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कैराना से रालोद की तबस्सुम लड़ेंगी चुनाव - अजीत सिंह

कैराना से रालोद की तबस्सुम लड़ेंगी चुनाव - अजीत सिंह
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तबस्सुम सपा रालोद और बसपा की सयुंक्त उम्मीदवार होंगी, बीजेपी ने अभी उम्मीदवार घोषित नहीं किया है.

भारतीय जनता पार्टी को हारने के लिए राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने यूपी में हो रहे उपचुनावों में हाथ मिलाया है. कैराना लोकसभा पर उपचुनाव के लिए सपा-रालोद गठबंधन से रालोद के चुनाव चिन्ह पर तबस्सुम मुनव्वर चुनाव लड़ेगी. रालोद मुखिया एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ अजित सिंह ने सपा नेताओ के साथ रविवार को अपने आवास पर बैठक कर आगामी रणनीति तय की और तबस्सुम को औपचारिक रूप से प्रत्याशी बनाने की घोषणा की.


फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में मायावती की पार्टी बीएसपी की मदद से जीत दर्ज करने के बाद वेस्ट यूपी में भी एसपी मुखिया और यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने बड़ा दांव खेला है. अपनी जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रही चौधरी अजित सिंह की पार्टी आरएलडी से एसपी ने कैराना और नूरपुर उपचुनाव के लिए गठबंधन किया है. इसके तहत कैराना लोकसभा सीट आरएलडी उम्मीदवार के हिस्से में आएगी, जबकि नूरपुर में एसपी उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा.

आरएलडी से लड़ेंगी तबस्सुम, नूरपुर से नइमुल हसन का नाम
बताया जा रहा है कि एसपी नेता तबस्सुम हसन आरएलडी के सिंबल से कैराना लोकसभा सीट से मैदान में उतरेंगी. 2009 के लोकसभा चुनाव में तबस्सुम इसी सीट से जीत चुकी हैं. इसके अलावा नूरपुर सीट से एसपी के नइमुल हसन चुनाव लड़ेंगे.
बीजेपी सांसद हुकम सिंह के निधन के बाद कैराना सीट खाली हुई थी. माना जा रहा है कि सहानुभूति का लाभ लेने के लिए बीजेपी उनकी बेटी मृगांका सिंह को कैंडिडेट बनाने की तैयारी में है. वहीं, बिजनौर जिले की नूरपुर विधानसभा सीट बीजेपी विधायक लोकेंद्र सिंह के निधन के बाद रिक्त हुई थी. दोनों सीटों पर 28 मई को मतदान है, जबकि वोटों की गिनती 31 मई को होगी.
ऐसे साधेंगे समीकरण उपचुनाव का
सियासी जानकारों की मानें तो अजित सिंह तबस्सुम को आगे कर चौधरी चरण सिंह के वक्त के जाट-मुस्लिम समीकरण को साधना चाहते हैं. इसके जरिए 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट-मुस्लिम के बीच पैदा हुई खाई को भरने की कोशिश होगी. इसके लिए अजित और जयंत दो महीने से सद्भावना मुहिम चला रहे थे. अमीर आलम समेत कई मुस्लिम नेताओं को उन्होंने आरएलडी में शामिल भी किया है.
इस सीट पर विपक्षी एकता के बाद आरएलडी अब वेस्ट यूपी में 2019 के लिए चार सीटों पर मजबूत दावा करेगी. जयंत को इस बार अजित सिंह अपनी सीट बागपत से लड़ाएंगे. खुद उनका मुजफ्फरनगर से लड़ने का प्लान है. इसी के साथ बिजनौर और कैराना पर भी दावा रहेगा लेकिन इसका खतरा तबस्सुम के आने के बाद बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकरण के रूप में भी सामने आ सकता है.
कैराना का जातीय समीकरण ऐसा है
कैराना लोकसभा क्षेत्र में लगभग 17 लाख मतदाता हैं. इनमें तीन लाख मुसलमान, लगभग चार लाख पिछड़े और करीब डेढ़ लाख वोट जाटव दलितों के हैं, जो बीएसपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है. यहां यादव मतदाताओं की संख्‍या कम है ऐसे में यहां दलित और मुस्लिम मतदाता खासे महत्‍वपूर्ण हो जाते हैं. इस क्षेत्र में हसन परिवार का खासा राजनीतिक दबदबा माना जाता रहा है। वर्ष 1996 में इस सीट से एसपी के टिकट पर सांसद चुने गए मुनव्‍वर हसन की पत्‍नी तबस्‍सुम बेगम वर्ष 2009 में इस सीट से संसद जा चुकी हैं. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में इस परिवार में टूट हुई थी. तब मुनव्‍वर के बेटे नाहिद हसन एसपी के टिकट पर और उनके चाचा कंवर हसन बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे लेकिन दोनों को पराजय का सामना करना पड़ा था. हालांकि नाहिद दूसरे स्‍थान पर रहे थे.

राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस सीट पर राष्‍ट्रीय लोकदल (आरएलडी) भी प्रभावी रहा है और वर्ष 1999 तथा 2004 के लोकसभा चुनाव में उसके प्रत्‍याशी यहां से सांसद रह चुके हैं. आरएलडी ने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में विपक्ष का साथ दिया था. अगर एसपी और बीएसपी के साथ आरएलडी का वोट भी जुड़ जाता है, तो बीजेपी के लिये मुश्किल और बढ़ सकती है. बीजेपी के सांसद हुकुम सिंह ने करीब दो साल पहले कैराना से बहुसंख्‍यक वर्ग के परिवारों के 'पलायन' का मुद्दा उठाया था.

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