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नागरिकता संसोधन एक्ट पर बीजेपी की बढ़ी मुश्किलें, पहले शिवसेना, असम गण परिषद और अब जदयू?

Special Coverage News
17 Dec 2019 3:57 AM GMT
नागरिकता संसोधन एक्ट पर बीजेपी की बढ़ी मुश्किलें, पहले शिवसेना, असम गण परिषद और अब जदयू?
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नागरिकता कानून पर NDA की बढ़ीं मुश्किलें

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जहां दिल्ली से लेकर गुवाहाटी तक सड़कों पर हंगामा हो रहा है और लोग इस कानून को संविधान के खिलाफ बता रहे हैं, वहीं अब विपक्षी दलों के साथ ही भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी भी इस मसले पर अलग खड़े नजर आ रहे हैं. यहां तक कि जिन दलों ने संसद में इस बिल को पास कराने के समर्थन में वोट किए हैं, उनके तेवर भी बगावती नजर आ रहे हैं.

शिवसेना ने भले ही महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी से 30 साल पुराना नाता तोड़ लिया हो, लेकिन लोकसभा में जब नागरिकता संशोधन बिल पर वोटिंग का मौका आया तो शिवसेना ने मोदी सरकार का साथ दिया. जबकि दूसरी तरफ शिवसेना की सहयोगी कांग्रेस इस बिल का पुरजोर तरीके से विरोध करती रही. इसके बावजूद शिवसेना ने कांग्रेस से अलग लाइन लेकर बिल का समर्थन किया. हालांकि, जब कांग्रेस ने शिवसेना के इस कदम पर ऐतराज जताया तो उसने अपना स्टैंड बदल लिया और राज्यसभा में बिल पर हुई वोटिंग में हिस्सा न लेकर वॉकआउट कर लिया.

लोकसभा में समर्थन के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा था कि इस बिल पर स्थिति स्पष्ट नहीं है और सरकार अगर शंकाओं को दूर नहीं करती है तो हम राज्यसभा में समर्थन नहीं करेंगे. हालांकि, शिवसेना ने राज्यसभा में सरकार के खिलाफ तो वोट नहीं किया, लेकिन वो सदन से बाहर चली गई. दूसरी तरफ दोनों सदनों में नागरिकता बिल का समर्थन करने वाली बीजेपी की सहयोगी जेडीयू बाहर इस मसले पर बंटी नजर आ रही है.

नागरिकता कानून पर बंटी JDU

बीजेपी के सहयोग से जेडीयू बिहार में सरकार चला रही है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं. नीतीश की पार्टी ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में नागरिकता बिल पर मोदी सरकार का साथ दिया है. लेकिन पार्टी के ही कुछ नेता इसके खिलाफ खड़े नजर आ रहे हैं. जेडीयू में नंबर दो की पोजिशन पर माने जाने वाले प्रशांत किशोर ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि नागरिकता संशोधित कानून धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला है और जेडीयू का इसके समर्थन में उतरना दुर्भाग्यपूर्ण है. इतना ही नहीं, प्रशांत किशोर ने यह भी कहा था कि सच्चाई ये है कि नागरिकता कानून किसी को नागरिकता देने के लिए नहीं है, बल्कि NRC के साथ मिलकर यह धार्मिक आधार पर भेदभाव करने वाला है.

बता दें कि नागरिकता कानून का विरोध करने वाले संगठन और विपक्षी दल भी यही तर्क दे रहे हैं. AIMIM के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी साफ तौर पर कह रहे हैं कि इस कानून के बाद अब जब पूरे देश में NRC लागू किया जाएगा तो उसमें गैर-मुस्लिमों को बिना दस्तावेज भी नागरिकता मिल जाएगी, लेकिन मुसलमान उसमें पिछड़ जाएंगे. ओवैसी के इस रुख का जेडीयू भी समर्थन कर रही है. जेडीयू नेता और बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने भी कहा है कि उनकी पार्टी NRC का समर्थन नहीं करती है. हालांकि, चौधरी ने नागरिकता संशोधित कानून पर कहा कि यह जाति या मजहब के खिलाफ नहीं है. लेकिन जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर साफ तौर पर कह रहे हैं कि नया नागरिकता कानून शरणार्थियों को शरण देने के लिए नहीं है, बल्कि एनआरसी आने पर यह धार्मिक आधार पर भेदभाव करेगा.

खुलकर विरोध में उतरी असम गण परिषद्

मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन बिल पर जेडीयू भले ही बंटी हुई नजर आ रही हो, लेकिन असम में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही असम गण परिषद् खुलकर विरोध में उतर आई है. यहां तक कि पार्टी ने इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक जाने की बात कह दी है. असम के पूर्व मुख्यमंत्री और असम गण परिषद् (AGP) के अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत ने आजतक से कहा है कि हमारी पार्टी ने नागरिकता कानून के पक्ष में वोट करके गलती की है. एजीपी इतनी नाराज है कि प्रफुल्ल कुमार ने असम में बीजेपी सरकार से समर्थन वापस लेने तक की चेतावनी दे दी है. साथ ही उन्होंने कहा कि हम असम में यह लागू नहीं होने देंगे. प्रफुल्ल कुमार ने कहा है कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को असम के लोगों के बारे में सोचना चाहिए और इसे यहां लागू नहीं किया जाना चाहिए. इतना ही नहीं, असम गण परिषद् इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की भी तैयारी कर रही है.

इस तरह नागरिकता संशोधित कानून पर बीजेपी और मोदी सरकार को संसद में जिन दलों का साथ मिला था, वही अब सरकार के इस कदम की आलोचना कर रहे हैं. शिवसेना से लेकर जेडीयू और असम गण परिषद् में नागरिकता कानून को लेकर विरोध के स्वर साफ सुनाई दे रहे हैं.

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