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उजाले के पक्ष में और तमस के खिलाफ मनाएं एक दीवाली

Majid Khan
11 Oct 2017 5:41 AM GMT
उजाले के पक्ष में और तमस के खिलाफ मनाएं एक दीवाली
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हमें इस बार व हर आने वाली दीवाली पर केवल बाहर की स्वच्छता पर ही सिमट कर नहीं रह जाना है अपितु अंदर बाहर दोनों की स्वच्छता पर ध्यान देना होगा..?


घनश्याम बादल
"हमें इस बार व हर आने वाली दीवाली पर केवल बाहर की स्वच्छता पर ही सिमट कर नहीं रह जाना है अपितु अंदर बाहर दोनों की स्वच्छता पर ध्यान देना होगा जहां बाहरी स्वच्छता तन को बीमारी के तमस से बचाएगी वहीं आत्मा की स्वच्छता पाप, अनाचार, चोरी, हिंसा, लूटपाट हक उदूली के तामसिक पापों से दूर रखेगी।"


दीवाली , यानि भारत का सबसे बड़ा त्यौहार , हिन्दुओं , जैनियों व सिखों का मिला - जुला पर्व । वही दिन जब मुसलमान और इसाई भी दीवाली मनाने वालों को दिल खोलकर बधाई देते हैं। सारा भारत उत्तर से दक्षिण व पूरब से पश्चिम जगमगा उठता है, भारत ही क्यों जहां - जहां भी भारतवंशी पहुंचे हैं वही दीवाली पंहुच गई है। अमेरिका से आस्ट्रेलिया तक और यूरोप से एशिया व अफ्रीका तक दीप की जगमग अपने - अपने नवरूप में दुनिया भर को आज रोशन कर रही है मगर इतनी चकाचौंध रोशनी के बाद भी कहीं न कहीं अंधेरे डराते ही रहते हैं कभी किसी रूप में तो कभी किसी रूप में। बस, इन्ही अंधेरों से लड़ने , टकराने और उन्हे खत्म करने का दिन बनाना है दीवाली को। औेर केवल एक दिन नही नहीं वरन इस तरह कि जीवन से तमस पूरी तरह से समाप्त हो जाए, यदि ऐसा हो पाता है तभी होगी सच्ची दीवाली।


अब मिथक कुछ भी कहें राम के वनवास का खत्मा बताएं , या धरती पर लक्ष्मी के आगमन की सुखद कल्पना दें, अथवा देवों की दानवों पर विजय का पर्व मनाने को कहें या वामन के रूप में दानी व पराक्रमी होने के बाद भी दनुजता को प्रश्रय देने के दंड स्वरूप् बलि के धरती से पाताल निष्कासन का की खुशी कहें या फिर सिख गुरुगोविंन्द सिंह द्वारा बंदी राजाओं केी मुक्ति के लिये दीप पर्व मनाने की बाते कहें अथवा जैनियों द्वारा इसे महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस कहकर मनाया जाए । हर कथा एक ही संदेश देती है कि कितने ही प्रयासों के बाद भी तमस , अंधेरे , कलुषता , लंपटता बार - बार बहुरूपिये सी भेष बदल - बदल कर लौट आती है और हर उजाले को खा जाने, निगल जाने को सुरसा मुखी हो जाते हैं हर बार अंधेरे ... मगर जैसे अंधेरे हार नहीं मानते वैसे ही उजाले भी डटे हैं इस जीवन के रणक्षेत्र में। जैसे जीवन एक युद्ध क्षेत्र बन गया है वैसे ही दीवाली तमस के खिलाफ एक महायुद्ध के आगाज़ का दूसरा नाम व पहचान बन कर आती है हर साल।


अंधेरे गिनने बैठ जाएं तो एक इतनी लंबी श्रंखला व लिस्ट बन सकती है कि षायद महाभारतकाल के द्रोपदी के चीर से भी लंबी हो जाए। गरीबी, भूख, अषिक्षा, बेरोजगारी, अन्याय, शोषण दोहन, आतंकवाद, हिंसा, युद्ध, जातीय, सांप्रदायिक, क्षेत्रीय, नस्लवादी, चमडी के रंगवादी न जाने कितने ही संघर्ष दुनिया में रोज हो रहे हैं। सभ्यता व अमीरी के बढ़ने के साथ ही अमीरी गरीबी की खाई भी हर कहीं बढ़ रही है। नतीजतन उनके पास वह सब क्यों व कैसे है जो मेरे या हमारे पास भी होना चाहिए था मैं या मेरी कौम भूखी नंगी गरीब पिछड़ी क्यों रहे बस इसी डाह के चलते जब सकारात्मक सोच काम नहीं करती तब मानव , दानव बन दूसरों से भी वह सब छीन झपट कर ले लेने को आतुर व नकारात्मक हो जाता है जो उसके पास नहीं होता और जिसके या जिनके पास होता वें उसे हेय, निम्न या छोटा मानते व जताते हैं कदम- कदम पर। और इसी सुपीरियरिटी व इनफिरियरिटी यानि हेयता बोध और श्रेष्ठता बोध के चलते आतंकवाद जैसे भस्मासुर तक जन्म ले लेते हैं।

इसे भस्मासुर ही कहना समीचीन होगा क्योंकि यह ऐसा दानव है जो दूसरों के साथ ही स्वयं के पोषक को भी नहीं बख्श्ता है। पाकिस्तान इसका जीता जागता नमूना है दुनिया के सामने और उत्तरी कोरिया का करीब करीब - पागल शासक जुंग एक नया भस्मासुर बन कर सामने हैं। बर्मा के दर - बदर भटकते रोहिंग्या मुसलमान दुनिया के लिए नए अफगानिस्तान के तालिबानी सिद्ध होने की राह पर हैं। पाकिस्तान आज जैसे मसूदों को पाल रहा है वें भी कभी भी परमाणु बम सरीखे उसीके के या हमारे ऊपर फट सकते हैं। स्पेन से उसके ही इलाके रूस के इलाकों की तरह आज़दी मांग रहे हैं तो कोई तो वजह है। कुल मिलाकर यें सारे हालात उचित अनुचित की सीमाओं से परे दुनिया को अंधेरे बांटने , उसे कालिख में धकेलने वाले तमस ही हैं इनसे लड़ने उन्हे या तो उजालों में बदलने या नष्ट कर देने का संदेश लेकर आ रहा है दीवाली का पर्व इस बार।


एक नज़र अपने ही मुल्क पर डालिए आप देखेंगें कि सता पक्ष प्रधानमंत्री के नेतृत्व में अनेक मुहिम चलाई हैं। सामाजिक जागरण को उसने अपना नारा और हथियार बना रखा है। बेटी बचाओ- बेटी पढ़ा़ओ , स्वच्छ भारत अभियान , स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया, शौचालय बनाओ अभियान पढे़गा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया जैसे एक से बढ़कर एक उजाले सृजने के कार्यक्रम लाऊंच किये हैं। यें बेशक सराहनीय हें और उन्हे पक्ष के साथ विपक्ष का भी समर्थन मिलना ही चाहिए लेकिन अपनी सत्ता पाने की लालसा के चलते विपक्ष ऐसा करने को तैयार नहीं दिखता। .... तो संकुचित सोच के ऐसे तमस भी हमें मारने ही होगें।


मगर , इसका मतलब यह भी नहीं कि आप हर बात का दोष विपक्ष पर मंढ कर खुद हर वक्त बच निकलने को योजनाव बातें बनाते रहें यदि आपके पास अपने 'मन की बात' कहने का अधिकार है तो विपक्ष के पास और आम जन के पास भी है उसने उनसे श्रेष्ठ माना तभी तो देश ने आपको चुना था और अब हर बात का जिम्मा केवल और केवल आप का है उसे समझिए व निबाहिए और याद रखिये कि इस मुल्क की जनता के पास शिक्षा हा न हो, भोजन हो न हो, धन हो न हो, पानी न हो तो न हो पर एक दिव्य दृष्टि ज़रुर रही है जों आपके अंदर तक का देख लेती है और उसने ऐसा वक्त वक्त पर करके दिखाया है तो उसे कैसे भी किसी भी तरह उजाले दीजिए व आपको सूरज बन रोशन करेगी।


और हां अगर कहीं भूल हो जाए नोटबंदी की जी एस टी की या दूसरी वजहों से आम आदमी परेशान हो अर्थव्यवस्था में गिरावट के लक्षण दिखें तो माफी मांगने व भूल स्वीकार करने को भी तमस हटाने का ही एक कदम मानना चाहिए।
अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाही कभी - कभी कितनी महंगी पड़ जाती है यह इस देश ने पिछले दिनों घटित कई रेल दुर्घटनाओं से देखा। अगर मैट्रो तक बंदूक पंहुंच गई तो यह भी उतनी ही खतरनाक है जितना कि सेना या अर्द्धसुरक्षा बलों के कैंपों पर हमला या फिर अमेरिका के लासवेगास में एक वहशी पागल का अंधाधुंध गोलियां बरसाकर सैकड़ों की जान ले लेना। ऐसे अंधेरे भारत में न तो बढ़ने चाहिएं और न ही रहने चाहिएं तभी 'संकल्प से सिद्धि' का लक्ष्य हासिल करने की सोची जा सकती है।


हमें इस बार व हर आने वाली दीवाली पर केवल बाहर की स्वच्छता पर ही सिमट कर नहीं रह जाना है अपितु अंदर बाहर दोनों की स्वच्छता पर ध्यान देना होगा जहां बाहरी स्वच्छता तन को बीमारी के तमस से बचाएगी वहीं आत्मा की स्वच्छता पाप, अनाचार , चोरी , हिंसा , लूटपाट हक उदूली के तामसिक पापों से दूर रखेगी।


और एक बात, जो संभवतः सबसे ज्यादा ज़रुरी है वह है दीवाली के नाम पर हर साल होने वाले प्रदूषण के पाप व तमस को कैसे भी रोकिए। सरकार के रोके यह रुकने वाला नहीं ही है। अगर सरकार सख्त होती है तो आस्थाएं आड़े आती हैं, उसके सिेहांसन की चूलें हिल जाती हैं सत्ता के संघर्ष के इस तमसयुग में उससे यह उम्मीद करना बेमानी है। पर, ज़रा सोचिये क्या आपके पटाखे किसी की जान से कीमती हैं ? क्या आपकी अतिशबाजी से हर दीवाली पर जो चार सौ गुना प्रदूषण बढ़ता है वह किसी भी तरीके से उचित है ऐसे कैसे होगा स्वस्थ भारत का सपना पूरा? रोशनी करिए, घर जगमगाइए वह भी वरीयतः अपने देश में बने दीपों बल्बों से संभव हो तो ज़्यादा अच्छा। रोजी के लिए आपका और दीवाली का मुंह ताकते कुम्हार को भी मत भूलिए। भाई , वास्तव में तो यह दीपपर्व ही है ना ! तो दीप भी तो जलना जरुरी है ऐसे दीए भी जलाएं जिससे किसी के घर भी खुषी व आशा के दीप जल उठें।


एक बात अंत में और छल, छद्म प्रपंच का जाल फैलाए बैठे बाबाओं ,देशभक्ति की चाशनी में लपैट कर घटिया उत्पाद बेचने वाले व्यापारियों, खेल के नाम पर ब्ल्यूव्हेल का अंधेरा बांटने वाले देशी विदेशी तमसपुरुषों से भी सवधानी रखने की ज़रुरत है क्योंकि कहा भी जाता है 'सावधानी हटी दुर्घटना घटी' तो इस बार की दीवाली दुर्घटना रहित दीवाली हो यही कामना व प्रयास करें। अस्तु, दीवाली मनाएं, ज़रुर मनाएं पर हर दीप के साथ एक संकल्प हो जो सिद्धि तक जाए और हमारा हर कदम तमस के खिलाफ व प्रकाश समर्थन में ही हर हाल में होना चाहिए।


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