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अगर कुंडली में है दरिद्रता योग तो कीजिये यह उपाय!

अगर कुंडली में है दरिद्रता योग तो कीजिये यह उपाय!
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इस संसार में हर इंसान खुश और समृद्ध रहना चाहता है चाहे व्यक्ति के पास अपार धन न हो पर वह दरिद्र कभी नहीं रहना चाहता। व्यक्ति ईश्वर से सदैव यही कामना करता है की वह हमेशा खुशहाल रहे। वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार दरिद्र योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति कठिन परिस्थिति में रहने वाला, व्यसनी, शंकालू सोच रखने वाला, कटु भाषी, धूर्त वृति से धन कमाने वाला, परस्त्री या परपुरुष पर ललाहित होता है।

इस योग के जातक व्यसन आदि में धन व्यर्थ करते हैं। दरिद्र योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति धनवान ओर ऐश्वर्यवान लोगों से जलने वाला, दूसरों के कार्य को बिगाड़ कर प्रसन्नत होता है। व्यर्थ के कामो में अपना समय व्यतीत कर कर्म हीन हो जाता है और कुछ नहीं कमाता। हर वस्तु बिना श्रम के मिल जाए यही अपेक्षा में फिरता रहता है। परिवार आदि अनेक रिश्तों को खोकर अकेले ही अपनी मस्ती में जीता है। वो कभी आंकलन नहीं कर पाता की उसने क्या पाया ओर क्या खोया है। बस एक विचित्र व्यक्ति बन जता है और लापरवाह होता है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्रनुसार दरिद्र योग इन परिस्थितियों में बनता है। यदि जातक की कुंडली में बृहस्पति छठे या बाहरवें भाव में स्थित हो, पर स्व्ग्रही न हो तो दरिद्र योग बनता है। यदि शुभ ग्रह केंद्र में हों पाप ग्रह धन भाव में हों तो व्यक्ति दरिद्र रहता है। यदि चंद्र से चतुर्थ स्थान पर पाप ग्रह बैठा हो तो जातक निर्धन होता है। यदि चंद्र केंद्र या मूल त्रिकोण में शत्रु राशि या नीच का हो और चंद्र से गणना करने पर बुद्ध या बृहस्पति, आठवें या बारहवें घर में आ रहा हो तो जातक की कुंडली मे द्ररिद्र योग बनता है।
किसी जातक का जन्म शुक्ल पक्ष रात्रि में हुआ हो व चंद्र छठे या अष्टम भाव में पापी ग्रह की दृष्टि में हो तो दरिद्र योग होता है। कृष्ण पक्ष में जातक का जन्म दिन में हुआ हो व चंद्र छठे या अष्टम भाव में पापी ग्रह की दृष्टि में हो तो दरिद्र योग होता है। यदि चंद्र, राहु या केतु द्वारा ग्रस्त हो व चंद्र पर पाप ग्रह की दृष्टी हो तो दरिद्र योग बनता है। यदि धन भाव का स्वामी त्रिक भाव में स्थित हो व केंद्र में शनि मंगल की युती हो तो भी दरिद्र योग बनता है।
लग्न व नवमांश कुंडली के लग्नेश चर राशि हो व लग्न में शनि और नीच के बृहस्पति की दृष्टि हो शनि पर हो तो दरिद्र योग बनता है। लग्न व नवमांश कुंडली के लग्नेश स्थिर राशि का हो और सभी पाप ग्रह केंद्र व मुल त्रिकोण में हों तथा शुभ ग्रह त्रिक भाव पर हो तो कुंडली में दरिद्र योग बनता है। यदि चंद्र सूर्य के नवमांश में हों व सूर्य चंद्र के नवमांश में हो और लग्न या निर्णय चलित कुंडली में चंद्र सूर्य की युति त्रिक भाव मे हो तो भी दरिद्र योग बनता है। यदि बृहस्पति, मंगल की युती और शनि या बुद्ध नीच के या अस्त के होने पर भी अथवा छठे आठवें व बाहरवें भाव में स्थित हो तो दरिद्र योग होता है। यदि सूर्य और बुद्ध लग्न में स्थित हों और शनि नवम भाव में स्थित हो और उस पर पापी ग्रह दृष्टि हो तो दरिद्र योग बनता है। यदि लग्न में चंद्र तुला राशि में स्थित हो और नवमांश कुंडली चन्द्रमा में शत्रु-राशि में स्थित हो और किसी शत्रु ग्रह या नीच के ग्रह की दृष्टी हो तो दरिद्र योग बन जाता है।
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