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25 जून 1975 देश में लगाया इंदिरागांधी ने आपातकाल,पढ़े जस्टिस जगमोहन लाल का ऐतिहासिक फैसला
नई दिल्ली: 25 जून 1975 को रात 12 बजे देश की सबसे ताकतवर नेत्री और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की.जिससे की देश की आम जनता ही नहीं बल्कि देश के दिग्गज नेता भी हैरान और दंग रह गए थे.की आखिरकार ऐसी कौनसी विपदा आन पड़ी है की देश में इमरजेंसी लगनी पड़ रही है.
इंदिरागांधी द्वारा देश वासियो को दिया गया सन्देश "भाइयो और बहनों देश में राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है" ये सन्देश इंदिरा ने आकाशवाणी द्वारा न्यूज़ रीडर की जगह खुद दिया था.सन्देश साफ़ था की देश में आतंरिक इमरजेंसी लागू हो चुकी है.भारत में आपातकाल भी लग सकता है इसका अंदाजा उस समय देश के बड़े और दिग्गज नेताओ तक को नहीं था.
दरअसल उस समय देश संकट में नहीं था संकट में थी इंदिरागांधी और तत्कालीन सरकार.क्योकि उससे कुछ दिन पहले ही इलाहबाद हाई कोर्ट के न्यायधीश जगमोहन लाल सिन्हा का ऐतिहासिक फैसला आया था की इंदिरागांधी ने रायबरेली में सन 1971 में चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया था और इस कारण इलाहबाद हाई कोर्ट ने उनका चुनाव रद्द कर दिया था तथा उन्हें 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था.इस पर 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी.हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की छूट दे दी थी. वह लोकसभा में जा सकती थीं लेकिन वोट नहीं कर सकती थीं.
इंदिरा के पद नहीं छोड़ने की स्थिति में अगले दिन 25 जून को जेपी ने अनिश्चितकालीन देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया था. दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी ने राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की मशहूर कविता की पंक्ति-'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है,' का उद्घोष किया था.
जेपी ने अपने भाषण में कहा था, "मेरे मित्र बता रहे हैं कि मुझे गिरफ़्तार किया जा सकता है क्योंकि हमने सेना और पुलिस को सरकार के गलत आदेश नहीं मानने का आह्वान किया है." "मुझे इसका डर नहीं है और मैं आज इस रैली में भी अपने उस आह्वान को दोहराता हूं ताकि कुछ दूर, संसद में बैठे लोग भी सुन लें. मैं आज फिर सभी पुलिस कर्मियों और जवानों का आह्वान करता हूं कि इस सरकार के आदेश नहीं मानें क्योंकि इस सरकार ने शासन करने की अपनी वैधता खो दी है."
राजनीतिक विरोधियों को उनके घरों, ठिकानों से उठाकर जेलों में डाल दिया गया था. अभिव्यक्ति की आजादी पर सेंसरशिप का ताला जड़ दिया गया था.पत्र-पत्रिकाओं में वही सब छपता और आकाशवाणी पर वही प्रसारित होता था जो उस समय की सरकार चाहती थी. प्रकाशन-प्रसारण से पहले सामग्री को सरकारी अधिकारी के पास भेज कर उसे सेंसर करवाना पड़ता था.