM GMT
जामुन की मदद से आईआईटी के वैज्ञानिकों ने बनाया सोलर सेल
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नई दिल्ली : गर्मियों के मौसम में ताजा और स्वादिष्ट जामुनों को तोड़ना और खाना बचपन का पसंदीदा काम हुआ करता था, लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी की आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने जामुन से एक नया और प्रभावी सोलर सेल का निर्माण किया है। जी हां, अक्षय ऊर्जा के नए स्रोत तलाशने में जुटे आइआइटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने भारत में बहुतायत में पाए जाने वाले फल जामुन की मदद से सोलर सेल विकसित करने में सफलता हासिल की है।

सोलर सेल का इस्तेमाल सौर ऊर्जा से बिजली बनाने के लिए किया जाता है। जानकारी के अनुसार आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने बताया कि जामुन में पाए जाने वाले प्राकृतिक वर्णक (पिगमेंट) की मदद से डाई सेंसिटाइज्ड सोलर सेल्स (डीएसएससी) या ग्रेटजेल सेल्स के लिए किफायती फोटोसेंसिटाइजर बनाने में सफलता पाई है। यह आम सौर सेल की तुलना में बहुत किफायती और प्रभावी है।

इन सोलर सेल से सैंडविच की तरह एक संरचना बनती है जिसकी मदद से फोटोसेंसिटाइजर की प्रकाश को अवशोषित करने की क्षमता बढ़ जाती है। ग्रेटजेल पतले सोलर सेल्स की फिल्म होती है। यह झिरझिरे टाइटेनियम डाइऑक्साइड कोटेड (परत) फोटोएनोड के मिश्रण से बना होता है।

डाई मालिक्यूल की परत सूरज की रोशनी को अवशोषित करती है। इलेक्ट्रोलाइट और कैथोड की मदद से वो सूरज के प्रकाश को बिजली में बदलती है। इससे डाई का लगातार निर्माण होता रहता है। दृश्य प्रकाश को ग्रहण करने की प्रक्रिया में डाई मोलेक्यूल या फोटोसेंसिटाइजर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

आइआइटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने बताया जामुन के पेड़ों की बहुतायत और इसके गहरे रंग को देखते हुए इसकी मदद से डाई सेंसिटाइज्ड सोलर सेल्स बनाने का विचार आया था। एथनाल की मदद से जामुन से डाई निकाला गया। उन्होंने इसमें ताजे आलू बुखारों और काले अंगूरों का मिश्रित बैरी जूस का भी इस्तेमाल किया। इनमें वर्णक होते हैं, जो जामुन को एक विशेष रंग देते हैं।

बता दें वैज्ञानिकों ने साल 2030 तक भारत की कुल ऊर्जा जरूरतों का 40 प्रतिशत अजैविक ईंधन से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। सौर ऊर्जा का इसमें अहम योगदान है।
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