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सनातन धर्म में सनातन क्या है, सनातन का क्या अर्थ है ?

सनातन धर्म में सनातन क्या है, सनातन का क्या अर्थ है ?
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देवी देवता व मन्दिर आदि परमात्मा की प्राप्ति के मार्ग में बाधक है तथा सनातन धर्म/आर्य पुत्रो के विनाश का कारण भी ।
देवी देवता व मन्दिर आदि परमात्मा की प्राप्ति के मार्ग में बाधक है तथा सनातन धर्म/आर्य पुत्रो के विनाश का कारण भी । '' आत्मा '' को समझने से आत्मज्ञान की प्राप्ति होता है। और आत्म ज्ञान से हम ध्यान की अनंत गहराईयो में उतर कर परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते है। यानि मोक्ष की। और भगवान-भूमि,गगन,वायु,अग्नि,नीर यह पंच तत्वो से भगवान होते है। और यह पंच तत्व ही जड होते है।
सनातन धर्म में सनातन क्या है ?
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आज बहुत गर्व से राम कथा में अथवा भागवत कथा में '' कथा के अंत में कहते है,बोलिए-- सत्य सनातन की जय। कभी हिन्दू की जय या हिन्दू धर्म की जय नही होता ? क्यो मनन करें ?
तनिक विचार करें ? सनातन का क्या अर्थ है ?
सनातन अर्थात ,जो सदा से है ,जो सदा रहेगा,जिसका अंत नही है और जिसका कोई आरंम्भ नही है वही सनातन है। और सत्य में केवल हमारा धर्म ही सनातन है। बुद्ध के पहले बौद्ध मत नही था,जैन मुनि से पहले जैन मत नही था,यीशु के पहले ईसाई मत नही था,मुहम्मद से पहले इस्लाम मत नही था,गुरूगोविंद से पहले सिख्ख मत नही था,ऐसे ही सृष्टि के आरंम्भ से लेकर आज तक अनेक धर्म हुए जिनमें कई विलुप्त हो गये । तथा कुछ आज भी विद्मान है। केवल सनातन धर्म ही सदा से है,सृष्टि के आरंम्भ से अब तक भविष्य में क्या होगा कहा नही जा सकता ?
परन्तु ऐसा क्या है सनातन धर्म में जो सदा से है ?
1-श्री कृष्ण की भागवत कथा श्री कृष्ण के जन्म से पहले नही था, अर्थात कृष्ण भक्ति सनातन नही है।
2-श्री राम की रामायण तथा रामचरितमानस भी श्री राम जन्म से पहले नही था,अर्थात राम भक्ति भी सनातन नही है ।
3-श्री लक्ष्मी भी, '' यदि प्रचलित सत्य कथाओ के अनुसर सोचे तो '' समुद्र मंथन से पहले नही था । अर्थात लक्ष्मी पूजन भी सनातन नही है।
4-शक्ति और गणेश यह दोनो एक पद है। और सनातन धर्म में पदो की पूजन भी सनातन नही।
4-गौरी पुत्र गणेश जन्म से पूर्व गणेश का कोई अस्तित्व नही था,तो गणपति पूजन भी सनातन नही है।
5-शिवपुराण के अनुसार-शिव ने विष्णु व ब्रम्हा को बनाया तो विष्णु भक्ति व ब्रम्हा भक्ति भी सनातन नही।
6-विष्णु पुराण के अनुसार- विष्णु ने शिव और ब्रम्हा को बनाया तो शिव भक्ति और ब्रम्हा भक्ति सनातन नही।
7-ब्रम्ह पुराण के अनुसार-ब्रम्हा ने विष्णु और शिव को बनाया तो विष्णु भकित और शिव भक्ति भी सनातन नही।
8-देवी पुराण के अनुसार-देवी ने ब्रम्हा,विष्णु,और शिव को बनाया तो यहां से तीनो की भक्ति सनातन नही है।
परन्तु यहां पर तनिक विचार करें ? कि यह सभी ग्रन्थ एक दूसरे से उल्टी बात कर रहे है,तो इनमें से अधिक से अधिक एक ही सत्य हो सकता है । बाकि के सब झूठ ? लेकिन फिर भी अज्ञानी हिन्दू इन सभी ग्रन्थो को सही मानते है। यह अहो दुर्भाग्य नही तो और क्या है। यहां एक बात और भी विचार करने योग्य है,कि सतयुग से लेकर द्वापर तक अनेको अवतारी महापुरूषो ने जन्म लिया ? क्या इन महापुरूषो को उस समय भगवान या परम पिता परमात्मा किसी ने कहा ? यदि ये अवतारी महापुरूष वास्तव में '' परमपिता परमात्मा '' या भगवान थे तो उस समय इन्हे कोई क्यो नही पहचाना ? फिर आपने इन्हे कैसे पहचान लिया कि वे ही '' परमपिता परमात्मा'' है ?
फिर ऐसा सनातन क्या है है ? जिसका हम जयघोष करते है ?
सनातनी आर्य पुत्र नही ! बलिक आधे से अधिक हिन्दू केवल हनुमान चालीसा में ही दम तोड देते है। जो उससे ज्यादा धार्मिक होते है वो गीता का नाम ले देगें,किन्तु भूल जाते है कि गीता तो योगेश्वर श्री कृष्ण देकर गए है। परमपिता परमात्मा का ज्ञान तो उससे पहले भी होगा या नही ? अर्थात वो ज्ञान जो कृष्ण संदीपनी मुनि के आश्रम में पढे थे। जो कुछ अधिक ज्ञानी होगें वो उपनिषद तो ऋषियो की वाणी है न कि परम पिता परमात्मा की वाणी।
तो परमात्मा का ज्ञान कहा है ?
वेद !! जो स्वंय परमात्मा की वाणी है, उसका अधिकांश अज्ञानी हिन्दुओ को केवल नाम ही पता है। वेद परमपिता परमात्मा ने मनुष्यो को सृष्टि के पारंम्भ में ही दिये थे। जैसे कहा जाता है कि '' गुरू बिना ज्ञान नही '' ,तो संसार का आदि गुरू कौन था ? वो परमपिता परमातमा ही था । उस परमपिता परमात्मा ने ही सब मनुष्यो के कल्याण के लिए वेदो का प्रकाश,सृष्टि के आरंम्भ में ही किया।
जैसे- यदि कोई मनुष्य को नया कलपुर्जा खरीदता है तो उसे उसको संचालन करने के लिए एक गाइड मिलता है।,और उसमें वर्णित शब्द, िइसे यहां पर रखे,इस प्रकार से वरते,अमुक स्थान पर न ले जाए,अुमक चीज के साथ न रखे,आदि..... ठीक उसी प्रकार जब परमपिता परमात्मा ने हमें मानव तन दिय,तथा ये संम्पूर्ण सृष्टि हमे रच की दी,तब क्या उसने हमें यू ही हमें बिना ज्ञान व बिना किसी निर्देशो के भटकने को छोड दिया ? जी नही,उसने हमें साथ में एक गाइड दी,कि सृष्टि को कैसे वर्ते,क्या करें,ये तन से क्या करें,इसे कहां लेकर जाए,मन से क्या विचारे,नेत्रो से क्या देखे,कानो से क्या सुने,हाथो से क्या करे आदि। उसी का नाम वेद है। वेद का अर्थ हो है ज्ञान।
हमने आज उस परमपिता परमात्मा के ज्ञान को ही भुला दिया है।
वेदो में क्या है ?
वेदो में कोई कथा कहानी नही है। न तो कृष्ण की न राम की,वेद में तिनके से लेकर परमेश्वर पर्यतं वह संम्पूणर््ा मूल ज्ञान विद्यमान है,जो मनुष्यो को जीवन में आवश्यक है।
मै कौन हूं , मुझमें ऐसा क्या है जिसमें '' मै '' की भावना है ?
मेरे हाथ,मेरे पैर,मेरा सिर,मेरा शरीर,पर मै कौन हूं ?
मै कहा से आया हूं ? मेरा तन तो यही रहेगा ,मै कहा जाऊंगा,परमात्मा क्या करता है ?
मै यहां क्या करू ? मेरा लक्ष्य क्या है ? मुझे यहा क्यूं भेजा गया ?
इन सब बातो का उत्तर तो केवल वेदो में ही मिलेगा । रामायण व भागवत व महाभारत आदि तो ऐतिहासिक घटनाए है। जिससे हमें सीख लेनी चाहिए और इन जैसे महापुरूषो के दिखाए सनमार्ग पर चलना चाहिए । लेकिन उनको ही सब कुछ मान लेना,और जो स्वंय परमात्मा का ज्ञान है उसकी अवहेलना कर देना केवल मूर्खता है। तो आइये सनातन धर्म को मन से स्वीकार करें और आर्य पुत्र बने तथा वेदो की ओर लौटे । शिव और शंकर ये दो अलग-अलग है। शंकर जड है तो शिव प्रकाश। यही वह मुख्य कारण है कि शिलिंग के ही व्यास के 12 फुट तक की दूरी में उर्जा विद्मान है। बाकि किन्ही मुर्तियो में नही । हिन्दू की इन्ही पद्यतियो व परंम्परो की नकल कर आज विश्व के सभी सम्प्रदायो ने मस्जिद,चर्च,गुरूद्वारा,व बौद्ध,जैन मन्दिरो का निर्माण कर रखा है। और स्वंय गाड,खुदा,बौद्ध,जैनमुनि आदि बन बैठे । परन्तु दुर्भाग्य आज भी विश्व का कोई धर्म सनातन पद्यति की नकल करने में असफल रहा। सनातन आज भी शब्द वेदी वाण व चक्रीय सिद्धान्तो से उर्जा का संग्रह करना जानता है। जो एक विस्फोट का कारण बन सकता है। तनिक सोचे ? क्या कोई '' मूल '' हो सकता है ? मूल की फोटो कापी जरूर हो सकता । परन्तु '' मूल नही । भगवान की पूजा करने पर एक चित्र उभरता है परन्तु क्या आपने कभी सोचा ? '' परमपिता परमात्मा '' का ध्यान करने से क्यो नही ? और या सभी धर्मो के धार्मिक स्थल ? सभी धर्मो के धार्मिक स्थल विनाश के कारक है। कमाई का माध्यम है। यदि इससे परमपिता परमात्मा का ज्ञान होता तो इससे प्राप्त धन, सभी धर्मो के प्रमुख स्वंय सहित दुनिया के तबाही में न खर्च करते। न ही यह धर्मान्तरण जैसे कार्य होते ? वास्तव में यह धर्म है ही नही ? यह एक कबीला है या आप इसे समप्रदाय कह सकते। और इनके पुस्तक उस सम्प्रदाय का संविधान। तभी तो यह सभी सम्प्रदाय एक-दूसरे से श्रेष्ठ होने के लिए इन्सान ही इन्सान की जान लेने पर आमादा है। सोचो ? क्या परमपिता परमात्मा का ज्ञान भी कभी यह मार्ग दिखाता है। क्या अलग-अलग भेष-भूषा धारण करने से नये धर्म की स्थापना संम्भव है ? यदि संम्भव है तो आज तक इन धर्मो से कितने लोगो का भला हुआ ? जब धर्म संस्थापको ने परमपिता परमात्मा को देखा तो इनका जीवन कष्ट मय क्यो हुआ ? कभी सोचा ? आखिर कयो नही सोचा ? कुछ लोग तो यह भी कहते है कि मैने परमात्मा को देखा है ? परन्तु क्या यह सत्य हो सकता है ? क्या साधारण इन्सान परमपिता परमात्मा की भाषा को समझता है ? या परमपिता परमात्मा इनकी भाषा को समझता है ? ऐसे में परमपिता परमात्मा ने इनको ज्ञान कैसे दिया ? और एक नये धर्म की स्थापना का मार्ग कैसे दिखलाया ? जीवन और मृत्यु एक सास्वत सत्य है । तथा यह सम्पूर्ण जगत मिथ्या । तनिक एक बात पर और गौर से विचार करें! जीवो का कल्याण हो । जगत का कल्याण हो सत्य सनातन की जय । सोचो यह शब्द क्या सनातन धर्म/आर्य पुत्र के अलावा विश्व के अन्य धर्म या सम्प्रदाय करते है ? यदि होता हो तो कोई सज्जन कृपया कोई एक उदाहरण प्रस्तुत करें।
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