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बीजेपी राज्यसभा की तरह क्या विधान परिषद चुनाव में भी खेलेगी ये खेल!
विधान परिषद की 13 सीटों के लिए 26 अप्रैल को होने जा रहे चुनाव में बीजेपी के कब्जे में 11 सीटें आनी तय मानी जा रही हैं। तो वहीं संख्या बल के आधार पर दो सीटें विपक्ष के हिस्से में आ रही हैं। बीजेपी लोकसभा चुनाव के समीकरण के लिहाज से अपने उम्मीदवारों का चेहरा चुनेगी। सपा-बसपा गठबंधन की वजह से भाजपा का जोर अति दलित और अति पिछड़ों पर रहेगा, जबकि सपा बसपा से गठबंधन मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल समेत सपा के आठ सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो रहा है। सदन में अखिलेश यादव की मौजूदगी बनी रहे इसलिए उन्हें भेजना पहली प्राथमिकता होगी। हालांकि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कन्नौज से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा हो जाने से यह भी उम्मीद है कि नरेश उत्तम या किसी अन्य सदस्य को सपा रिपीट कर सकती है।
उधर, राज्यसभा में न पहुंच सके भीमराव आंबेडकर को विधान परिषद में भेजकर बसपा आंबेडकर नाम का सियासी दांव फिर खेल सकती है। इससे सपा का रिटर्न गिफ्ट का वादा भी पूरा हो जाएगा। ज्यादा संभावना आंबेडकर के ही नाम का है लेकिन, विधान परिषद में बसपा दल के नेता सुनील चित्तौड़ का कार्यकाल खत्म होने की वजह से उन्हें भी पार्टी रिपीट कर सकती है। विशेष परिस्थिति में बसपा मुस्लिम उम्मीदवार पर भी दांव लगा सकती है।
एक उम्मीदवार को जीत के लिए 29 मतों की जरूरत है। भाजपा गठबंधन और निर्दलीय सहयोगियों को जोड़कर 330 और सपा-बसपा-कांग्रेस मिलाकर 72 मत हो रहे हैं। हांलाकि मतदान की नौबत आने की गुंजायश नहीं है। निर्विरोध चुनाव की ही स्थिति बन रही है। बीजेपी दलित और पिछड़ों का समन्वय बनाएगी। यादव और जाटव समीकरण के समानांतर भाजपा अति पिछड़ी जातियों को महत्व देगी। बीजेपी अपने सहयोगी दल अपना दल (एस) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के पति आशीष सिंह पटेल को मौका दे सकती है।
सैनी समाज से जसवंत सैनी व हरपाल सैनी, कोरी समाज से पूर्व डीजीपी बृजलाल, गोरखपुर के पूर्व क्षेत्रीय मंत्री संतराज यादव, संगठन से प्रदेश उपाध्यक्ष जेपीएस राठौर व सुधीर हलवासिया, प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक व अशोक कटारिया, विद्यासागर सोनकर, सलिल विश्नोई और मीडिया प्रभारी हरिश्चंद्र श्रीवास्तव, प्रदेश मंत्री अमरपाल मौर्य, प्रकाश पाल, धर्मवीर प्रजापति, अंजुला माहौर का नाम भी प्रमुख दावेदारों में है। केंद्र में सक्रिय सुधांशु त्रिवेदी को एमएलसी बनाकर उप्र में मौका दिया जा सकता है।
प्रदेश सरकार के ग्राम्य विकास मंत्री महेंद्र सिंह और मुस्लिम वक्फ राज्य मंत्री मोहसिन रजा का भी कार्यकाल पांच मई को पूरा हो रहा है। इनका नाम प्रमुखता से चल रहा है। मुख्यमंत्री के लिए विधान परिषद से इस्तीफा देने वाले यशवंत सिंह, बुक्कल नवाब, सरोजिनी अग्रवाल का भी नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। इस्तीफा देने वाले जयवीर सिंह का भी नाम फिर तेजी से चल पड़ा है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय, संगठन महामंत्री सुनील बंसल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सहमति से उम्मीदवारों के नाम तय होंगे। इस पर अंतिम मुहर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की लगेगी।
बता दें कि उम्मीदवार के नाम पर अंतिम निर्णय बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ही लेंगें, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष और सुनील बंसल के आसपास लोग मडराने लगे है ताकि उनका भी कुछ हो सके। बीजेपी यहाँ भी पेच फ़साने का काम कर सकती है, लेकिन इस बार कम वोट की जरूरत रहेगी इसलिए शायद ये काम न करे।