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कर्नाटक के बहाने 1977 और 1989 का आगाज!

कर्नाटक के बहाने 1977 और 1989 का आगाज!
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कर्नाटक में कुमार स्वामी की ताजपोशी हो गयी है. केन्द्र में मोदी की सरकार के चार साल पूरे होने के बस कुछ घंटे पहले ही कर्नाटक के मंच पर जुटे विपक्षी नेताओं की भीड़ और उनके खिले चेहरे इस तरह दिख रहे थे जैसे उन्होने मोदी को सत्ता से बेदखल कर दिया है. मेरी समझ से यह पहला गैर भाजपा मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण था जिसमें इतनी संख्या में विपक्ष के दिग्गज नेता मौजूद थे.


हालांकि नीतीश कुमार, ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण में भी विपक्षी नेताओं का जमावड़ा था लेकिन कई ऐसे् चेहरे थे जो उसमें मौजूद नही थे. खासकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी का एक साथ वैसे मंच पर मौजूदगी जिसमें उनका मुख्यमंत्री भी नही है और मायावती और अखिलेश यानि फूआ और बुआ एक साथ फिर शरद पवार चंद्र बाबू नायडू शरद यादव और ममता बनर्जी सीताराम येचुरी और डी राजा अरविंद केजरीवाल और बाबू लाल मरांंडी हेमंत सोरेन और तेजस्वी यादव .आप कह सकते है कि कर्नाटक के बहाने सत्ता के खिलाफ उस तरह गोलबंदी शुरू हो गयी जिस तरह 1977 , 1989 में हुई थी. इसकी शुरूआत मायावती और अखिलेश ने यू पी से शुरू की है जो बाया कर्नाटक होते हुए अभी राजस्थान , मध्यप्रदेश और छतीस गढ पहुंचेगी.भले ही केन्द्र की एन डी ए सरकार को तत्काल इसका अहसास ना हो लेकिन आने वाले दिनों में यह एकता उनके लिये बेचैन करने वाला जरूर साबितहोगा. हालांकि इतिहास बतलाता है कि देश में सत्ता के खिलाफ एक जुट विपक्षी एकता चुनाव में सफल तो हो जाता है लेकिन उसकी सरकार टिकाउ नही होती .


लेकिन वर्तमान एन डी ए की सरकार हो या फिर पिछला यू पी ए की सरकार. पिछले दो दशको से देश में गठबंधन की सरकारे ही केन्द्र में रही है. ऐसे में अगर पूरा विपक्ष एक जुट हो जाता है तो मोदी के लिये राह आसान नही . फिलहाल कुमार स्वामी को बधाई की 40 से भी कम विधायक रहने के बावजूद वे फिलहाल कर्नाटक के सरताज बने है.

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