- होम
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- राष्ट्रीय+
- आर्थिक+
- मनोरंजन+
- खेलकूद
- स्वास्थ्य
- राजनीति
- नौकरी
- शिक्षा
Archived
इस वर्ष 24 जून को पड़ने वाली निर्जला एकादशी व्रत का महत्व
शिव कुमार मिश्र
23 Jun 2018 3:45 AM GMT
x
यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी को किया जाता है। इसका नाम निर्जला है;
यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी को किया जाता है। इसका नाम निर्जला है; अतः नाम के अनुसार इसका व्रत किया जाय तो स्वर्गादि के सिवा आयु और आरोग्यवृद्धिके तत्व विशेषरूप से विकसित होते हैं। व्यासजी के कथनानुसार यह अवश्य सत्य है कि 'अधिमास सहित एक वर्ष की पच्चीस एकादशी न की जा सकें तो केवल निर्जला करने से ही पूरा फल प्राप्त हो जाता है।
वृषस्थे मिथुनस्थेSर्के शुक्ला ह्येकादशी भवेत्।
ज्येष्ठ मासि प्रयत्नेन सोपोष्या जलवर्जिता।।
स्नाने चाचमने चैव वर्जयेन्नोदकं बुध:।
संवत्सरस्य या मध्ये एकादश्यो भवन्त्युत।।
तासां फलमवाप्नोति अत्र मे नास्ति संशय:।
ज्योतिषाचार्य पं गणेश मिश्र के अनुसार
निर्जला व्रत करने वाला पुरूष अपवित्र अवस्था के आचमन के सिवा बिन्दुमात्र जल भी ग्रहण न करें। यदि किसी प्रकार उपयोग में ले लिया जाय तो उससे व्रत-भंग हो जाता है। दृढ़तापूर्वक नियम पालन के साथ निर्जल उपवास करके द्वादशीको स्नान करे और सामर्थ्य के अनुसार सुवर्ण और जलयुक्त कलश दान देकर भोजन करे तो सम्पूर्ण तीर्थों मे जाकर स्नान दानादि करने के समान फल होता है। इसे करने से विष्णुलोक की प्राप्त होती है। एकादशी व्रत करके द्वादशी मे जलकुम्भ और शर्करा का दान करना चाहिये। दान देते समय निम्नलिखित मंत्र का प्रयोग करते हैं-
देव देव हृषीकेश संसारार्णवतारक।
उदकुम्भप्रदानेन यास्यामिहरिमंदिरम्।।
एकादशी व्रत का इतिहास-
एक बार बहुभोजी भीमसेन ने व्यासजीके मुख से प्रत्येक एकादशी को निराहार रहने का नियम सुनकर विनम्र भाव से निवेदन किया कि 'महाराज! मुझसे कोई व्रत नही किया जाता। दिन भर बड़ी तीव्र क्षुधा बनी ही रहती है। अतः आप कोई ऐसा उपाय बतला दीजिये जिसके प्रभाव से स्वत: सद्गति हो जाय।' तब व्यासजी ने कहा कि 'तुमसे वर्षभर की सम्पूर्ण एकादशी नहीं हो सकती तो केवल एक निर्जला कर लो, इसीसे सालभर की एकादशी करने के समान फल हो जायगा।' तब भीम ने वैसा ही किया और स्वर्ग को गये।
ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, लब्धस्वर्णपदक, शोधछात्र, ज्योतिष विभाग ,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
Next Story