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सिमरिया धाम -- आस्था का महाकुंभ

सिमरिया धाम -- आस्था का महाकुंभ
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शनिवार को मैं राजेन्द्र नगर जयनगर इंटर सिटी से जब घर जा रहा था तो रास्ते में मेरे मैडम जी का फोन आया कि माता जी कल्पवास करने के लिये सिमरियाधाम गयी है उनसे मिलते हुए आइयेगा. सिमरिया घाट जो अब सिमरिया धाम हो गया है उसका नाम सुनते ही आंखो के सामने कल - कल छल -छल करती गंगा कि वह अविरल धारा जो राजेन्द्र सेतु के मजबूत पायों से भी टकराती हुई बल खाती हुई अविरल बहती हुई दिखती है.


यानि चलते रहो का जीवन दर्शन यदि पाना है तो आप गंगा के किनारे आइए. हालांकि अब जल का प्रवाह थोड़ा कम हुआ है लेकिन धार की गति अभी भी तेज है. गंगा का दर्शन करने का सौभाग्य मुझे पहलीबार वचपन मे तब हुआ जब मेरी मां ने एक कोठी ( ग्रामीण इलाको में अनाज रखने के लिये मिट्टी का बना गोल घर ) गंगा में प्रवाहित करने के लिये मुझे लायी थी. ऐसी मान्यता है कि पुत्र रत्न की प्राप्ति होने के बाद छोटी कोठी में सभी प्रकार का अनाज भरकर गंगा में प्रवाहित किया जाता है.


हालांकि मैं भाई बहनो में बीच में हूं लेकिन मेरी मां ने मेरे लिये यह मनौती क्यों मांगी यह तो वही जाने लेकिन मुझे याद है कि बचपन में माथे पर कोठी लेकर मैने गंगा में प्रवाहित किया था. उस समय मेरे पास दो मां थी एक जन्म दात्री मां जो आज कल्प वास कर रही है तो दूसरी मुक्तिदायिनी मां गंगा जिसकी गोद में जन्म देने वाली मा तपस्या में लीन है. खैर छोड़िये इन बातो को पूरी पुरानी यादे आखो के सामने तैरती नजर आ रही है.इन्ही पुरानी यादो को सहेजते हुए जब ट्रेन राजेन्द्र पुल पर दिखी तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना ना रहा. इस बार कल्प वासियो की संख्या काफी अधिक है. जब मैने पूरब और पश्चिम की तरफ नजर दौड़ायी तो मेला का क्षेत्र काफी व्यापक था. फिर राजेन्द्र पुल स्टेशन के किनारे पश्चिम तरफ भी लोग कुटीर बना कर रह रहे है.


मुझे पूरी तरह से याद है कि सैकड़ो वर्षो से सिमरिया घाट में चले आ रहे कल्पवास मेला में आज से 10 - 15 वर्ष पहले तक कोई सरकारी इंतजाम नही के बराबर था. हालांकि मिथिलांचल से आने वाले कल्पवासियो की संख्या तब भी अच्छी होती थी. लेकिन इस मेले को राजकीय मेला का दर्जा दिलाने के लिये लोगों ने काफी जद्दोजहद की थी. अत में उन्हे सफलता भी मिली . लेकिन आज तो सिमरिया घाट सिमरिया धाम हो चुका है. जहां समूचे देश में मौजूद चार चौसठ योगिनी मंदिरों में एक बन चुका है. इसके अलावे दर्जनों मंदिर और आश्रम स्थायी हैं. किंवदंतियो के अनुसार माता सीता जब भगवान श्री राम के साथ शादी के बाद अयोध्या लौट रही थी तो यहा सखियो के साथ पहुंची थी और अवध के लिये यही से गंगा पार हुई थी. कल्पवास का भी अपना इतिहास रहा है और अब तो यहां पर महाकुंभ का भी आयोजन हो रहा है. 6 साल पूर्व अर्धकुंभ के बाद महाकुंभ की शुरूआत हो रही है. पिछले कई वर्षो से कार्तिक के महीने में गंगा आरती भी हो रही है. यानि सिमरिया घाट अब सिमरिया धाम हो चुका है. लेकिन कुंभ के आयोजन को लेकर स्थानीय स्तर पर विवाद भी शुरू है.


हालांकि अर्ध कुंभ के समय आचार्य किशोर कुणाल ने विरोध किया था लेकिन इस बार वे मौन हैं. कुंभ की चर्चा सभी पंचा्गो मे भी की गयी है. हालांकि सिमरिया धाम कुंभ के जनक चिदात्मन जी का भागीरथी प्रयास 6 साल पहले ही सफल हो चुका है. लेकिन इस बार भी आयोजन को सफल बनाने मे पिछले बार की तरह कुंभ सेवा समिति दिन रात एक किये हुए है. इनके सदस्यो के नाम और इनके कार्यो की चर्चा हम बाद में फिर कभी करेगें लेकिन इतना तो तय है कि गंगा महा आरती और कुंभ का आयोजन करने में जिन लोगों की महती भूमिका है वे वंदनीय है. हो सकता है कि कुंभ को लेकर वैचारिक मतभिन्नता हो सकती है लेकिन इसकी सफलता से बेगूसराय ही नही बिहार पर्यटन के मानचित्र पर मजबूती से दिखेगा.


अभी यह कहना अतिशयोक्ति होगी लेकिन वह दिन दूर नही जब यह इलाका बड़हिया अंबा मंदिर और जयमंगला गढ को जोड कर शक्ति शर्किट का रूप ना ले ले. खैर यही सोचते हुए मैं कल्पवास मेले में पहुंचा. मां के दर्शन किये . सही में वह तपस्या में लीन है. कल्पवास के बारे में फिर आगे विस्तार से. फिलहाल एक आग्रह अगर संभव हो तो एक दिन के लिये भी कल्पवास मेला आयें और सिमरिया धाम कुंभ मेले का दर्शन और स्नान अवश्य करे.

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