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दृढ़ संकल्प इच्छा शक्ति से मिलती है मंजिलेंः डीएसपी श्रेष्ठा ठाकुर

दृढ़ संकल्प इच्छा शक्ति से मिलती है मंजिलेंः डीएसपी श्रेष्ठा ठाकुर
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पड़ताल में पता चला कि दोनो ननदो ने दुल्हन का हाथ पकड़कर जला कर मार डाला। वह बचाव के लिए चीखती चिल्लाती रही। निष्कर्ष के बाद दोनो को गिरफ्तार कर जेल भेजा। वह घटना भुलाए नहीं भूलती है।

डा.एम.एस.परिहार/कुंवर दिवाकर सिंह
बहराइच। '' कोई चलता पग चिन्हों पर कोई पग चिन्ह बनाता है, है वही सूरमा इस जग में जो औरो से जाना जाता है।'' इन पंक्तियों की असली हकदार की किरदार है युवा डिप्टी एसपी श्रेष्ठा ठाकुर। गंगा की निर्मल उत्कल जलधि तरंगों के मनभावन हिलोरो से अहलादित औद्योगिक नगरी कानपुर। जहां नाना साहब पेशावर के जन्मभूमि की सोधी माटी में श्रेष्ठा ने ढाई दशक पहले उस कुलीन क्षत्रप घर में आंखे खोली जहां विपुल वैभव और सभ्यताओं का अनूठा समागम का परिवेश था। मां का आंचल, पिता का वात्सल्य और सह उदर (सहोदर) के पूर्ण सहयोग से श्रेष्ठा उस सुनहरे पल की सहगामी बनी जिसकी ललक उनके वाल्यावस्था में ही मन मस्तिष्क में हिलोरे ले रही थी। झंझावतों को पराजित कर अपराजिता श्रेष्ठा ठाकुर आयरन लेडी की श्रृंखला में शुमार हो चुकी है। हसमुख, धैर्य की धनी, मृदभाषी और जनहित जेहाद में जिद्दी, मायूसो की मसीहा श्रेष्ठा ठाकुर से उनके आवास पर डीएनए के विशेष संवाददाता डा.एम.एस.परिहार एवं व्यूरो प्रमुख कुंवर दिवाकर सिंह की छुए अनछुए पहलुओ पर वार्ता हुई। श्रेष्ठा ने वेवाक टिप्पणी दिया। प्रस्तुत है जिसका कुछ प्रमुख अंश।
प्रश्न- आपने प्रारम्भिक तत्पश्चात उच्च तालीम कहां से हासिल किया़?
श्रेष्ठा- कानपुर नगर में।
प्रश्न- आप प्रांतीय पुलिस सेवा में कब चयनित हुई?
श्रेष्ठा- 2012 में क्वालीफाई प्रथम प्रयास में किया 37वां रैंक मिला।
प्रश्न- प्रथम नियुक्ति कहां रही?
श्रेष्ठा- मुरादाबाद में प्रशिणोपरान्त नोयडा, बुलन्दशहर के अनूप शहर और स्याना सर्किल से सफर किया। सितम्बर 16 से जून 17 तक। 14 जुलाई 17 बहराइच तबादला हुआ। यहां पुलिस लाइन, टैªफिक के अलावा सीओ महसी और अब सीओ रिसिया।
प्रश्न- आप में वह ओजस्व है, बौधिक क्षमता, दक्षता, लगन है जिससे अन्य उच्च सेवाओं में जा सकती थी। फिर पुलिस महकमा ही रास क्यों आया?
श्रेष्ठा- सच बताऊ, वर्दी पहनने की ललक बचपन से ही जेहन में थी। यह एक ऐसा मोहकमा है कि पीडि़तों को त्वरित इंसाफ देने की कूबत होती है। ऐसे पीडि़तों की आशा भरोसा और महती आवश्यकता में मदद किया जा सकता है जिसकी त्वरित जरूरत होती है। हम इस सेवा से पूर्ण सन्तुष्ट है।
प्रश्न- आप मनचाही उपलब्धि का श्रेय किसे देना चाहेगी?
श्रेष्ठा- सबसे पहले उस विधाता को, जिसने मुझे एक संस्कारिक मां-बाप और सच्चा हितैषी सखा सरीखा भाई दिया।
प्रश्न- थानों में फरियादियों के प्रति पुलिस से क्या अपेक्षा करती है?
श्रेष्ठा- थानों में आगन्तुकों के प्रति पुलिस अच्छा सदाचार व्यवहार करे। पीडि़त को पूरी बात संजीदगी से सुनी जाय। छोटी घटना को कत्तई नंजरदाज न किया जाय। छोटे मामले अनदेखी से विकराल व विनाशकारी, लोमहर्षक रूप ले लेते है।
प्रश्न- आप अपने कार्यशैली में किस हद तक राजनैतिक हस्तक्षेप स्वीकार करती है?
श्रेष्ठा- मै कोई अन्र्तयामी तो हूं नहीं। भूल हो सकती है। सही कार्य के लिए सभी का स्वागत है। अनुचित कार्य में दबाव पर सिर्फ सारी वेरी सारी। ऐसा भी होता है कि राजनीतिक मान्यवरो को एक पक्षीय तर्क ही मिल पाता है उन्हें पूरी बात बतायी जाये तो कोई भी नेता अथवा अधिकारी अनुचित कार्य के लिए दबाव नहीं जनायेगा। ऐसा मेरा मानना है।
प्रश्न- आपके बारे में चर्चा है कि नेताओ से पंगा ले लेती है। बुलन्दशहर का वाकया उदाहरण है। आपका अचानक स्थानान्तरण उसका कारक रहा?
श्रेष्ठा- वह महज एक इत्तेफाक रहा। रही बात स्थानान्तरण की तो नौकरी में स्थानान्तरण एक स्वस्थ्य परम्परा है। मुझे इसका कोई मलाल नहीं है।
प्रश्न- अच्छा यह बताइए जब आपने क्वालीफाई किया और वर्दी पहनी तो सबसे पहले किसे सूचना देकर खुशी का इजहार किया?
श्रेष्ठा- भाई को? संचार क्रान्ति के युग में परिणाम नेट पर देख लेते है। बावजूद इसके जब वर्दी पहनी तो भाई से गले मिली।
प्रश्न- आप नारी सशक्तीकरण उत्थान अभियान को परवान चढ़ा रही है। यह अभियान कैसे पूर्ण संतृप्त होगा?
श्रेष्ठा- खासकर इस जनपद में महिलाओं में सशक्त शिक्षा, जागरूकता जागरण जरूरी है। सरकार भी संजीदा है। बस जिम्मेदार मिशनरियों के सत्त सहयोग समर्पण की जरूरत है। एनपीओ के कार्यशैली की धरातलीय समीक्षा जरूरी है।
प्रश्न- आप अपने सेवा में ऐसा कोई कार्य किया है जो यादगारी और आत्म सन्तुष्टी की पराकाष्ठा हो?
श्रेष्ठा- जी जब मै बुलन्दशहर में थी एक दहेज हत्या केस की विवेचना मुझे मिली। आरोप था कि दो ननदो ने मिलकर दुल्हन को जला दिया। जांच शुरू किया तो पहले दबाव फिर लालच का प्रस्ताव। मुझे सच समझ में आ गया। पड़ताल में पता चला कि दोनो ननदो ने दुल्हन का हाथ पकड़कर जला कर मार डाला। वह बचाव के लिए चीखती चिल्लाती रही। निष्कर्ष के बाद दोनो को गिरफतार कर जेल भेजा। वह घटना भुलाए नहीं भूलती है।
प्रश्न- जन्म कानपुर, परिवार नोयडा, भाई फिरोजपुर, आप बहराइच ऐसी विहंगम परिस्थितियों में कैसे तालमेल बैठा पाती है?
श्रेष्ठा- समय से पहले भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता। ऐसी परिस्थितियां परीक्षा की कडी में शुमार होता है। मै अब तो यहां के पीडि़तों के खुशी में अपनी खुशी खोजकर खुश रहती हूं। शनैः शनैः सब सामान्य हो जायेगा। समय एक सरीखा नहीं रहता है।
प्रश्न- आप उन युवती प्रतिभागियों को क्या संदेश देना चाहेगी जो श्रेष्ठा ठाकुर की तरह वर्दी पाने की ललक संजोकर जद्दोजेहाद कर रही है। संसाधन बाधा बना है?
श्रेष्ठा- '' मंजिलें उनको मिलती है जिनके सपनो में जान होती है, पंखो से कुछ नहीं होता, हौसलो से उड़ान होती है।'' लक्षित लक्ष्य को हासिल करने में दृढ़ शक्ति जरूरी है। ऐसे प्रतिभागियों की मेरी अपनी निजी राय है कि अवसाद तथा आलस्य को त्याग कर तैयारी करे।
प्रश्न- आपके वर्किंग को कतिपय लोगो को रास नहीं आती। क्या सच है?
श्रेष्ठा- मुस्कुराते हुए। ''फानूस बनके जिसकी हिफाजत खुदा करे, वह शंमा क्या बुझेगी जिसको रोशन खुदा करे।''
डीएसपी श्रेष्ठा ठाकुर बुलंदशहर में बीजेपी नेता से बहस करती हुई दिखीं थी। उसमें उनकी कोई गलती नहीं थी। लेकिन सरकार ने उनका तबादला बुलंदशहर से बहराइच कर दिया था। तब से इसी जनपद में अपनी सेवाएँ दे रही है।
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