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How to help the needy
साहिब-ए-निसाब ऐसा व्यक्ति होगा, जिसकी सालाना बचत 75 ग्राम सोने की कीमत के बराबर हो. उसे अपनी कुल बचत का 2.5 फीसदी जकात के तौर पर देना होता है. इसका सही तरीका यह है कि अमीर लोग सबसे पहले अपने गरीब रिश्तेदारों की तरफ मदद का हाथ बढ़ाएं, फिर अपने पड़ोसियों और दोस्तों में उन लोगों की मदद करें, जो आपकी मदद के मुस्तहिक हैं.
ऐसे लोगों की भी जकात और सदके से मदद की जा सकती है, जो कभी अमीर थे, लेकिन बुरे वक्त की मार ने उन्हें आर्थिक तंगी में धकेल दिया है. ऐसे लोग शर्म के मारे हाथ नहीं फैलाते. मांगने वालों और समाज में कमजोर तबकों के उत्थान के लिए काम करने वाले संगठनों को भी मदद की जा सकती है.
जकात का पैसा सही लोगों तक पहुंचाना भी जकात देने वालों की ही जिम्मेदारी है. ऐसे में मुसलमानों को जकात माफिया के चंगुल से निकलकर अपनी मेहनत की कमाई की जकात कुरआन के आदेशों का पालन करते हुए अपने नजदीकी रिश्तेदारों, दोस्तों, पड़ोसियों और ऐसे परिचितों की मदद में खर्च करना चाहिए, जिनके हालात से वो अच्छी तरह वाकिफ हैं.
भारत के अमीर मुसलमान अगर अपनी जकात को ईमानदारी से सही लोगों तक पहुंचाएं, तो कुछ दशकों में ही मुस्लिम समाज की गरीबी दूर हो सकती है. इससे देश में गरीबी का ग्राफ नीचे लाने में भी मदद मिलेगी.
Lathe Hindustani
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