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सबका साथ सबका विकास पर सीएम योगी से विशेष बातचीत! जरुर पढ़ें

सबका साथ सबका विकास पर सीएम योगी से विशेष बातचीत! जरुर पढ़ें
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देश के सबसे बड़े राज्य यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ का चयन सबका साथ, सबका विकास के नजरिए से किया गया है। कई दावेदारों को दरिकनार कर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे पार्टी का मकसद शासन पर किसी प्रकार के परिवारवाद के आरोपों को एक झटके में खारिज करना है। मोदी ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना कर यह संदेश दिया है कि अब यूपी परिवारवाद से मुक्त होगा। प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार सुरेश गांधी की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बातचीत की एक विस्तृत रिपोर्ट एवं योगी का राजनीतिक सफरनामा

आखिरकार यूपी 15 साल बाद पूरी तरह से भगवा हो गया। हिन्दुत्व का बड़ा चेहरा रहे भगवावस्त्र धारी गोरखनाथ पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने भाजपा ने 2019 में यूपी में लोकसभा चुनाव हिन्दुत्व के मुद्दे पर ही लड़ने का संकेत दे दिया है। बेशक, भारतीय जनता पार्टी 2014 से ही तीन प्रमुख एजेंडे के साथ आगे बढ़ रही है। पहला है ब्रांड मोदी और दूसरा है आक्रामक हिंदुत्व और तीसरा है सबका साथ सबका विकास करने का नारा। इसके साथ ही पार्टी स्वच्छ प्रशासन और भाई-भतीजावाद को राजनीति से दूर करने की अक्सर बात करती रही है। चुनाव के दौरान मोदी से लेकर पार्टी के तमाम नेता परिवारवाद को लेकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की आलोचना करते रहे हैं। माना जा रहा है साल 2019 में चुनाव जीतने के लिए भाजपा अगले दो साल तक विकास के मसले पर गंभीरता से काम करेगी और लोगों को एक स्वच्छ प्रशासन देकर यह साबित करने का प्रयास करेगी कि यूपी का विकास सिर्फ भाजपा ही कर सकती है। आने वाले समय में यूपी में पार्टी ब्रांड मोदी, स्वच्छ प्रशासन और सबका साथ, सबका विकास के एजेंडे के साथ ही काम करेगी। योगी परिवारवाद से ही दूर नहीं है, बल्कि वे आक्रामक शैली के सबसे ताकतवर व ईमानदार छबि के हिन्दुत्वादी माने जाते हैं। पूर्वांचल में उनकी अच्छी पैठ है। कुछ इन्हीं रणनीतियों के साथ ही भारतीय जनता पार्टी अपने मुख्यमंत्री योगी के जरिये 2017 के जनादेश को 2019 में दोहराने का पूरा प्रयास करेगी। भाजपा को उम्मींद है कि वह अपने विवादित बयानों व कारनामों से बचते हुए विकास एवं सबको जोड़े रहने में सफल होंगे।

कानून व्यवस्था होगी पहली चुनौती
यूपी को सबसे पहले कानून-व्यवस्था की जरूरत है। क्या वे कानून व्यवस्था को दुरुस्त कर पायेंगे, क्या वे गुंडा-गर्दी को रोक पायेंगे। यह पहला सवाल है कि कानून व्यवस्था को ठीक करने में मुसलमान या दूसरे धर्म व जाति के लोग, जो उनके विचार से मेल खाते, उनको तो कोई परेशानी तो नहीं होगी? संभव है कि योगी उनका भी मन जीतने में सफल हों। दूसरी बात, यूपी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने बार-बार कहा कि देश के विकास का रास्ता यूपी से होकर निकलता है। यानी यूपी को अभी आर्थिक विकास की जरूरत है। पिछले 10-12 साल में उत्तर प्रदेश आर्थिक मोर्चे पर पिछड़ा गया है। विकास दर में गिरावट आयी है और आर्थिक प्रगति रुक गयी है। अखिलेश सरकार ने लखनऊ मेट्रो चलाने और आगरा हाइवे बनाने और कुछ अन्य प्रकार के कार्यों को दिखाने का प्रयास किया है। डेढ़ दो वर्षों से 'काम बोलता है' नारे के साथ उन्होंने अपना काम दिखाने का प्रयास किया, लेकिन यूपी आर्थिक कार्यक्रमों में पीछे चला गया है। विदेशी निवेश की जरूरत मोदी सरकार के सामने बड़ी समस्या के रूप में रही है। जहां तक किसानों के कर्ज माफ करने की बात है, बैंकिंग प्रणाली और अधिकारी मानते हैं कि कर्ज माफ करने की व्यवस्था ठीक नहीं है।


किसानों का कर्जमाफी
मोदी व्यक्तिगत तौर भी इसे अच्छा तरीका नहीं मानते हैं। चूंकि, उन्होंने छोटे किसानों के लिए आश्वासन दिया है, तो प्रस्ताव पास करना होगा, इसकी कीमत यूपी शासन को देनी होगी। गन्ना किसानों को कीमतें देना, चीनी मिलों के पास जो बकाया है, उसे दिलाने की व्यवस्था करनी होगी। कानून व्यवस्था, किसानों के अलावा छोटे बच्चों-महिलाओं के स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत होगी। चुनाव में जीत का बड़ा कारक लोगों के घर-घर जाकर उज्ज्वला योजना के तहत लोगों को सिलेंडर मुहैया कराने जैसी योजनाओं की बड़ी भूमिका रही है। नये मुख्यमंत्री के इलाके में बच्चों के बुखार की बड़ी समस्या रही है। अगर वे इन समस्याओं को हल कर पाये, तो उनके लिए बड़ी उपलब्धि होगी। हिंदु या योगी मुख्यमंत्री बने, इससे मुसलमानों को कोई दिक्कत नहीं होगी, बशर्ते वे उनके जीवन को सुरक्षित बनायें, उनके रोजगार की व्यवस्था करें, परिवहन की व्यवस्था अच्छी हो, यह ज्यादा जरूरी है। इसके अलावा यूपी में बिजली एक बड़ी समस्या है। अगर वे ढांचागत सुविधाओं को बेहतर बना सके, तो उनके और पार्टी दोनों के लिए बेहतर होगा। पूर्वी यूपी से होनेवाले पलायन को रोकने की योजना बनानी होगी। अनुशासनहीनता देखने को मिलती रही है। थानों में एक विशेष प्रकार के लोगों की नियुक्ति का मामला था, उन मुद्दों पर योगी का क्या फैसला होगा, यह देखना होगा।


2019 की पटकथा
14 साल के वनवास के बाद जब दोबारा बीजेपी यूपी की सत्ता में ऐतिहासिक बहुमत के साथ लौटी तो नरेंद्र मोदी ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर वो दांव चला है, जिसकी धमक 2019 के लोकसभा चुनाव में गूंजनी तय है। 300 से ज्यादा विधायकों की ताकत वाले बीजेपी गठबंधन की सरकार योगी आदित्यनाथ चलाएंगे। वो योगी आदित्यनाथ जिनकी हिंदुत्ववादी छवि ही अब तक रोड़ा बनती रही है। उन्हीं योगी को सीएम पद की कुर्सी मिली है तो इसकी बड़ी वजह योगी की कट्टर हिंदुत्ववादी छवि ही मानी जा रही है। 90 के दशक में बीजेपी को जब स्पष्ट बहुमत मिला था तो कल्याण सिंह जैसे कट्टर हिंदुत्ववादी नेता को मुख्यमंत्री बनाया गया था। अब 2017 में एक बार फिर से बीजेपी 325 सीटें लेकर सरकार बनाने निकलीं तो मोदी-अमित शाह ने हिंदुत्वादी राजनीति के पुरोधा योगी आदित्यनाथ पर भरोसा किया है। कहा जा रहा है कि 2017 में योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाने के पीछे सोच हिंदुत्व की चाल और विकास के चेहरे को आगे करने की है। एक ऐसा सियासी घोल जो 2019 में भी बीजेपी को दिल्ली की सत्ता यूपी से दिला सकता है। योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री चुनने के पीछे वजह यह है कि उनके नाम पर जाति की राजनीति का जाल तोड़कर उसे हिंदू राजनीति के नाम पर बड़ा कैनवास दिया जाए। योगी आदित्यनाथ जिस गोरक्षापीठ से जुड़े हुए हैं। उसका मंत्र ही है जाति-पांति पूछे नहिं कोई-हरि को भजै सो हरि का होई। माना जा रहा है कि योगी को सीएम बनाने का सीधा संदेश ये है कि यूपी में दलित और यादव वोटबैंक पर आधारित राजनीति को हिंदू वोटबैंक के नाम पर तोड़ा जाए। देखा जाय तो चुनाव में जब बिजली, श्मशान, कब्रिस्तान, एंटी रोमियो स्क्वॉयड जैसे बयान देकर मोदी और अमित शाह वोट मांग रहे थे, तब योगी आदित्यनाथ ही इनके बाद इकलौते नेता थे, जो हर सभा में अखिलेश यादव के विकास कार्यों को हिंदू-मुस्लिम के बीच में बंटा हुआ दिखाकर राजनीति कर रहे थे। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य- पिछड़े वर्ग का चेहराउप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा- ब्राह्मण चेहरा बीजेपी ने मंत्रियों के पदों को लेकर जो जातीय समीकरण बिछाए हैं, माना जा रहा है कि 2017 का यही फॉर्मूला 2019 में लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत का रास्ता खोल सकता है।


योगी का हिन्दुत्व एजेंडा
गोरखपुर लोकसभा सीट से लगातार पांचवी बार जीत कर योगी आदित्यनाथ संसद तक पहुंचे। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी, कोई भी यहां उनका तोड़ नहीं निकाल सकी। दरअसल योगी आदित्यनाथ ने विकास के साथ कट्टर हिंदुत्व के एजेंडे को अपनी राजनीतिक का हथियार बनाया। जिससे उनकी राजनीतिक ताकत लगातार बढती ही चली गई। योगी आदित्यनाथ हिंदू युवा वाहिनी नाम का अपना संगठन भी चलाते हैं। यूपी के करीब 27 जिलों में फैले अपने इस समानांतर संगठन के चलते भी वो चर्चा में रहे। योगी का हिंदू युवा वाहिनी संगठन धर्म परिवर्तन के खिलाफ भी जबरदस्त मुहिम छेड़ा। कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलते हुए योगी आदित्यनाथ ने कई विवादित बयान भी दिए लेकिन हर नए विवाद के साथ उनकी राजनीतिक ताकत बढती चली गई। यूपी की राजनीति में योगी आदित्यनाथ एक ऐसे जनाधार वाले नेता माने जाते हैं जिनका हर चुनाव में जीत के साथ अपना वोट प्रतिशत बढता गया। यही वजह है कि बीजेपी ने उन्हें चुनाव में अपना स्टार प्रचारक बना कर मायावती और अखिलेश यादव के खिलाफ बड़ा दांव चला, जिसका फायदा बीजेपी को हुआ।

क्या योगी बढायेंगे मोदी के विकास का एजेंडा
योगी के सीएम बनने के बाद स्पष्ट हो गया है कि प्रखर हिन्दुत्व भाजपा का स्थायी एजेंडा है। इसके इर्द-गिर्द यूपी में सबका साथ-सबका विकास का तानाबाना बुना जाना है। अल्पसंख्यकों में पैठ बनाना नई सरकार के लिए चुनौती होगी लेकिन, कहीं वह इस पर खरी उतर गई तो भाजपा को व्यापक स्वीकृति भी मिलेगी। योगी को आगे लाने के पीछे भाजपा की कोशिश विपक्ष के प्रस्तावित महागठबंधन से मुकाबले की भी दिखती है। विपक्ष की एकजुटता की कोशिश परवान चढ़ी तो अल्पसंख्यक मत एक तरफ पड़ेंगे। ऐसी स्थिति में भाजपा लड़ाई को अस्सी बनाम बीस पर ले जाना चाहेगी। बेशक, जिस तरह से जातियों के बंधन को तोड़ कर यूपी की हिंदू आबादी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भरोसा जताया था, उस भरोसे को योगी का राजतिलक और गाढ़ा करेगा। योगी ने चुनाव पूर्व अपने भाषणों में साफ-साफ कहा था कि पूर्वी यूपी में संतुलन कायम कर दिया गया है और यही संतुलन पूरे प्रदेश में लाना है। दरअसल योगी के राजतिलक पर विचार करें, तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वहां अब भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व और विकास की समन्यवादी राजीनीति के रास्ते पर चलेगी। हिंदुत्व और विकास की इस समन्वयवादी राजनीति का मानचित्र 2014 में लोकसभा चुनाव के वक्त तय किया गया था जब नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को छोड़ कर बनारस को अपना लोकसभा क्षेत्र चुना था। बनारस का सनातन परंपरा में अपना एक अलग स्थान है और नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी मात्र ने उस वक्त वहां बीजेपी के लिए कम-से-कम तीन दर्जन लोकसभा सीट पर जीत तय कर दी थी। अब योगी के हाथ में यूपी की कमान देकर बीजेपी नेतृत्व ने वोटों के इस समूह को और मजबूत करने का प्रयास किया हैं। इस प्रयास को 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले अन्य राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनावों की तैयारी से भी जोड़ कर देखा जा सकता हैं।

क्यों हैं मुस्लिमों को साथ जरुरी
फिरहाल, अल्पसंख्यकों ने अभी तक योगी आदित्यनाथ को हिन्दुओं के लिए ललकारते देखा है। हिन्दू भी उन्हें अपने पक्ष का मुखर वक्ता मानते आए हैं। लेकिन, इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक विषमताओं वाले प्रदेश में योगी का राज अल्पसंख्यकों का भय दूर कर ले गया तो यह संदेश देश में जाएगा और तब अल्पसंख्यकवाद की राजनीति कठिन होगी। भाजपा कहती रही है कि तुष्टीकरण की राजनीति ने मुस्लिमों को मुख्यधारा में नहीं आने दिया। योगी को आगे लाकर भाजपा ने यह दुर्लभ अवसर जुटाया है और जैसा कि मोदी के प्रतिनिधि वैंकेया नायडू ने लखनऊ में कहा भी..विकास, विकास, विकास और विकास। खुद योगी ने भी संबोधन में विकास पर बल दिया। मोदी भी मानते हैं कि विकास को आंदोलन बनाने की आवश्यकता है। इसकी आवश्यकता सबसे अधिक यूपी में ही दिखती है। क्योंकि यहां भाजपा को प्रबल जनादेश मिला है और भारी भरकम जनादेश आम जनता की उम्मीदों को और बढ़ा देता है। योगी आदित्यनाथ सरकार को उम्मीदों को पूरा करने के साथ-साथ आशंकाओं को दूर करने का भी काम करना होगा। वह एक तेज तर्रार छवि वाले नेता हैं। यह स्पष्ट ही है कि उन्हें अब अपनी तेजी सही दिशा की ओर ले जाने में दिखानी होगी। क्योंकि मोदी ने अपने लक्ष्य के संदर्भ में 2022 तक नए भारत के निर्माण की बात कहीं है।

पूर्वांचल को हरा-भरा करने की चुनौती
यूपी में भाजपा की जीत विकास के प्रति मोदी के संकल्प पर जनता के भरोसे का प्रमाण है, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यूपी विकास की दिशा में अपेक्षित ढंग से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। सच्चाई तो यह है कि यूपी और बिहार जैसे राज्यों के पिछड़ेपन के कारण पूरा देश उस रफ्तार से प्रगति नहीं कर पा रहा जितना कि आवश्यक है। इन राज्यों के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण जाति-त और धर्म की राजनीति है। इस राजनीति का अंत किया जाना आवश्यक है। भाजपा ने लोगों को यह भरोसा दिलाया है कि वह यूपी को बदहाली से उबारकर सही मायने में उत्तम प्रदेश बनाने का सपना साकार करेगी। भाजपा की जीत के बाद प्रधानमंत्री ने लोगों को यह भरोसा भी दिलाया कि नई सरकार सभी वर्गो को साथ लेकर चलेगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि भाजपा की सरकारें उनकी भी हैं जिन्होंने उसे वोट नहीं दिया। मोदी भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के साथ जिस तरह केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा के रूप में दो उप मुख्यमंत्री भी बनाने का फैसला किया उससे यह स्पष्ट है कि जातिगत संतुलन कायम करने की कोशिश की गई है। इसकी उम्मीद इसलिए की जा रही थी, क्योंकि भाजपा के उभार में तमाम नए वर्गो का योगदान रहा, लेकिन इस क्रम में क्षेत्रीय संतुलन पीछे छूट गया दिखता है। इन सब सवालों का जवाब विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर ही दिया जा सकता है और ऐसा ही किया भी जाना चाहिए।

योगी का राजनीतिक सफर
योगी का असली नाम अजय सिंह बिष्ट है। 5 जून 1972 को उत्तराखंड में जन्म हुआ था। गणित में बीएससी कर चुके हैं। अस्सी के दशक में जब देश में राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था, उस दौरान योगी आदित्यनाथ गोरखपुर आ गए। गोरखनाथ मंदिर के महंत अवेद्यनाथ ने योगी को उत्तराधिकारी बनाया। इसके बाद वे राजनीति में आए और सबसे कम उम्र (26 साल) में सांसद बनने का रिकॉर्ड बनाया। योगी ने हिंदू युवा वाहिनी बनाई। वे मुख्य रूप से धर्म परिवर्तन, लव जिहाद और गौ हत्या के खिलाफ मुहिम चलाते आ रहे हैं। योगी के आदेश पर गोरखनाथ मंदिर में होली और दीपावली जैसे बड़े त्योहार भी एक दिन बाद मनाए जाते हैं। गोरखनाथ मठ के महंत अवैद्धनाथ ने 1986 में विश्व हिंदू परिषद के राम जन्मभूमि आन्दोलन की अगुवाई भी की थी। 1989 के लोकसभा चुनाव में वो हिंदू महासभा के टिकट पर गोरखपुर से चुनाव जीत कर संसद भी पहुंचे थे लेकिन बाद में महंत अवैद्धनाथ भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी में शामिल हो गए थे। 1996 के लोकसभा चुनाव में महंत अवैद्धनाथ के चुनाव अभियान की कमान योगी आदित्यनाथ ने ही संभाली थी। लेकिन इसके दो साल बाद जब 1998 में लोकसभा के चुनाव हुए तो मंहत अवैद्धनाथ ने उन्हें अपना वारिस बना कर चुनाव मैदान में उतार दिया और फिर यहीं से योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक सफर शुरु हुआ।

मोदी बने गरीबों के मसीहा
यूपी चुनाव परिणाम इस बात के गवाह बन गए हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा और गरीबों के मसीहा के रूप में उभरे हैं। करिश्माई राजनेता और प्रभावशाली वक्ता 66 वर्षीय नरेन्द्र मोदी की अगुआई में भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में 2014 के आमचुनाव में लोकसभा की 71 सीटों पर कब्जा किया था। इसलिए सवाल उठ रहे थे कि क्या मोदी का जादू जिसने पिछले 30 वर्षों में भाजपा को उसकी सबसे बड़ी चुनावी जीत दिलाई थी, अब भी वोटरों को प्रभावित कर सकेगा। या क्या भारत आर्थिक विकास के बारे में प्रधानमंत्री के नारों से थक रहा है। नवंबर में 1000 और 500 रुपए के करेन्सी नोटों को रद्द करने के आश्चर्यजनक निर्णय के बाद अर्थशास्त्रियों ने नीति निर्माता के तौर पर मोदी की सक्षमता पर संदेह जताया था। इस फैसले पर अमल और उसको उचित ठहराने के सरकारी प्रयास भ्रम पैदा करते थे। कई बार फैसले को कालेधन के खिलाफ युद्ध बताया गया जिससे अमीर लोगों को अपने अवैध धन की घोषणा करने के लिए विवश होना पड़ेगा। लेकिन जिस देश में अमीरों-गरीबों के बीच जबर्दस्त आर्थिक असमानता है और शिखर पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने का इतिहास है, वहां मोदी गरीबों के मसीहा के रूप में सामने आए। नोटबंदी से प्रभावित होने के बावजूद यूपी में बड़ी जीत इस बात का संकेत है कि मोदी ही सर्वमान्य नेता है। मोदी की लोकप्रियता ने जाति और समुदाय के पेचीदा गणित को ध्वस्त कर दिया। लोगों ने मोदी को वोट दिया है। और इतने भारी बहुमत से बड़ी उम्मीदें भी जागती हैं। इसने भाजपा के लिए अलग किस्म की चुनौती पेश की है। लोग सरकार से परिणाम की अपेक्षा करेंगे। अब और बहाने नहीं चलेंगे। 2014 के समान धर्म और जाति से परे- सबका साथ, सबका विकास है। चुनाव परिणाम ने हमारे एजेंडा और नेता के बतौर नरेन्द्र मोदी की विश्वसनीयता का समर्थन किया है। यह भारत के वोटरों का मैसेज है।

2019 का रास्ता आसान
चुनाव परिणाम ने 2019 चुनाव के लिए मोदी की स्थिति को मजबूत बनाया है। लेकिन, कुछ समस्याएं भी सामने खड़ी हैं। मोदी की 2014 की जीत के बावजूद हर वर्ष वर्क फोर्स में प्रवेश करने वाले एक करोड़ 20 लाख भारतीयों के लिए नौकरियां पैदा करने वाले आर्थिक सुधारों को प्रारंभ नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए श्रम कानून अब भी विश्व में सबसे कड़े हैं। कारोबार करने के लिए भारत एक मुश्किल जगह है। विश्व बैंक के अनुसार भारत की व्यावसायिक राजधानी मुंबई में किसी विवादित करार के निपटारे में औसतन चार वर्ष लगते हैं।

जब रो पड़े योगी
योगी आदित्य‍नाथ एक बार लोकसभा में यूपी पुलिस की बर्बरता का वर्णन करते हुए रो पड़े थे। प्रखर एवं उग्र हिंदुत्व के पोषक माने जाने वाले आक्रामक बीजेपी नेताओं में गिने जाने वाले योगी आदित्यनाथ लोकसभा में जोर-जोर से रोने लगे थे। वर्ष 2006 में लोकसभा में पुलिस‍ की प्रताड़ना का जिक्र करते हुए योगी रोने लगे थे, तब मुलायम सिंह यादव यूपी के सीएम थे। पश्चि‍मी यूपी में चुनावी सभाओं के जरिए योगी आदित्यनाथ ने पूरे जोर-शोर से प्रचार किया। बता दें, वर्ष 2006 में गोरखपुर से बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ ने अपनी बात रखने के लिए लोकसभा अध्यक्ष से विशेष अनुमति ली थी। तब पूर्वांचल के कई कस्बों में सांप्रदायिक हिंसा फैली थी। जब आदित्यनाथ अपनी बात रखने के लिए खड़े हुए तो फूट-फूट कर रोने लगे। कुछ देर तक वे कुछ बोल ही नहीं पाए और जब बोले तो कहा कि यूपी की सपा सरकार उनके खिलाफ षड्यंत्र कर रही है और उन्हें जान का खतरा है। लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी से योगी ने बताया था कि गोरखपुर जाते हुए उन्हें शांतिभंग करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और जिस मामले में उन्हें सिर्फ 12 घंटे बंद रखा जा सकता था, उस मामले में 11 दिन जेल में रखा गया। इसकी शुरुआत पूर्वांचल के आजमगढ़ के छात्र नेता रह चुके अजित सिंह की हत्या किए जाने के बाद हुई थी। बताया जाता है कि आजमगढ़ में अजित सिंह के तेरहवीं वाले दिन योगी आदित्यनाथ अपने काफिले के साथ कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे थे। तभी रास्ते में तकिया गांव में योगी के काफिले पर हमला कर दिया गया था। इस हमले में योगी पूरी तरह से घि‍र गए थे। योगी के कई समर्थक लहूलुहान हो गए थे। योगी की जान बचाने के लिए उनके अंगरक्षक को फायरिंग करनी पड़ी थी। फायरिंग के दौराना हमलावर भीड़ में से एक युवक की मौत हो गई थी। उसके बाद आजमगढ़ व आसपास के इलाकों में इस मामले ने सांप्रदायिक रंग ले लिया था। इस घटना के बाद योगी के समर्थकों और उनके ऊपर कई मुकदमे हुए थे। उस समय पुलिस ने पीएसी लगवाकर कई बार योगी के ठिकानों पर दबिश देना शुरू कर दिया था। यही नहीं योगी के समर्थकों को बड़ी संख्या में जेल भेजा गया था। योगी समर्थक पुलिस के डर से अपना गांव छोड़कर पलायन कर गए थे। तब योगी ने अपनी पीड़ा लोकसभा में रखी थी। पुलिसिया आतंक और प्रताड़ना का वर्णन करने के दौरान योगी सदन में फूट-फूट कर रो पड़े थे।

क्या पीड़ितों को 'न्याय' दिलायेंगे योगी
यूपी में जितना बड़ा जनादेश, उतना ही बड़ा दांव मोदी ने खेला है। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर योगी को बैठाकर मोदी ने भगवा की स्थापना तो कर दी है, लेकिन बड़ा सवाल तो यही है कि अखिलेश के गुंडाराज में जिन लोगों की सपाई गुंडो, भ्रष्ट आइएएस अमृत त्रिपाठी समेत अन्य पुलिस एवं प्रशासनिक अफसरों ने प्रताड़ना की है, फर्जी मुकदमें दर्ज कर कहीं हत्याएं तो कहीं लूटपाट कराई है, उन्हें न्याय दिला पायेंगे? क्योंकि सपाई गुंडों के प्रताड़ना के शिकार स्वयं योगी जी भी है। बेशक, सवाल तो बनता ही है क्या यूपी में सपा के गुंडाराज में प्रताड़ित लोगों को योगी न्याय दिला पायेंगे, क्योंकि इसके गवाह खुद योगी जी ही हैं।

प्रतिभाओं को बढ़ावा देना होगा
यूपी में न तो प्रतिभा की कमी है और न ही संसाधनों की। अगर नई सरकार संकल्प के साथ सबका साथ सबका विकास नारे को सार्थक करते हुए आगे बढ़ेगी तो स्थितियां बदलने में देर नहीं लगेगी।

15 साल बाद पूर्वांचल से मिला मुख्यमंत्री
राज्य को 15 साल बाद पूर्वांचल से मुख्यमंत्री मिला है। इससे पहले भाजपा के ही राजनाथ सिंह पूर्वांचल से आने वाले आखिरी मुख्यमंत्री थे। योगी पूर्वांचल से, और पूर्वांचल यानी आधा यूपी। पूर्वांचल में 175 विस सीटें हैं। इनमें से भाजपा़ ने 154 सीटें जीती हैं। 34 लोकसभा सीट में से 33 पर भाजपा का कब्जा है। पूर्वांचल ने अब तक यूपी को 11 सीएम दिए हैं। योगी प्रदेश के 21वें और पूर्वांचल से आने वाले 12वें मुख्यमंत्री होंगे।

जातिय समीकरण
पूर्वांचल में 42ः ओबीसी हैं। इनमें 32ः गैर यादव ओबीसी हैं। इसी के दम पर भाजपा ने इस बार सपा को पटखनी दी है। योगी जाति से ठाकुर हैं। सीएम बनाने से गैर यादव ओबीसी और सवर्ण करीब आ सकते हैं। 2014 में ध्रुवीकरण ने भाजपा को 80 में से 73 सीटें दिला दीं। योगी के आने से ध्रुवीकरण और तेज होगा। भाजपा को उम्मीद होगी कि 2019 के लोस चुनाव में इसका फायदा मिलेगा।

पहली बार दो उपमुख्यमंत्री
जातिगत संतुलन बनाए रखने के लिए योगी संग दो उपमुख्यमंत्री भी होंगे। ओबीसी से आने वाले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और ब्राह्मण वर्ग से लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा। यूपी में पहली बार दो डिप्टी सीएम बनाए गए हैं।

तीसरे युवा सीएम
योगी 26 साल की उम्र में पहली बार सांसद बने, तब से लगातार 5 बार चुने गए, अब 44 की उम्र में यूपी की कमान संभाले है। जबकि अखिलेश 38 साल और मायावती 39 साल की उम्र में यूपी की सीएम बन चुकी हैं। इस लिहाज से योगी प्रदेश के तीसरे सबसे युवा सीएम होंगे।

बिहार पर भी प्रभाव
पूर्वांचल से सटे बिहार के 9 जिले भी पूर्वांचल में आते हैं। इस इलाके की 8 लोकसभा सीटें भी योगी की जद में होंगी।

कौन हैं योगी आदित्यनाथ?
मूल रूप से उत्तराखंड के राजपूत परिवार में जन्मे आदित्यनाथ का असली नाम अजय सिंह है। 45 साल के आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को हुआ है। गोरखपुर से लगातार पांचवीं बार बीजेपी के सांसद हैं। पहली बार उन्होंने 1998 में लोकसभा का चुनाव जीता तब उनकी उम्र महज 26 साल थी। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के गोरखनाथ मठ के महंत हैं। योगी आदित्यनाथ का एक धार्मिक संगठन भी है हिंदू युवावाहिनी जिसका पूर्वी उत्तर प्रदेश में खासा दबदबा है।

योगी 21वें सीएम
योगी आदित्यनाथ यूपी में बीजेपी के चैथे और कुल 21वें मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह प्रदेश की बीजेपी सरकारों में मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इनमें से कल्याण सिंह दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं।

योगी के गांव में जश्न
आदित्यनाथ ने 21 साल की उम्र में ही परिवार छोड़ दिया था और वो गोरखपुर आ गए थे। उनके पिता 24 साल पहले उत्तराखंड के एक गांव से संन्यास की दीक्षा लेने वाले बेटे को मनाने आए थे, लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। मां मायूस हो गई, लेकिन बेटे के लिए लगातार दुआएं मांगती रही। आज वो संन्यासी बेटा सीएम बन गया तोघर ही नहीं पूरा गांव जश्न मना रहा है।

तीन बहन, चार भाई
मां सावित्रती देवी की सात संताने हैं। यानी योगी चार भाई और तीन बहनों में दूसरे नंबर के भाई हैं। उनके दो भाई कॉलेज में नौकरी करते हैं, जबकि एक भाई सेना की गढ़वाल रेजिमेंट में सूबेदार हैं। योगी आदित्यनाथ पौड़ी गढवाल के इस गांव से संन्यास और राजनीति का लंबा सफर तय कर चुके हैं।

चाय वाले से डिप्टी सीएम तक
07 मई 1968 को कौशांबी जिले की सिराथू तहसील के कसिया गांव में श्यामलाल मौर्य और धनपती देवी मौर्या के घर जन्मे केशव प्रसाद के पिता चाय की दुकान चलाते थे। किशोरावस्था तक केशव चाय की दुकान पर अपने पिता का सहयोग करते थे और अखबार विक्रेता का काम भी करते थे। किशोरावस्था में ही केशव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए। वर्ष 2002 में भाजपा के टिकट पर पहली बार इलाहाबाद शहर पश्चिमी की सीट से विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमाया था, लेकिन हार गए थे। 2005 में शहर पश्चिमी की सीट पर हुए उपचुनाव में भी पराजय का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वर्ष 2012 में अपने पैतृक क्षेत्र सिराथू से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। बस यहीं से उनके भाग्य का सितारा बुलंदी की ओर चला गया।

दो बार मेयर, अब उप मुख्यमंत्री
12 जनवरी 1964 को जन्में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. दिनेश शर्मा अब प्रदेश के उपमुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे। वह दूसरी बार मेयर हैं। उनके काम करने के तरीके का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नगर निगम के अफसर भी किसी पत्रवली को उनके पास तक भेजने से पहले कई बार परीक्षण करते हैं। दिनेश शर्मा को प्रधानमंत्री के गृह प्रदेश गुजरात भाजपा का प्रभारी बनाने के साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी के अलावा उन्हें भाजपा सदस्यता अभियान का प्रमुख बनाया गया था। उनके माता-पिता का देहांत हो चुका है। पत्नी जयलक्ष्मी शर्मा और छोटी बहन वंदना शर्मा के साथ ऐशबाग के मास्टर कन्हैया लाल रोड पर रहते हैं। उनका प्रोफेसर वाला सरकारी आवास लखनऊ विवि मार्ग पर है।

..तो कराने होंगे पांच उपचुनाव
पार्टी के पक्ष में भले ही रिकार्ड बहुमत मिला परंतु मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री पद पर आसीन नेताओं को उपचुनाव की परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ेगा। मुख्यमंत्री चुने गए योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व दिनेश शर्मा में से कोई विधायक नहीं है। आदित्यनाथ व केशव प्रसाद मौर्य लोकसभा में सदस्य है और डा.दिनेश शर्मा लखनऊ नगर निगम में महापौर। इन तीनों नेताओं को अपने पदों पर बने रहने के लिए विधानपरिषद अथवा विधानसभा में से किसी एक सदन का सदस्य छह माह के भीतर अनिवार्य रूप से बनना होगा। विधायक बनने के लिए उपचुनाव कराना होगा, वहीं सांसद योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य को लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देना होगा। ऐसे में दोनों के द्वारा रिक्त की गई संसदीय सीट गोरखपुर और फूलपुर में भी उपचुनाव कराना होगा।
स्रोत लाइवआर्यावर्त

सुरेश गाँधी
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