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आलोक कुमार
आज बड़े ही सधे अंदाज में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) ने सुशासन बाबू उर्फ नीतीश कुमार और बिहार की राजनीतिक विकल्पहीनता पर प्रहार करते हुए अपने लिए जगह बनाने की कोशिश की। पीके ने सुशासन बाबू के हर उस दावे की हवा निकाली जिसके दम पर वो पिछले 15 सालों से बिहार पर राज कर रहे हैं। अपने 17 मीनट से अधिक की प्रेस ब्रीफिंग में पीके ने सुशान बाबू द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, रोड और तमाम विकास के दावों की हवा आंकड़े के जरिये निकाली। हालांकि, इस दौरान पीके ने सीधे तौर पर कभी भी नहीं कहा कि वह बिहार की राजनीति में कदम रखने की तैयारी कर रहे हैं। हां, यह जरूर कहा कि वह अगले 100 दिन में हर गांव और पंचायत का दौरा करेंगे और 20 मार्च तक 10 लाख युवा को अपने साथ जोड़ेंगे।
मैंने ऊपर लिखा है कि पीके चले अरविंद केजरीवाल की राह। आखिर, मैंने ऐसा क्यों कहा तो इसके लिए लौटते है अन्ना आंदोलन के सूत्रधार रहे सामाजिक कार्यकर्ता और अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजीरीवाल के सफर के फ्लैशबैक में। भ्रष्टाचार के विरुद्ध जब 2012 में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और रणनीतिकार अरविंद केजरीवाल ने जंतर-मंतर पर आंदोलन शुरू किया था तो शायद किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन यही केजरीवाल दिल्ली के तीन दफा मुख्यमंत्री बनने में सफल होंगे। मैं भी उस आंदोलन का गवाह रहा।
केजरीवाल और उनकी टीम ने उस समय भी देश के युवाओं को अपने साथ जोड़ा। भष्ट्राचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन की नई धार देने में सबसे बड़ा योगादन युवाओं का रहा। युवाओं को लगा कि इस देश को बदलने का यही सबसे बड़ा मौका है। देखते-देखते पूरे देश में उस आंदोलन के साथ लाखों युवा जुड़ गए। हालांकि, बाद में कईयों को धक्का भी लगा लेकिन वह इतिहास की बात है। अन्ना आंदोलने के जरिये अरविंद केजरीवाल और आप के रूप में एक राजनेता और राजनीति दल का उदय हो चुका था। देश की राजधानी दिल्ली में ही नई राजनीति और पार्टी को जन्म दिया। अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी और कांग्रेस को पटखनी देखर एकतरफा तीन दफा मुख्यमंत्री बनने में कामयाब भी रहे हैं। इस बार जिस तरह से वो सपथ ग्रहणा समारोह में बदले-बदले से लगे तो इसमें कोई शक नहीं कि वह 2024 में विपक्ष के सबसे मजबूत चेहरे होंगे।
केजरीवाल के राजनीतिक सफर को देंखे तो वह अपने को अन्य राजनेताओं से बिल्कुल अलग दिखाने कोशिश करते रहे हैं। पैंट-शर्ट से लेकर स्वेटर और मोफलर उनकी पहचान रही है। केजरीवाल ने अपने को हमेशा एक क्रांतिकारी के तौर पर पेश किया। बात-बात पर अनसन पर बैठना उनकी पहचान है। इससे वह अपनी छवि आम जनमानस के बीच एक स्वच्छ और ईमानदार राजनेता के तौर पर गढ़ने में कामयाब रहे हैं।
आज मैं जब प्रशांत किशोर को सुन रहा था तो एक बार फिर से वही 2012 वाले केजरीवाल की झलक देखने को उनमें मिली। उन्होंने उस युवा को जगाने की बात कि जो बिहार में पिछले 30 सालों से गुरबत की जिन्दगी जिने को मजबूर है। चाहे लालू राज हो या नीतीश उसे एक अदद नौकरी के लिए देश के हर कोने में भटकना पड़ रहा है। उसकी जिन्दगी में पिछले तीन दशक में कोई अमूलचूल सुधार नहीं आया है।
प्रशांत किशोर ने आज उसी दुखती रग पर उंगली डाली और कहा कि हाल ही में दिल्ली में 40 से ज्यादा लोग एक फैक्ट्री में जलकर मर गए। ज्यादातर लोग बिहार-यूपी के थे। अगर 15 साल में खूब तरक्की हुई है तो फिर बिहार के लोग वहां जाकर क्यों मर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब तक जीवित हूं बिहार के लिए समर्पित हूं। उन्होंने ब्लूप्रिंट की बात की और कहा कि वह अगले 10 साल में किस तरह बिहार की तस्वीर बदलेंगे उसका पूरा खाका पेश करेंगे।
फौरी तौर पर बिहार जैसे राज्य में इस तरह का प्रयोग करना थोड़ा मुश्किल लग सकता है क्योंकि बिहार में विकास पर हमेशा से जातीय समीकरण हावी रहा है। इसको तोड़ना पीके के लिए मुश्किल काम होगा लेकिन यह असंभव भी नहीं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के वोट बैंकों में अच्छी खासी तादाद बिहारियों और पूर्वांचलियों की है। अगर दिल्ली में केजरीवाल जात-पात पर विकास को हावी कर सकते हैं तो यह अब बिहार जैसे राज्य में भी संभव है। प्रशांत किशोर अगर राजनीति की नई रेखा खींचते हैं और युवाओं को अपने विश्वास में लेते हैं तो वह बड़ा उलट-फेर करने में कामयाब हो सकते हैं। बिहार आबाम को बस एक भरोसेमंद चेहरे की दरकार है। क्या वह पीके बन सकते हैं? यह तो वक्त ही बताएगा…