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पांच राज्यो का चुनाव परिणाम, कांग्रेस से वैर नही , भाजपा की खैर नही ---
पांच राज्यों में संपन्न हुए विधान सभा चुनाव के परिणाम आ चुके है और इन चुनाव परिणामो पर राजनीतिक पंड़ितो की समीक्षा और विभिन्न समाचार पत्रो में संपादकीय भी आ चुके है इसलिये इस पर अब कुछ लिखना ठीक नही. लेकिन इस चुनाव परिणाम के जो संकेत मिल रहे है यह साफ बताने के लिये काफी है कि अगला लोकसभा का चुनाव काफी रोमांचक होगा.
कारण जिन तीन प्रमुख हिन्दी राज्यो में कांग्रेस को बढ़त मिली है वहां लोकसभा की कुल 65 सीटे है जिसमें 62 सीटो पर भाजपा कांबिज है. दूसरी बात है कि यू पी, बिहार और झारखंड मिलाकर कुल 134 सीटें है जिन पर अभी अधिकांश सीटो पर भी भाजपा या एन डी ए गठबंधन का कब्जा है यानि करीब 200 सीटे जिसने मोदी जी की संरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. अब अगर इन राज्यो में भी विपक्षी एका हो जाती है तो भाजपा या एन डी ए गठबंधन को भारी टक्कर मिल सकती है.
दूसरी तरफ भाजपा को लाख प्रयास के बावजूद पूर्वोत्तर और दक्षिण में सफलता नही मिल रही है ऐसे में भाजपा या एन डी ए गठबंधन के लिये 2019 की राह आसान नही दिख रही. दूसरी ओर भाजपा के परंपरागंत वोटरो ने भी अब उससे मुंह मोडना मुनासिब समझा है तो आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस शासन काल में भ्रष्टाचार की चर्चा से ज्यादा मोदी के पाच साल के कार्यकाल का लेखा जोखा चुनावी मुद्दा होगा. और विपक्षी दल मोदी से हिसाब मांगेगें. लेकिन इन मुद्दो के बावजूद कांग्रेस और विपक्षी दलो की भी राह आसान नही दिख रही.
क्योकि विपक्षी एकता का हस्र पांच राज्यो के चुनाव में साफ दिख रहा . ऐसे में विपक्षी महागठबंधन में थोड़ी चूक भी कांग्रेस के लिये संकट पैदा कर सकती है. ऐसे में मेरे जैसे लोगो का मानना है कि बिना समय गंवाये मोदी सरकार को अब बिहार , यू पी जैसे राज्यो में विकास की गति को तेज करने की जरूरत है ताकि 120 लोकसभा की हैसियत वाले इन दोनों राज्यो की जनता को विकास दिखायी पडे.. लेकिन इस सबके अलावे भाजपा को अपने सहयोगी दलो के साथ समन्वय स्थापित करने विवादित बयानो से बचने की भी जरूरत है. क्योकि तीन राज्यो की जनता ने साफ तौर से कह दिया कि उसे कांग्रेस से वैर नही है. और भाजपा ने अपने रवैया नही बदला है तो खैर नही है.