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कर्जमाफी किसानों पर 'मानसिक अत्याचार', शर्म करो योगी सरकार
विश्व गौरव
पैसा उधार लेने वाले या कर्ज लेने वाले दो तरह के लोग होते हैं। पहले वे जो जीने के लिए जरूरी चीजों को भी बिना कर्ज लिए मैनेज करने में असमर्थ होते हैं। और दूसरे वे जो जीवन को बेहतर बनाने के लिए कर्ज लेते हैं। कर्ज लेने वाले किसान भी इन्हीं दो श्रेणियों में आते हैं। एक वे जिनके पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा होता है लेकिन उस जमीन के टुकड़े पर कुछ उगाने के लिए जिन चीजों की आवश्यकता होती है, उनकी व्यवस्था कर पाने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते हैं। ऐसे में वे कर्ज लेते हैं, कभी साहूकार से तो कभी बैंक से… दूसरी श्रेणी में वे किसान आते हैं जिनके पास खाने के लाले तो नहीं पड़े होते हैं फिर भी कमाई या अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाए रखने के लिए वह बैंक से कर्ज लेते हैं। दूसरी श्रेणी वाले ये किसान कभी साहूकार से कर्ज नहीं लेते, क्योंकि इनको पता होता है कि अगर साहूकार से कर्ज लेंगे तो नुकसान होने पर लिए गए कर्ज पर लगने वाले 'साहूकारी ब्याज' का बोझ उनके जीवन को बेहतर बनाने की जगह और खराब कर देगा। वहीं दूसरी ओर पहली श्रेणी वाले किसान बैंकों से मिलने वाले कर्ज को लेकर जानकारी के अभाव में ज्यादा दर पर ब्याज लगने के बावजूद फसल खराब होने की परवाह किये बिना साहूकारों से इसलिए कर्ज ले लेते हैं क्योंकि कर्ज लेने के बाद उन्हें कम से कम इसकी उम्मीद तो रहती है कि वह जिंदा रह सकेंगे, अगर वे कर्ज नहीं लेंगे तो भी भूखे ही मर जाएंगे।