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बेईमान पत्रकारों का सम्मान क्यो नही ?- पत्रकार महेश झालानी

बेईमान पत्रकारों का सम्मान क्यो नही ?- पत्रकार महेश झालानी
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मीडिया को इस बात का फख्र होना चाहिए कि न्यायपालिका को भी केवल मीडिया पर भरोसा है।
जिस तरह तथ्यपरक और उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए पत्रकारों को अवार्ड्स से नवाजा जाता है, उसी प्रकार सबसे भ्रस्ट और बेईमान पत्रकारों को भी सम्मानित करने की परम्परा शुरू कर मीडिया के गिरते स्तर में सुधार किया जा सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसे बेईमानो को सार्वजनिक रूप से नंगा करने की पहल की है।
समाज सुधार, अन्याय तथा शोषण के बारे में बात करने वाला मीडिया आज खुद शोषित और बिकाऊ बन गया है। इस बात की होड़ ज्यादा मची हुई है कि कौन ज्यादा भ्रस्ट और निकृष्ट है। इसमें बाजी मारने के लिए अनेक बेईमान, अवसरवादी और गोदी मीडिया एक दूसरे को शिकस्त देने में कसर नही छोड़ रहे है। राजदीप सरदेसाई को बरखदत्त तो अंजना ओम कश्यप को श्वेता सिंह पछाड़ने में लगे हुए है। अर्नब गोस्वामी तो आज बिकाऊ मीडिया के सरगना और भौकने वालो के सरदार है। बिकाऊ मीडिया के अलावा आजकल पत्रकारों की एक और जमात तैयार होगई है जिसे "भौकू मीडिया" कहा जाता है।
रात के 7 बजे के बाद नई कास्ट्यूम के साथ ये भौकू पत्रकार मैदान में उतर जाते है। भौकने वाले पत्रकार पैनलिस्ट को कुत्ते की माफिक फटकारने से भी नही चूकते । बावजूद इसके अपनी रोजी रोटी के लिए टॉमी टाइप पैनलिस्ट इन भौकू पत्रकारों की डांट फटकार खाने को विवश है। अंजना ओम कश्यप, अमिश देवगन, अर्नब गोस्वामी, अजय, दीपक चौरसिया, अजवानी, सुमित अवस्थी आदि आजकल यही पहाड़ा पढ़ रहे है । होड़ इस बात की लगी हुई है कि कौन ज्यादा भौक सकता है।
बात चल रही थी पत्रकारों की बेईमानी पर और बात चल पड़ी भौकने पर । आज बेईमान, चोर, भ्रस्ट और उचक्के पत्रकारों की हो रही है। कुछ विवशतावश तो कुछ आदतन पत्रकार बेईमान होते जा रहे है । अपनी शालीनता के लिए पहचानने वाले आजतक के सबसे पुराने पत्रकार पूण्य प्रसून बाजपेयी को इसलिए बाहर का रास्ता दिखा दिया क्योंकि इन्होंने बाबा रामदेव से ट्रस्ट की आड़ में करोड़ो की टैक्स चोरी के बारे में सवाल करने की गुस्ताखी की। बाजपेयी की घटना ईमानदार पत्रकारों के लिए एक सबक नही है ? क्या इस घटना के बाद पत्रकारों में दहशत का माहौल उतपन्न नही पैदा होगा ?
जिस देश का 40 फीसदी से ज्यादा मीडिया पूंजीपतियों के हाथों में हो, उस मीडिया से निष्पक्षता और ईमानदारी की अपेक्षा की जा सकती है ? मजीठिया वेतनमान तय करने वाले आयोगों की रिपोर्ट मालिक ऐसे रौंदकर चलते है जैसे ईमानदार पत्रकार की "ईमानदारी" । इन परिस्थितियों में आज पत्रकारों में लूट-खसोट की होड़ मची हुई है। किसी को राज्यसभा की टिकट चाहिए तो किसी को किफायती दर पर सरकारी जमीन का आवंटन। इसलिए मालिको से लेकर पत्रकारों में पेंट खोलने की लत पड़ गई है।
देश मे लोकतंत्र, चुनाव सुधार, भ्रस्टाचार समाप्त करने की जोर शोर से बातचीत यदा-कदा चलती रहती है। लेकिन जिस देश का मीडिया वैश्या की तरह बिकाऊ हो जाएगा, वहां स्वस्थ लोकतंत्र की बात करना भी बेमानी है। ईमानदारी अखबार निकालने वालो को सरकार विज्ञापन नही देती और फाइल कॉपी छापने वाले करोड़ो रूपये बटोर रहे है। यह है गोदी मीडिया की खासियत।
देश की जनता, पत्रकारों और राजनेताओं को यह नही भूलना चाहिए कि आज अपनी आवाज बुलंद करने का एकमात्र औजार मीडिया ही बचा है। विधायिका जहाँ अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है । वहीं न्यायपालिका की इज्जत दांव पर है। अपराधियो को सजा और परिवादी को यथोचित न्याय प्रदान करने वाले न्यायाधीशों को जब न्याय की दरकार हुई तो उन्होंने मीडिया का ही दरवाजा खटखटाया। मीडिया को इस बात का फख्र होना चाहिए कि न्यायपालिका को भी केवल मीडिया पर भरोसा है।
भ्रस्टाचार और अनैतिकता से सरोबार राजनेताओ का यह भरपूर प्रयास रहता है कि मीडिया भी उनकी तरह गंदगी में गोते लगाए। कुछ हद तक राजनेता अपनी इस साजिश में कामयाब भी हुए है, लेकिन मीडियाकर्मियों को अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए नाली में मुँह मारते राजनेताओ से अपने को बचाकर रखना होगा। अन्यथा मीडिया की अंत्येष्टि के साथ साथ पत्रकारिता की अर्थी उठना भी लाजिमी है।
- मितरो। मैं हर विषय पर बेबाकी से लिखने का प्रयास करता हूँ। इससे मेरे मित्र कम और शत्रु ज्यादा है। लेकिन मैंने कभी शत्रु और मित्रो का जोड़-बाकी नही किया। कलम चलती रहनी चाहिए। कौन खुश होता है या नाराज, मुझे रत्ती भर भी ऐसे लोगो की परवाह नही है। आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे मेरी कलम को ताकत मिलती है । इसलिए आपकी प्रतिक्रिया आमन्त्रित है।
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