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केंद्र सरकार पर बसपा सुप्रीमों मायावती का बड़ा हमला, जजों की नियुक्ति में दलित पिछड़ों को हक क्यों नहीं?

बसपा सुप्रीमों मायावती
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बसपा सुप्रीमों मायावती
मायावती ने कहा कि बीजेपी के मंत्रीगण अगर न्यायपालिका का पूरा-पूरा आदर-सम्मान नहीं कर सकते तो कम-से-कम उसका अपमान भी ना करें। केन्द्र सरकार का कानून मंत्रालय अगर ’’पोस्ट आफिस’’ (डाकघर) नहीं है तो उसे पुलिस थाना (कोतवाली) बनने का भी अधिकार कानून व संविधान ने नहीं दिया है।
लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी के मुखिया मायावती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभ न्यायपालिका को बार-बार अपमानित करने व उससे नीचा दिखाने की प्रवृत्ति की तीखी आलोचना करते हुये कहा कि कार्यपालिका का न्यायपालिका के साथ ऐसा विद्वेषपूर्ण बर्ताव सही नहीं है तथा प्रतिपक्षी पार्टियों के साथ-साथ देश की न्यायपालिका के प्रति भी यह केन्द्र सरकार की हठधर्मी व निरंकुशता का द्योतक है।

मायावती ने कहा कि स्वंय कानून मंत्री व अन्य केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा भी बार-बार सार्वजनिक तौर पर यह कहे जाने पर कि केन्द्रीय कानून मंत्रालय कोई ''डाकघर'' नहीं है जो जजों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट के कोलजियम की सिफारिश पर आँख बन्द करके अमल करता रहे, पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये. मायावती ने कहा कि केन्द्र सरकार के इस प्रकार के दुःखद रवैये के कारण न्यायपालिका आज अभूतपूर्व संकट झेल रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि केन्द्र व राज्यों में जनविरोधी व संविधान की पवित्र मंशा के विरूद्ध काम करने वाली बीजेपी की वर्तमान सरकारों केन्द्र व राज्य सरकारों के खिलाफ न्यायपालिका ही एकमात्र उम्मीद की किरण है जहाँ से देश की दुःखी जनता के साथ-साथ विपक्षी पार्टियों के लिये भी न्याय की आख़िरी आस बंधी हुई है।

मायावती ने कहा कि बीजेपी के मंत्रीगण अगर न्यायपालिका का पूरा-पूरा आदर-सम्मान नहीं कर सकते तो कम-से-कम उसका अपमान भी ना करें। केन्द्र सरकार का कानून मंत्रालय अगर ''पोस्ट आफिस'' (डाकघर) नहीं है तो उसे पुलिस थाना (कोतवाली) बनने का भी अधिकार कानून व संविधान ने नहीं दिया है। यह बात नरेन्द्र मोदी सरकार को विनम्रता के साथ स्वीकार करनी चाहिये और न्यायपालिका को बात-बात पर अपमानित करने के अपने अलोकतांत्रिक रवैये में सही सुधार अवश्य लाना चाहिये। यही देशहित में है।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा केन्द्र सरकार के मंत्री व बीजेपी के नेतागण बार-बार यह कहते हैं कि सन् 2016 में 126 जजों की नियुक्ति करके केन्द्र सरकार ने कमाल का काम किया है, लेकिन पहले 300 से ज्यादा जजों के पदों को खाली लटकाये रखना और फिर उसके बाद 126 जजों की नियुक्ति करना यह कौन सा जनहित व देशहित का काम है? इतना ही नहीं बल्कि केन्द्रीय मंत्रालयों में उच्च पदों पर दलितों, आदिवासियों व पिछड़े वर्ग के अफसरों की तैनाती नहीं करने के मामले में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार का रवैया जब कांग्रेस पार्टी की पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही जातिवादी व द्वेषपूर्ण बना हुआ है तब फिर न्यायपालिका में इस सरकार से इस सम्बन्ध में सकारात्मक रवैये की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?
मायावती ने कहा कि केन्द्र सरकार के नीति-निर्धारण मामलों के साथ-साथ न्यायपालिका में भी समाज के बहुत बड़े तबके अर्थात दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गो व धार्मिक अल्पसंख्यकों का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण भी संविधान को उसकी सही जनहिताय की मंशा के अनुरूप देश में आज तक ढाला नहीं जा सका है जिसके सम्बन्ध में कोई अच्छी सुधार की उम्मीद खासकर बीजेपी की वर्तमान सरकारों से कतई नहीं की जा सकती है क्योंकि इनकी नीयत व नीति पूर्ण रूप से जनहिताय ना होकर घोर जातिवादी, साम्प्रदायिक व विद्वेषपूर्ण लगातार ही बनी हुई है और इसी कारण देश की हर लोकतांत्रिक व संवैधानिक संस्थायें आज काफी ज्यादा तनाव व संकटग्रस्त हैं तथा संविधान व कानून के माध्यम से सही जनसेवा करने में अपने आपको काफी ज्यादा असमर्थ भी पा रही है, जिसका सही समाधान जल्द ढूंढना आवश्यक है।

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