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चैत्र नवरात्र का प्रथम दिन, मां शैलपुत्री को ऐसे करें प्रसन्न

चैत्र नवरात्र का प्रथम दिन, मां शैलपुत्री को ऐसे करें प्रसन्न
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चैत्र नवरात्र पर्व की शुक्रवार से शुरुआत हो गई। तमाम छोटे बड़े मंदिरों में लोग नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा और दर्शन के लिए पहुंचने लगे।
नवरात्र शब्‍द पर गौर करें, तो इसका मतलब दो शब्‍दों में समझ में आता है। पहला 'नव' और दूसरा 'रात्रि'। इसका मतलब है नौ रातें। मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाने वाला ये सबसे बड़ा त्‍योहार है।
चैत्र नवरात्र पर्व की शुक्रवार से शुरुआत हो गई। तमाम छोटे बड़े मंदिरों में लोग नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा और दर्शन के लिए पहुंचने लगे। चैत्र नवरात्र के पहले दिन देवी के पहले रूप माता शैलपुत्री की अराधना पूरे विधि विधान से की जाती है। मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं और नवरात्र पर्व के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा होती है। मार्कण्‍डेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा।
मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा करने के लिए सुबह से ही मंदिरों में माता के भक्तों की भीड़ लग गई। यह मां पार्वती का ही अवतार है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए इन्हें पार्वती एवं हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री की आराधना से मन वांछित फल मिलता है।
इस मंत्रोच्चार के साथ करें शैलपुत्री पूजा-
'वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥'
मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल और कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धियां हासिल होती हैं।
बताया जाता है कि नवरात्रों में मां दुर्गा अपने असल रुप में पृथ्‍वी पर ही रहती है। इन नौ दिनों में पूजा कर हर व्यक्ति माता दुर्गा को प्रसन्न करना चाहता है। जिसके लिए वह मां के नौ स्वरुपों की पूजा-अर्चना और व्रत रखता है। जिससे मां की कृपा उन पर हमेशा बनी रहें। नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती और हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं।
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