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राष्ट्रीय
राहुल ने कांग्रेस के इन 12 मठाधीशों को किया साइड लाइन, बनाई 2019 को लेकर नई रणनित
शिव कुमार मिश्र
25 Jun 2018 10:01 AM GMT
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कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। पूरे देश में राज्यों के भीतर कांग्रेस से जुड़े मसले अब एक केंद्रीय नेता अैर राहुल गांधी के द्वारा नियमित रूप से देखे जा रहे हैं। ये कांग्रेस पार्टी के तंत्र में आमूलचूल बदलाव का दौर है। पहले पूरे देश में पार्टी के काम की निगरानी छह से सात केंद्रीय महासचिव किया करते थे। पार्टी की आलाकमान का आकार न सिर्फ बड़ा किया गया है बल्कि हर काम की जिम्मेदारी अलग युनिट को दी गई है। इससे पार्टी को समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचने में भी मदद मिलती है। पार्टी के भीतर सक्रिय लोगों का कहना है कि राहुल ने ये काम बेहद गुपचुप तरीके से, भीतरी असंतोष को पनपने का मौका दिए बिना किया है। इस काम का पार्टी के पुराने मठाधीशों ने भीतरखाने विरोध भी किया था।
कांग्रेस पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के फैसलों के बाद कांग्रेस में अब ज्यादा स्थिरता, जिम्मेदारी की भावना और नए चेहरों के प्रति ज्यादा सहनशीलता आई है। इस नई लीडरशिप को आगे लाने के लिए राहुल ने कई पुराने चेहरों को किनारे भी किया है। अब हर राज्य एक केन्द्रीय नेता के नेतृत्व में है। लगातार संवाद और निगरानी उनकी जगह ले चुकी है। इससे कार्यकर्ताओं में नकारे जाने की भावना दूर हुई है। हर इंचार्ज को जिम्मेदारी दी गई है कि वह हर टास्क के लिए राज्य की टीम को तैयार करे और नियमित आधार पर राहुल गांधी को रिपोर्ट करे।
पार्टी के कार्यकर्ताओं में राहुल गांधी के इन फैसलों का असर दिखने लगा है। पिछले कुछ सालों में आंध्र प्रदेश के प्रतिनिधियों को भुला दिया गया था। ओमान चांडी के पद संभालते ही उन्हें राहुल गांधी से मुलाकात का वक्त मिल गया। ऐसे वक्त में जब कोई भी कांग्रेस में बिहार की बात नहीं करता था। नए इंचार्ज गोहिल ने बिहार को पार्टी के मुख्य धारा के विषयों में ला दिया है। कांग्रेस ने प्रोफेशनल, असंगठित श्रमिक, मछुवारों, ओबीसी, डाटा एनालिसिस, विदेशी मामलों और सोशल मीडिया के नए विभाग बनाए हैं। वहीं पहले से मौजूद यूनिट जैसे दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक कल्याण में कई सुधार किए गए हैं।
संगठन महासचिव अशोक गहलोत और राहुल के सचिवालय के प्रमुख के. राजू साल 2019 के लोकसभा चुनावों की हर तैयारी पर कड़ी नजर रखते हैं। अलग से चुनाव प्रबंधन समूह भी गठित किया गया है। वरिष्ठ नेताओं जैसे एके एंटनी, मोहसिनी किदवई, आॅस्कर फर्नांडिस, जर्नादन द्विवेदी, सुशील कुमार शिंदे, दिग्विजय सिंह, बीके हरिप्रसाद, गुरदास कामत, मोहन प्रकाश, मधुसूदन मिस्त्री, अंबिका सोनी और शकील अहमद को किनारे किया गया है। जबकि वरिष्ठ नेताओं जैसे चांडी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अशोक गहलोत को अहम जिम्मेदारियां दी गईं हैं। ये युवाओं और अनुभवी लोगों के बीच टकराव रोकने की भूमिका भी निभाते हैं।
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