पटना

स्मृतिशेष : बिहार के सियासी चाणक्य का यूं चले जाना

Special Coverage News
21 Aug 2019 6:21 AM GMT
स्मृतिशेष : बिहार के सियासी चाणक्य का यूं चले जाना
x
उन्होंने बिहार को विकास की नई भाषा दी। बिहार की बिगड़ी व्यवस्था को सुधारने का काम किया। उनका इस धराधाम से जाना हमेशा खलेगा।

सियाराम पांडेय 'शांत'

व्यक्ति अच्छाइयों और बुराइयों का पुतला है। बिहार की राजनीति के कद्दावर नेता और प्रख्यात शिक्षाविद डॉ.जगन्नाथ मिश्र की जिंदगी इसका जीवंत दस्तावेज है। भले ही वे अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनके राजनीतिक योगदान हमेशा लोगों की स्मृतियों में बने रहेंगे। कैंसर काल बनकर उनकी जिंदगी को निगल गया लेकिन उनके व्यक्तित्व और कृतित्व इस देश को हमेशा याद रहेंगे। जगन्नाथ मिश्र पहले नेता हैं जिन्हें बिहार का चाणक्य कहलाने का गौरव हासिल है। वे तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। केंद्रीय मंत्री भी रहे। साथ ही बिहार कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कांग्रेस को मजबूती दी। बिहार में वे कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री थे। उनके बाद से आज तक कांग्रेस के लिए बिहार में सूखा ही पड़ा है। वे दलितों, शोषितों, वंचितों और सामाजिक हाशिये पर पड़े लोगों की बुलंद आवाज थे। बचपन से ही उनकी रुचि राजनीति में थी। भले ही उन्होंने अर्थशास्त्र के प्रवक्ता के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। बिहार यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनकर उन्होंने अपनी विद्वता प्रमाणित की थी। उनके बड़े भाई ललित नारायण मिश्र का राजनीति में होना और खासकर देश का रेलमंत्री होना भी उन्हें बार-बार राजनीति में जाने की प्रेरणा देता रहा। यही वजह थी कि डॉ. जगन्नाथ मिश्र विश्वविद्यालय में अध्यापन के दौरान ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए थे। न केवल जुड़े बल्कि 1975 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री भी बने। दूसरी बार उन्हें 1980 में कमान सौंपी गई और आखिरी बार 1989 से 1990 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। तीसरी बार तो उनका कार्यकाल ही कुल जमा तीन माह का था। बतौर मुख्यमंत्री उनका दूसरा कार्यकाल तीन साल का रहा। वह 90 के दशक के बीच केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी रहे। कांग्रेस छोड़ने के बाद, वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे और अब जनता दल (यूनाइटेड) के साथ थे। उनका निधन बिहार ही नहीं, पूरे देश की अपूरणीय क्षति है।

उन्होंने किसानों को जहां राजकीय नलकूप उद्भव सिंचाई योजनाओं से जोड़ा, वहीं 3,880 संस्कृत विद्यालयों और 2,995 मदरसों को मान्यता भी दी। उन्होंने बिहार में उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा दिया था। इसलिए लोग उन्हें मौलाना जगन्नाथ भी कहते थे। डॉ. जगन्नाथ मिश्र के बाद 1989 में बिहार में लालू प्रसाद यादव ने सीएम पद की कमान संभाली थी। फिलहाल लंबे समय से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं।

राजनीति के जानकारों की मानें तो डॉ. जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्रित्व काल में 1983 में बिहार का 'बॉबी सेक्स स्कैंडल' सामने आया था, जिसने कांग्रेस की राजनीति की जड़ें हिला दी थीं। देशभर में यह घटना चर्चा के केंद्र में रही। हालांकि बाद में यह प्रकरण सीबीआई जांच का भी विषय बना लेकिन सीबीआई की जांच पर लोग आज भी उंगली उठाते हैं। राजनीति के धुरंधर मानते हैं कि जगन्नाथ मिश्र के जादू की वजह से सीबीआई जांच प्रभावित हुई थी। बॉबी बिहार विधानसभा सचिवालय में टाइपिस्ट थी। बेहद खूबसूरत बॉबी का असली नाम श्वेत निशा त्रिवेदी था। बिहार विधान परिषद की तत्कालीन सभापति और कांग्रेसी नेता राजेश्वरी सरोज दास की दत्तक पुत्री होने के चलते सचिवालय में उसके नाम का सिक्का चलता था लेकिन इन सबके बावजूद किसी ने बॉबी की हत्या कर दी। हत्या के बाद उसका शव आनन-फानन में दफना दिया गया लेकिन पटना के तत्कालीन एसएसपी किशोर कुणाल को इसकी भनक लग गई। उन्होंने कब्र से शव को निकलवाकर फिर से अंत्यपरीक्षण करवाया, तो पता चला कि बॉबी की हत्या जहर देकर की गई है। एसएसपी कुणाल की सख्ती की वजह से कांग्रेस के कई विधायक और मंत्री डॉ मिश्र के पास दबाव बनाने के लिए पहुंच गए कि इसकी जांच सीबीआई को सौंपी जाए। इसकी जांच एसएसपी से न करवाई जाए।

डॉ. जगन्नाथ मिश्र को 30 सितंबर 2013 को रांची में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने चारा घोटाले में 44 अन्य लोगों के साथ दोषी ठहराया था। उन्हें चार साल का कारावास हुई थी और उन पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। लोगों का मानना है कि चारा घोटाला की पटकथा दरअसल जगन्नाथ मिश्रा के मुख्यमंत्री रहते ही लिखी जा चुकी थी लेकिन यह मामला तब खुला जब 1990 के दशक में मुख्यमंत्री लालू यादव थे। जगन्नाथ मिश्र पर आरोप था कि इन्होंने दुमका और डोरंडा निधि से धोखाधड़ी कर मोटी रकम निकाल ली। सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें 4 साल की सजा सुनाई और रांची जेल भेज दिया। गत वर्ष फरवरी माह में कैंसर के चलते जेल में उनकी हालत बिगड़ गई थी। इस आधार पर हाईकोर्ट में 25-25 हजार के दो मुचलकों पर उन्हें प्रोविजनल बेल दे दी थी। इस बदनुमा पक्ष को नजरंदाज कर दें तो राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य का स्तर सुधारने में भी डॉ. जगन्नाथ मिश्र ने उल्लेखनीय भूमिका याद की थी। वे बेहद मिलनसार और अनुभवी नेता थे।

एक बार उन्होंने बिहार ही नहीं, पूरे देश को यह कहकर चौंकाया था कि लालू प्रसाद यादव की वजह से उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी थी। लालू प्रसाद यादव के बाद नीतीश कुमार निरंतर कांग्रेस को चुनौती देते रहे। बिहार में नक्सलवाद उनके और लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में ही फला-फूला। वजह चाहे जो भी रही हो। बहुत कम लोग जानते हैं कि डॉ. जगन्नाथ मिश्र ने माओवादी और नक्सलवादी समस्या के समाधान को लेकर तब के केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा था। उन्होंने अपने पत्र में लिखा था कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को महत्व देकर ही माओवादी और नक्सलवादी समस्या का समाधान हो सकता है। नक्सलग्रस्त क्षेत्रों में विकास को गति देनी होगी। इन क्षेत्रों के लोगों के लिए भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि की व्यवस्था करनी होगी। नक्सलवाद कानून और व्यवस्था का मुद्दा ही नहीं है। वे नक्सलवाद को लेकर तब भी बहुत चिंतित रहे और अब भी उनकी यह चिंता उनके पत्र में झलकती है। उन्होंने बिहार को विकास की नई भाषा दी। बिहार की बिगड़ी व्यवस्था को सुधारने का काम किया। उनका इस धराधाम से जाना हमेशा खलेगा।


Tags
Special Coverage News

Special Coverage News

    Next Story