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मंगल पाण्डेय की मूर्ति विधनासभा के सामने लगाना क्यों जरूरी है- अमरेश मिश्र

मंगल पाण्डेय की मूर्ति विधनासभा के सामने लगाना क्यों जरूरी है- अमरेश मिश्र
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अमर शहीद मंगल पाण्डेय के मूर्ति को लेकर पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में जागरण रैली निकाल कर उत्तर प्रदेश के विधानसभा के सामने मूर्ति लगाने का प्रस्ताव रखा है. इस बात को लेकर स्पेशल कवरेज न्यूज मिडिया ने उनसे बातचीत की.


प्रश्न: आप 30 जून को मंगल पांडे की प्रतिमा उत्तर प्रदेश विधान सभा के सामने क्यूं लगाना चाहते हैं?
अमरेश मिश्र: देश भारी संकट से गुज़र रहा है। एक डोलर की कीमत 68 रुपये पहुंच गयी है। रुपये का कोई मूल्य ही नही रहा। तेल, सोना और एलेक्ट्रॉनिक समान हम आयत करते हैं। निर्यात के लिये हमारे पास कुछ नही है। खेती-किसानी मर रही है; उद्योग लग नही रहे; बेरोजगारी आसमान छू रही है।अनारक्षित तबके का तो बहुत ही बुरा हाल।हिन्दू मुस्लिम और छद्म राष्ट्रवाद की राजनीति करके अनारक्षित वर्ग को केवल बेवकूफ बनाया जा रहा है।देश के संसाधन, सम्पत्ती और धरोहर निजी और विदेशी कोरपोरेट हाथों मे बेची जा रही है। किराने की दुकाने भी विदेशी कंपनियां चलायेंगी। किसानो की ज़मीन उनसे छीन ली जायेगी। वही हालात आज हैं जो 19वी शताब्दी मे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के समय थे।
प्रश्न: पर मंगल पांडे की प्रतिमा लगाने से इन समस्याओं का क्या रिश्ता है?
अमरेश मिश्र: मंगल पांडे 1857 यानी हमारे प्रथम स्वतन्त्रा संग्राम के पहले सिपाही थी। उन्होने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंका। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत मे उस समय वही हालात पैदा किये थे, जो आज हैं। उस समय अंग्रेज 'फूट डालो राज करो' की नीति पर चलकर भारत और सनातन धर्म के टुकड़े कर रहे थे। आज भी इंग्लैंड-अमेरिका-इज़राईल वही काम कर रहे हैं; पर छिपे तौर पर--कुछ छद्म राष्ट्रवादियों या तथाकथित 'धार्मिक राजनीती' के भेष मे। आज देश की एकता-अखंडता बचाने के लिये, आर्थिक पुनरुत्थान करने हेतु, नये नायकों, रोल मॉडल्स की ज़रूरत है। 30 जून को आप सब के सहयोग से, मंगल पांडे की प्रतिमा लगाने के पहले, मैं 5 से 22 जून तक अवध-पूर्वांचल का दौरा करूंगा। यही वो क्षेत्र है जिसने आदि काल से जब-जब भारत की अस्मिता दांव पर लगी है, जब-जब हम संकट मे पड़े हैं, पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को दिशा दी है:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌..
इस श्लोक का अर्थ है की संकट के समय, भारत मे दिव्य शक्तियां पैदा होती हैं। दिव्य शक्तियां और कोई नही, अवध-पूर्वांचल-बिहार के मज़्दूर-किसान-जवान-राष्ट्रवादी बुद्धिजिवी हैं। मंगल पांडे सरयूपारिन ब्राहमण थे।
अभी पहले दौर मे, भारत को संकट से उबारने के लिये, धर्म के नाम पर शैतानो के नये-नये पंथो का भंडाफोड़ करने, सनातन धर्म और लोकतन्त्र की रक्षा करने, गरीबों को न्याय दिलाने, सबसे पहले ब्राहमण को ही आगे आना होगा। ब्राहमण एक जाति भी है--और सभ्यताओं की नींव डालने वाली विचारधारा भी। ब्राहमण विचारधारा मे जाति के बजाय गुण को महत्ता दी गयी है। ब्राहमण चाणक्य ने भारतीय-मौर्य साम्राज्य--जिसने ग्रीक्स और पश्चिम से आयी अन्य ताक़्तों के जुल्म से भारत को मुक्त किया--का राजा चन्द्रगुप्त नियुक्त किया, जिसकी जाति इत्यादी महत्वपूर्ण थी ही नही।ब्राहमण ही राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा कर सकता है। IMF-World Bank इंग्लैंड-अमेरिका-इज़राइल जैसी ताक़ते जानती हैं, कि जबतक ब्राहमण हैं, भारत का सही इतिहास, जिसमे सभो जातियों-मज़्हबो का योगदान है, भारत का मान-सम्मान, भारत की गौरवगाथा, सुरक्षित है। जबतक भारत का सही सम्मलित इतिहास जीवित है, भारत जीवित है! इसिलिए ब्राहमण उपेक्षित है। मंगल पांडे की प्रतिमा स्थापित करने का अन्दोलन राष्ट्र-विरोधी ताक़तो के मुंह पर तमाचा है।
शिव कुमार मिश्र

शिव कुमार मिश्र

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