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लाइफ स्टाइल
ISRO आज रचेगा इतिहास, देश के सबसे भारी रॉकेट GSLV मार्क-3 का प्रक्षेपण
Kamlesh Kapar
5 Jun 2017 6:02 AM GMT
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Today ISRO launch nation's heaviest rocket GSLV Mark-3
श्रीहरिकोटा: भारत के सबसे भारी राकेट GSLV एमके.-3 के श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपण के लिए 25 घंटे से अधिक की उलटी गिनती आज यहां शुरू हो गई। यह राकेट संचार उपग्रह जीसैट-19 को लेकर जाएगा। जी.एस.एल.वी. एम.के.-3-डी 1 राकेट कल शाम 5.28 बजे यहां से तकरीबन 120 किलोमीटर दूर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉचिंग पैड से उड़ान भरेगा। ISRO अध्यक्ष एस.एस. किरण कुमार के मुताबिक ये मिशन बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अब तक का सबसे भारी रॉकेट और उपग्रह है जिसे देश से छोड़ा जाना है।
उन्होंने बताया कि अब तक 2300 किलोग्राम से अधिक वजन के संचार उपग्रहों के लिए इसरो को विदेशी लॉन्चरों पर निर्भर रहना पड़ता था। उन्होंने बताया कि जीएसएलवी एमके थ्री-डी 4000 किलो तक के पेलोड को उठाकर जीटीओ और 10 हजार किलो तक के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाने में सक्षम है। इसरो अध्यक्ष ने कहा कि प्रक्षेपण के साथ ही डिजिटल भारत को मजबूती मिलेगी। ऐसी इंटरनेट सेवाएं मिलेगी जैसे पहले कभी नहीं मिलीं। केंद्र के निदेशक तपन मिश्रा ने इसे भारत के लिए संचार के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी उपग्रह बताया है। उन्होंने कहा कि अगर यह प्रक्षेपण सफल रहा तो अकेला जीसैट-19 उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित पुराने किस्म के 6-7 संचार उपग्रहों के समूह के बराबर होगा।
फिलहाल अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित 41 भारतीय उपग्रहों में से 13 संचार उपग्रह हैं। जीएसएलवी एमके-3 का वजन पांच पूरी तरह से भरे बोइंग जम्बो विमान या 200 हाथियों के बराबर है। जीएसएलवी एमके-3 देश का पहला ऐसा उपग्रह है जो अंतरिक्ष आधारित प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके तेज स्पीड वाली इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने में सक्षम है। देश ऐसी क्षमता विकसित करने पर जोर दे रहा है जो फाइबर ऑप्टिक इंटरनेट की पहुंच से दूर स्थानों को जोड़ने में महत्वपूर्ण हो।
जीसैट-19 को पहली बार भारत में बनी लीथियम आयन बैटरियों से संचालित किया जा रहा है। इन बैटरियों को इसलिए बनाया गया है ताकि भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ाया जा सके। ऐसी बैटरियों का कार और बस जैसे इलैक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल किया जा सकता है। जीसैट-19 की सबसे खास बात है कि पहली बार उपग्रह पर कोई ट्रांसपोन्डर नहीं होगा। यहां तक कि आसमान के नए पक्षी के साथ ट्रांसपोन्डर शब्द ही नहीं जुड़ा होगा। पहली बार इसरो पूरी तरह नए तरीके के मल्टीपल फ्रीक्वेंसी बीम का इस्तेमाल कर रहा है जिससे इंटरनेट स्पीड और कनेक्टिविटी बढ़ जाएगी।
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