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डीएम बरेली फिर सवालों के घ्‍ाेर में

डीएम बरेली फिर सवालों के घ्‍ाेर में
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जिलाध्‍िाकारी बरेली राघवेन्‍द्र विक्रम सिंह अपनी कथित तेजी को लेकर फिर सवालों के घेरे में हैं।
जिलाध्‍िाकारी बरेली राघवेन्‍द्र विक्रम सिंह अपनी कथित तेजी को लेकर फिर सवालों के घेरे में हैं। इस बार केन्‍द्रीय मंत्री संतोष गंगवार का पत्र किनारे फेंक और कर्मचारी भविष्‍य निधि संगठन के सहायक आयुक्‍त के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने को लेकर। देश में अपनी तरह का यह पहला मामला बताया जाता है। इसके पीछे प्रदेश के वित्‍त मंत्री राजेश अग्रवाल की भूमिका भी मानी जा रही है। गंगवार और अग्रवाल का भाजपा की स्‍थानीय राजनीति मे शीत युद्ध जग जाहिर है। गंगवार के चुनावों में भी इसका धुआं दिखता है।

राघवेनद्र विक्रम पिछले महीने कासगंज दंगों के दौरान अपनी अवांक्षित फेसबुक पोस्‍ट को लेकर विवादित हो गए थे। शासन से फटकारे जाने पर उसी रात वह पोस्‍ट हटा तो ली गयी थी , लेकिन ,दैनिक जागरण के अनुसार , उस पर रिकार्ड 2900 से ज्‍यादा लाइक और 3100 से ज्‍यादा कमेंट आए थे। कमिश्‍नर ने शासन को भेजी जांच रिपाेर्ट में जिलाधिकारी की पोस्‍ट को ' पद के अनुरूप गैर जिम्‍मेदाराना कार्यब्‍यवहार ' बताया है। राघवेन्‍द्र विक्रम का अगले महीने रिटायरमेंट है, कहा यही जाता है कि उसके बाद वह सक्रिय राजनीति में आएंगे। प्रदेश में प्रभावशाली कुछ भाजपा नेताओं से उनके सम्‍पर्क भी अच्‍छे बताये जाते हैं। वह स्‍थानीय विधायकों को कोई भाव नहीं देते , वित्‍त मंत्री को जरूर पकडे हैं। सासंद धर्मेन्‍द्र कश्‍यप के साथ कुछ विधायक मुख्‍य मंत्री के पास जाकर रोना रो आए हैं , लेकिन जिलाधिकारी नहीं हिले।

ईपीएफओ का सहायक आयुक्‍त प्रथम श्रेणी का न्‍यायिक अधिकारी होता है। न्‍यायिक प्रक्रिया के तहत जारी उसके आदेश के खिलाफ केवल हाई कोर्ट जाया जा सकता है। क्षेत्रीय आयुक्‍त या संगठन के ट्ब्यिूनल को भी सहायक आयुक्‍त के न्‍यायिक आदेश के खिलाफ सुनवाई का अधिकार नहीं है।

संक्ष्‍ोप में मामला यह है - मुंबई के सेठ किलाचंद की कंपनी सिं‍थिंटिक केमिकल्‍स लि. को रबड फैक्टी् के लिए को बरेली में करीब 1200 एकड नाम मात्र की राशि में 99 वर्ष की लीज पर दी गयी थी । कामयाबी की तमाम ऊंचाईयां छूने के बाद यह फैक्‍टी् 18- 19 साल पहले बंद हो गयी। कंपनी ने इस भूमि पर बैंकों से कर्ज भी ले रखा है । बरेली - दिल्‍ली हाईवे पर इतनी बडी ओर इतने मौके की जमीन कहीं नहीं है , इस लिए इस पर जमीन के बडे बडे खिलाडियों की ललचाई नजरें लगी हैं। ऐसे बडे कारोबारी मामलों में नेता और अडीएम फसर भी निर्णायक भूमिका निभाते ही हैं।
कंपनी के करीब ढाई हजार पूर्व कर्मचारी अपनी पीएफ की रकम पाने को परेशान हैं। केन्‍द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार अर्से से कर्मचारियों के पक्ष में दबाव बना रहे हैं। वह सात बार के स्‍थानीय सांसद हैं , इस लिए फैक्‍टी् के कर्मचारी उन्‍हें ही ज्‍यादा घेरते हैं । वह श्रम मंत्री बने तो पीएफ विभ्‍ााग उन्‍हीं के पास आ गया। सहायक अायुक्‍त जोगेन्‍द्र सिंह कर्मचारियों की शिकायत पर इस मामले पर न्‍यायिक कार्यवाही को देख्‍ा रहे है। इस बीच भारतीय राष्‍टी्य राजमार्ग प्राधिकरण ने फैकटी् की 22 एकड जमीन लेकर मुआवजा की राशि चार करोड बाइस लाख रुपये विशेष भूमि अध्‍याप्ति अधिकारी के साथ संयुक्‍त खाते में जमा कर पीएफ वालों को सूचित कर दिया। खाता निजी बैंक कोटक महेन्‍द्रा में खुलवाया गया। श्रम मंत्री संतोष गंगवार और ईपीएफओ के रीजनल कमिश्‍नर मोहम्‍मद शारिक इस राशि में कर्मचारियों के पीएफ भुगतान के लिए एनएचएआई और जिला प्रशासन पर दबाव बनाये थे। गंगवार ने डीएम को इस बारे में पत्र लिखा और फोन पर भी कहा । सहायक आयुक्‍त जोगेन्‍द्र कुमार तमाम लिखा पढी के साथ ही जिला प्रशासन के चक्‍कर भी काटते रहे। वह जिलाधिकारी और एसएलएओ दोनों से मिले। पीएफ वालों के अनुसार जिला प्रशासन गोलमोल बात करता और भ्रामक जवाब देता रहा। नोटिसें भेजने के बावजूद हलफनामा के साथ जवाब नहीं दिया। मजबूरी में सहायक आयुक्‍त ने बाकायदा 40 - 45 पन्‍नों का न्‍यायिक आदेश लिख कर बैंक को पीएफ भुगतान को अपेक्षित राशि 1;32 करोड रु. जारी करने के निर्देश दे दिये। बैंक ने इसका डिमांड डा्फ्ट बना कर पीएफ वालों को सौंप दिया।
जिलाधिकारी के निर्देश पर एसएलएओ ने बैंक के शाखा प्रबंधक हरमीत सिंह आैर सहायक आयुक्‍त जाेगेन्‍द्र सिंह के खिलाफ कोतवाली में आईपीसी की धारा 420 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी और बैैंक पर दबाव बना डा्फ्ट रद्द करा दिया । जिला प्रशासन की इस कार्रवाई से ईपीएफओ में भारी तिलमिलाहट है। रीजनल कमिश्‍नर मो. शारिक का कहना है कि ईपीएफओ अधिनियम के तहत हुए न्‍यायिक आदेश के खिलाफ गबन की रिपोर्ट लिखवाना जिला प्रशासन की मनमानी पूर्ण कार्रवाई है। देश में ऐसा पहली बार हुआ है। इस तरह होगा तो डिफाल्‍टर कंपनियों से कर्मचारियों के फंड की रिकवरी कैसे हो पाएगी ? और भी कई मामले हैं , हजारों कर्मचारी अपने दावे के भुगतान के लिए चक्‍कर लगा रहे है । हमें तो कानूून के तहत कर्मचारियों का हित देखना है । एफआईआर के बाद हम लोग इसी की भागदौड में लगे हैं , अफिस का रूटीन काम ठप पडा है । हम हाई कोर्ट जाएंगे और मुकदमे की कास्‍ट भी जिला प्रशासन से मांगेगे। आगरा के रीजनल कमिश्‍नर आरके पाल के कहना है ऐसे मामलों में पहला अधिकार कर्मचारियों का होता है । अगर वेतन बकाया है तो पहले वह भुगतान कराया जाएगा , फिर पीएफ। इस मामले में सहायक आयुक्‍त के खिलाफ गबन का मामला बनता ही नहीं । आपत्ति थी तो डीएम को उस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देनी चाहिए थी।
दिलचस्‍प बात है कि इस मामले में पुलिस ने भी बिना जांच किये रिपोर्ट दर्ज कर ली एक और पेंच फंसेगा। जिलाधिकारी कहते हैं जमीन राज्‍य सरकार की है। जिस नाम मात्र के दर पर सिं‍थिटिक को दी गयी थी उतनी ही राशि देने पर। जब कि मुआवजा वर्तमान दर के आधार पर लिया गया है।
शंभूदयाल बाजपेयी की कलम से
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