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बिहार की इन आठ सीटों पर जदयू ओर बीजेपी में मचेगी जंग, सीटों का फ़ॉर्म्युला फेल!
आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए बिहार में एनडीए के घटक दलों के बीच न तो सीटों के बंटवारे का फार्मूला तय हो सका है और न ही एनडीए के घटक दलों को 20:20 का फार्मूला (बीजेपी-20, जेडीयू-12, एलजेपी-5 और रालोसपा-2+1) पसंद आया है। मगर 40 सीटों वाले बिहार में इतना साफ हो गया है कि बीजेपी को सहयोगी दलों के लिए कुछ सीटें छोड़नी पड़ सकती हैं। फिलहाल बीजेपी के पास 22 सीटें हैं। सबसे बड़ा पेंच बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों की संख्या और कुछ अहम लोकसभा सीटों को लेकर भी है। इनमें से कुछ सीटों पर दोनों दल अपना-अपना दावा ठोक रहे हैं। ऐसी आठ सीटें चिन्हित की गई हैं जिसपर बीजेपी और जेडीयू के बीच खींचतान जारी है।
पटना साहिब: लोकसभा सीट इस वक्त बीजेपी के कब्जे में है और शत्रुध्न सिन्हा वहां से सांसद हैं। चूंकि शत्रुघ्न सिन्हा के रिश्ते बीजेपी से अच्छे नहीं हैं, इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस सीट पर बीजेपी या तो कोई नया चेहरा उतारेगी या इसे जेडीयू को दे सकती है। पटना साहिब संसदीय सीट परिसीमन के बाद बनी है और यहां हुए दो लोकसभा चुनावों 2009 और 2014 में बीजेपी के शत्रुघ्न सिन्हा की जीत हुई है लेकिन बदली राजनीतिक परिस्थितियों में जेडीयू इस सीट पर अपना दावा ठोक रही है क्योंकि इस संसदीय क्षेत्र में पिछड़ी जातियों की अच्छी आबादी है।
बेगूसराय: सीट को लेकर भी बीजेपी और जेडीयू के बीच खींचतान है। फिलहाल इस सीट से बीजेपी के भोला सिंह सांसद हैं लेकिन पार्टी उन्हें दोबारा टिकट देने के मूड में नहीं है। उधर, जेडीयू इस सीट पर अपना दावा ठोक रही है क्योंकि 2014 के चुनाव से पहले 2009 और 2004 में जेडीयू के क्रमश: मोनाजिर हसन और राजीव रंजन सिंह जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं।
मधेपुरा: संसदीय सीट से फिलहाल राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव सांसद हैं। साल 2014 में उन्होंने राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा था लेकिन फिलहाल वो अपनी पार्टी बना चुके हैं। राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन की तरफ से जहां लोकतांत्रिक जनता दल के शरद यादव या उनके किसी खास को उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा है, वहीं एनडीए में जेडीयू इस सीट पर अपना दावा ठोंक रही है क्योंकि यादव बहुल इस इलाके में कभी भी बीजेपी की जीत नहीं हुई है, जबकि 2009 और 1999 में शरद यादव ने जेडीयू के टिकट पर ही यहां से जीत दर्ज की थी। राजद अध्यक्ष लालू यादव भी यहां से दो बार चुनाव जीत चुके हैं।
दरभंगा: से फिलहाल बीजेपी के टिकट पर कीर्ति आजाद सांसद हैं। पार्टी से निलंबित किए जाने के बाद अब इस सीट पर बीजेपी नया उम्मीदवार खड़ा कर सकती है, जबकि जेडीयू की नजर इस सीट पर है क्योंकि कीर्ति से पहले इस सीट पर जनता दल और आरजेडी का कब्जा रहा है। कीर्ति आजाद ने जहां दरभंगा सीट पर 1999, 2009 और 2014 में जीत हासिल की थी, वहीं 1989, 1991, 1996, 1998 और 2004 में जनता दल और बाद में राष्ट्रीय जनता दल की जीत हुई थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री अली अशरफ फातमी यहां से चार बार सांसद रह चुके हैं। गौर करने वाली बात है कि दरभंगा संसदीय क्षेत्र में यादव और मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी तादाद है।
जहानाबाद: संसदीय सीट से अरुण कुमार सांसद हैं। उन्होंने 2014 में रालोसपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीता था लेकिन रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और अरुण कुमार में इन दिनों छत्तीस का आंकड़ा है। लिहाजा, माना जा रहा है कि अरुण कुमार तो इस सीट से लड़ेंगे लेकिन वो किस दल के टिकट पर लड़ेंगे, यह तय नहीं है। जेडीयू इस सीट पर अपना दावा टोंक रही है क्योंकि अरुण कुमार 1999 में जेडीयू के टिकट पर ही जीतकर संसद पहुंचे थे। इनके अलावा 2009 में भी जेडीयू के उम्मीदवार जगदीश शर्मा ने जीत हासिल की थी। 1998 और 2004 में राजद की जीत हुई थी।
मुंगेर: सीट से मौजूदा समय में रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा की वीणा सिंह सांसद हैं। प्रस्तावित फार्मूले में एलजेपी को यह सीट छोड़नी पड़ सकती है क्योंकि नीतीश की पार्टी जेडीयू वहां से अपना उम्मीदवार उतारना चाहती है। 2009 में जेडीयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह वहां से सांसद रह चुके हैं। ललन सिंह को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है। इससे पहले भी 1999 में जेडीयू को यहां से जीत मिल चुकी है जबकि 1996 में नीतीश की तत्कालीन पार्टी समता पार्टी की इस सीट से जीत हुई थी।
झंझारपुर: से इस वक्त बीजेपी के वीरेंद्र कुमार चौधरी सांसद हैं लेकिन उनका रिपोर्ट कार्ड खराब रहा है। साल 2014 में मोदी लहर में पहली बार इस सीट पर बीजेपी की जीत हुई थी। इससे पहले 2009 में जेडीयू के मंगनी लाल मंडल सांसद रह चुके हैं। उससे पहले भी छह संसदीय चुनावों में राजद या जनता दल के उम्मीदवारों की जीत हुई है। इस संसदीय क्षेत्र में पिछड़े और यादव वोटरों की अच्छी आबादी है।