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विजयदशमी 2017: बुराई पर अच्छाई की जीत को इस तरह बनाए कुछ खास...जानें शुभ मुहूर्त एवं पूजन विधि

आनंद शुक्ल
29 Sep 2017 10:49 AM GMT
विजयदशमी 2017: बुराई पर अच्छाई की जीत को इस तरह बनाए कुछ खास...जानें शुभ मुहूर्त एवं पूजन विधि
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दशहरा या विजयादशमी एक ऐसा दिन जब रावण के पुतले को जलाया जाता है और उसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। देश को हर कोने में लोग अपने-अपने अंदाज में दशहरा मनाते हैं। जानिए इस वर्ष का शुभ मुहूर्त एवं पूजा पाठ विधि जो आपके जीवन में सफलता का किवाड़ खोलेंगे।

नई दिल्ली: नवरात्रि का आखिरी दिन दशहरा होता है। दशहरा या विजयादशमी एक ऐसा दिन जब रावण के पुतले को जलाया जाता है और उसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। देश को हर कोने में लोग अपने-अपने अंदाज में दशहरा मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें जीवनभर निराशा नहीं मिलती। दशहरा पर विजय मुहूर्त 14:08 से 14:55 बजे तक है। अपराह्न पूजा समय का समय 13:21 से 15:42 तक है। दशमी तिथि 29 सितंबर को 23:49 बजकर आरंभ होगी और 1 अक्‍टूबार को 01:35 मिनट पर समाप्‍त होगी।

दशहरा में ऐसे करें पूजन

वैदिक हिन्दू रीति के अनुसार इस दिन श्रीराम के साथ ही लक्ष्मण जी, भरत जी और शत्रुघ्न जी का पूजन करना चाहिए। इस दिन सुबह स्‍नान करने के बाद घर के आंगन में गोबर के चार पिण्ड गोल बर्तन जैसे बनाएं। इन्हें श्री राम समेत उनके अनुजों की छवि मानना चाहिए। गोबर से बने हुए चार बर्तनों में भीगा हुआ धान और चांदी रखकर उसे वस्त्र से ढक दें। फिर उनकी गंध, पुष्प और द्रव्य आदि से पूजा करनी चाहिए। पूजा के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य वर्ष भर सुखी रहता है।

प्राचीन काल से चल रही है प्रथा

प्राचीन काल में क्षत्रिय युद्ध पर जाने के लिए इस दिन का ही चुनाव करते थे। उनका मानना था कि दशहरा पर शुरू किए गए युद्ध में विजय निश्चित होगी। वहीं दशहरा पर किए जाने वाले शास्त्र पूजन का भी अपना महत्व है। दशहरे पर शमी के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है। नवरात्र में भी शमी के वृक्ष की पत्तियों से पूजन करने का महत्व बताया गया है। नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन शाम के समय वृक्ष का पूजन करने से आरोग्य व धन की प्राप्ति होती है।

पौराणिक कथा है

पौराणिक कथा के अनुसार रावण का वध करने से पूर्व भगवान श्री राम ने शक्ति का आह्वान किया था। प्रभु श्री राम की परीक्षा लेते हुए पूजा के लिये रखे गये कमल के फूलों में से मां दुर्गा ने एक फूल को गायब कर दिया। श्री राम को कमलनयन यानि कमल जैसे नेत्रों वाला कहा जाता था इसलिये उन्होंनें अपना एक नेत्र मां को अर्पण करने का निर्णय लिया ज्यों ही वे अपना नेत्र निकालने लगे देवी प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रकट हुई और विजयी होने का वरदान दिया। माना जाता है इसके पश्चात दशमी के दिन प्रभु श्री राम ने रावण का वध किया। भगवान राम की रावण पर और माता दुर्गा की महिषासुर पर जीत के इस त्यौहार को बुराई पर अच्छाई और अधर्म पर धर्म की विजय के रुप में देशभर में मनाया जाता है।

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