राष्ट्रीय

क्या आप भारत मे चल रहे क्रोनी केपेटिलिज्म का असली और घिनौना चेहरा देखना चाहते है ?

क्या आप भारत मे चल रहे क्रोनी केपेटिलिज्म का असली और घिनौना चेहरा देखना चाहते है ?
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जैसा कि आप जानते ही है कि अब पोलिटिकल पार्टियों के विदेशी चंदे की जांच होना संभव नही है मोदी सरकार द्वारा पारित किया गया विधेयक 1976 से पोलिटिकल पार्टियों को विदेश से मिले चंदे की जांच से छूट देता हैं,
बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी.........
दरअसल अदालत ने 2014 में पाया कि कांग्रेस और भाजपा ने ब्रिटेन स्थित वेदांता रिसोर्सेज कंपनी से चंदा लेकर FRCA अधिनियम का उल्लंघन किया था ओर यह विधेयक मूलतः इसी मैटर को हमेशा के लिये जमीन में दफन कर देने के लिये लाया गया है.
वेदांता रिसोर्सेज लन्दन में रजिस्टर्ड है इसलिए उस वक्त के हिसाब से यह विदेशी कम्पनी ही थी अदालत ने यह दलील भी नही मानी कि इन दोनों पार्टियों ने स्टरलाइट इंडस्ट्रीज और गोवा सेस से चंदा लिया था, जो कि वेदांता रिसोर्सेज की भारतीय शाखाएं हैं, ओर दोनों पार्टियों को दोषी करार दिया यह चन्दा 2009 ओर पहले दिया गया था.
अब प्रश्न यह उठता है कि वेदांता रिसोर्सेज किसकी कम्पनी है और इसने इतना चन्दा इन दोनों पार्टियों को क्यों दिया? वेदांता रिसोर्सेज का मालिकाना हक अनिल अग्रवाल का है इनका वेदांता ग्रुप मुख्य रूप से माइनिंग क्षेत्र में डील करता है अब मुद्दे की बात समझिये अनिल अग्रवाल की कंपनी वेदांता समूह भारत में कर्ज के मामले में दूसरे नंबर पर है. कहा जाता है कि वेदांता पर 1.03 लाख करोड़ रुपए का कर्ज हैं.
सदी की शुरुआत में जब भारत मे अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में NDA की भाजपा सरकार आयी तो उन्होंने ही सबसे पहले सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश की नीति अपनाई थी. छत्तीसगढ़ के कोरबा में भारत एल्युमिनियम लिमिटेड यानी बालको को विनिवेश के नाम पर स्टरलाइट समूह वाले अनिल अग्रवाल की वेदांता कंपनी को 51 फीसदी की हिस्सेदारी दे दी गई. यह देश में किसी सार्वजनिक उपक्रम का पहला विनिवेश था
विनिवेश से पहले वहां 6500 नियमित श्रमिक-कर्मचारी थे और तीन हजार के करीब ठेका मजदूर थे, विनिवेश और उसके बाद हुई छंटनी के बाद नियमित श्रमिकों-कर्मचारियों की संख्या 14 सौ ही रह गई
एक ऐसा उपक्रम जो देश के रक्षा और अंतरिक्ष जैसे अहम क्षेत्रों के लिए एल्युमिनियम पैदा करता था NDA ने उसे निजी हाथों में दे दिया वह भी तब जब वह मुनाफा कमा रहा था.ओर वह भी मात्र 552 करोड़ रुपये में ओर इस डील की सबसे मजे की बात तो यह है कि एक आरटीआई में पता चला हैं कि बाल्को में किए गए 552 करोड़ रुपए के विनिवेश से जुड़े दस्तावेज का अब कोई अता पता मौजूद ही नही है
तो इस हिसाब से बीजेपी को चन्दा देना तो वेदांता का परम कर्तव्य बनता था
लेकिन कांग्रेस का इसमें क्या रोल था कहते हैं कि आर. पोद्दार की लिखी किताब 'वेदांताज़ बिलियंस' में बताया गया है कि पी चिदंबरम वेदांता रिसोर्सेज़ के निदेशक के तौर पर भारी-भरकम तनख्वाह लेते रहे है ओर 2003 में जब वेदांता ने कर की अपनी देनदारी से संबंधित कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, तो चिदंबरम और उनकी पत्नी ने स्टरलाइट का मुकदमा लड़ा था
ओर बाद में उन्होंने ही मनमोहन के पहले शासनकाल गृहमंत्री रहते हुए बाल्को कम्पनी के बाकी बचे 49 प्रतिशत सरकारी शेयर वेदांता के मालिक अनिल अग्रवाल की कम्पनी स्टरलाइट को बेचने का प्रोग्राम सेट किया था, और भी कई तरह से वेदांता को फायदा पुहचाया गया
यानी हमाम में सभी नंगे थे तो पहला , दूसरे को नंगा किस मुँह से कहता ओर इस हिसाब से अदालत के आदेश पर वेदांता वाला मामला अगर जरा सा भी खुल जाता तो देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल मुँह दिखाने के काबिल नही रहते ओर शायद इसीलिए इस विधेयक को इस तरह से पास कराना बेहद जरूरी था
लेकिन ऐसा नही है कि खेल अभी रुक गया हैं वेदांता रिसोर्सेस ने अपनी सब्सिडियरी सेसा स्‍टरलाइट लिमिटेड का नाम बदलकर वेदांता लिमिटेड कर दिया हैं ओर 2018 में उसकी नजरे दीवालिया हो चुकी कम्पनी इलेक्ट्रोस्टील को खरीदने पर जमी हुई हैं जबकि वह खुद 1लाख करोड़ से अधिक के कर्जे में डूबी हुई है.
सच्चाई तो यह है कि इस देश के राजनीतिक दलों को पपेट बना कर क्रोनी केपेटिलिज्म देश के संसाधनों को लूटने का खेल सालो से खेलता आ रहा है, भाजपा और कांग्रेस इसकी दो दुकाने है कभी जनता इस दुकान पर खड़ी हो जाती हैं कभी उस दुकान पर.
गिरीश मालवीय की कलम से
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