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भीम आर्मी के सचिन वालिया की मौत: 'दुर्घटना' और 'हत्या' के बीच फंसा यह सवाल, जानें और पढ़ें
उत्तर प्रदेश पुलिस के बारे में यहां के प्रबुद्ध निवासियों की आम धारणा यह रहती है कि यहां की पुलिस कुछ भी कर सकती है, बशर्ते वह चाह जाए। मामला नीयत का होता है, कार्रवाई का नहीं। ऐसी घटनाएं भी दुर्लभ ही होती हैं जहां पुलिस-प्रशासन की नीयत शुरू से काफी संजीदा दिखे और अधिकारियों के बयानात में घटना से लेकर जांच के निष्कर्ष तक रत्ती भर फ़र्क न दिख सके।
भीम आर्मी के सहारनपुर जिला अध्यक्ष कमल वालिया के छोटे भाई सचिन वालिया की बीते 9 मई को हुई मौत एक ऐसी ही दुर्लभ घटना है, जहां मौत के तुरंत बाद शहर के एसपी और एसएसपी के बयान से लेकर 13 मई को प्राथमिक जांच के पूरा होने तक मेरठ ज़ोन के एडीजी के बयान में रत्ती भर फ़र्क नहीं है। ऐसा कैसे हो सकता है कि घटना के तुरंत बाद पुलिस कहती है कि यह मौत एक "दुर्घटना" है और सारे साक्ष्य जुटा लेने के बाद इसी बात को पुलिस के आला अधिकारी 13 मई की प्रेस कॉन्फ्रेंस में दुहरा देते हैं? क्या यह घटना पहले से तय थी? या फिर घटना कुछ भी होती, पुलिस की प्रतिक्रिया उस पर तय थी? या फिर यह भी हो सकता है कि पहली प्रतिक्रिया के हिसाब से साक्ष्य जुटाए गए ताकि उसकी पुष्टि की जा सके? अगर घटना, पुलिस की प्रतिक्रिया और जुटाए गए साक्ष्यों को पहले से तय माना जाए, तो फिर इसे 'दुर्घटना' कैसे कहेंगे? यह तो कोई साजि़श जान पड़ती है। अगर कुछ भी तय नहीं था, सब कुछ एक हादसे की शक्ल में सामने आया है, तो बिना जांच शुरू हुए पुलिस ने किस आधार पर सचिन वालिया की मौत को प्रथम दृष्टया 'दुर्घटना' का नाम दे दिया?
कमल बताते हैं कि अकेले सपा और भाजपा से कोई नहीं आया वरना कांग्रेस और बसपा के कुछ नेता उनके यहां आए थे। बसपा सुप्रीमो मायावती से लेकर अरविंद केजरीवाल तक की ज़बान इस घटना पर नहीं खुली है। पूरी भीम आर्मी को पुलिस-प्रशासन और प्रच्छन्न हितों वाले कुछ चुनावी शिकारियों के हाथों छोड़ दिया गया है। बहुत संभव है कि कल को यूपी पुलिस जांच का नतीजा देकर बताए कि यह मौत वास्तव में "दुर्घटना" थी और सचिन की फाइल बंद कर दे। इस तरह वे दरअसल एक प्रतिक्रिया की ज़मीन तैयार करेगी जिसकी झलक हमें 13 मई को हुई गिरफ्तारियों में मिल चुकी है। यह प्रतिक्रिया ज़ाहिर तौर पर हिंसक होगी। हिंसक प्रतिक्रिया पुलिस को भाती है। उससे चंद्रशेखर पर रासुका लगाए रखने की दलील पुष्ट होती है। अगर प्रतिक्रिया नहीं हुई, तो कमल वालिया के नेता होने पर काडरों के मन में सवाल खड़ा हो जाएगा। इसकी संभावना कम है।
साभार मिडिया विजिल