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युवा आईपीएस ने लिखी मार्मिक कहानी, पुस्तक, गणित और जीवन!
पढ़ने का शौक नहीं था। पढ़ाई शुरू तो मजबूरी में की थी। आर्थिक सुरक्षा की गारंटी पढ़ाई दिखी थी। लगता था जैसे निश्चिंत हो जाऊंगा। पर न चित्त की शांति सिर्फ अर्थ से नहीं आती। अपितु अर्थ से तो नहीं ही आएगी यह निश्चित है। मजबूरी भी शौक को जन्म देती है। शौक हमेशा रिहायशी नहीं होते है। आम भी हो सकते है। बहुत साधारण बहुत हल्के बिना किसी टशन वाले। टशन वाले शौकों का भी अपना अलग महत्व होता है। पढ़ाई शौक कब बन गई ये पता ही नहीं चला। पर इतना समझ आया था ये अच्छी चीज है। स्वयं का विस्तार आप कैसे करेंगे। दिमाग के चक्षु कैसे खुलेंगे। शौक से ? अगर शौक ऐसे है जो आपका , आपके विचारों का आपके व्यक्तित्व का विस्तार करेंगे तो ये वाकई लाजवाब है । पढ़ाई भी एक ऐसा हल्का शौक है बिना किसी तामझाम बिना किसी खर्च बिना किसी दूसरे की मदद लिए आप पूरा कर सकते है। और ये आपका विस्तार करेगी यह भी निश्चित है।
पढ़ना जब शौक बनता है तो वो अध्ययन में परिवर्तित हो जाता है। पहले गणित का अध्ययन ही सारा अध्ययन था। गणित का अपना भोकाल बाकी सब विषयों पर भारी था। गणित का अध्ययन अपनी मातृ भाषा अर्थात हिंदी में किया। जब हिंदी में गणित को सीखा तो गणित ने सिर्फ गुणा भाग जोड़ घटना नहीं सिखाया। अपने आसपास का वातावरण, समाज , व्यावहारिकता दिखाई।
गणित ने संख्याएं दी। संख्याओं के समूह दिए। संख्याओं को जोड़ने घटाने गुणा भाग जैसे नए दृष्टिकोण दिए। वास्तविक और प्राकृतिक में अंतर सिखाया। भिन्नताएं भिन्न के माध्यम से दिखाई। पूर्ण की परिभाषा बताई , पूर्ण से परिमेय की उत्पत्ति दी। जो अपरिमेय (irrational) है वह भी वास्तविक है, उसका भी अस्तित्व है। वास्तविकता का भी विस्तार संभव है यह बताया। वास्तविक मै काल्पनिक जोड़ना सिखाया और उसके परे समिश्र (complex) बनाया। कल्पना को ध्रुव पर उतारा। सापेक्ष और निरपेक्ष मान दिए। निरपेक्ष मान ने सकारात्मकता का अहसास कराया। प्रमाण मांगना सिखाया। प्रमेय बनाना सिखाया। सम विषम का महत्व समझाया। धारणाएं बनाना आया। उनका विश्लेषण करना सिखाया। निष्कर्ष पर पहुंचाया। सिद्धांतों का निर्माण कराया और जीवन में उनकी जरूरत बताई। अनंत की कल्पना दी। कल्पना को अनंत तक पहुंचाया। संख्याओं को संरचनाओं मै बदल के दिखाया। संरचनाओं ने पूरा आकाश समझाया। ग्रहण का लगना देखा। वर्ष की सीमा निर्धारित की।
संख्याओं के साथ साथ सब कुछ समीकरण मै दिखने लगा था। क्या चर है क्या अचर है । चर बदलता है स्थिर नहीं है। स्थिरता शून्य है अर्थात अचर है। बदलते चर ने स्वाधीन और पराधीन में अंतर सिखाया। स्वाधीन वह है जो अपने महत्व के लिए किसी और पर निर्भर ना हो। उसका मान तो निश्चित है किसी और के बदलने से वह नहीं बदलेगा। इससे समझ आया व्यापक स्थिरता से कैसे स्वाधीनता की तरफ बढना है। पराधीन चर ने अपने आसपास के लोगों अपने वातावरण के महत्व को समझाया। आप कितने भी स्थिर क्यों ना हो आपके मान में औरों का योगदान होना ही है। पर आपको उनके अधीन नहीं होना है। आपको जैसा परिवेश जैसा संस्कार मिलेगा उसका असर दिखेगा दिखना भी चाहिए।
चर तो चिन्ह है चिन्ह का इतना व्यापक महत्व दिखा जैसे सब कुछ चिन्हों का ही तो खेल है। आपका चिन्ह मेरा चिन्ह। चर चिन्ह ने मानव जीवन का बहुत हिस्सा समझाया। चर अचर के समीकरण समझे तो समाज के समीकरण जल्दी समझ आए, जीवन में चिन्हों की उपयोगिता दिखी। चिन्हों ने सामाजिक जीवन के राजनीतिक तौर तरीके आसानी से समझाए। समानता असामनता जैसे सामाजिक मुद्दे बीजगणित ने बहुत पहले ही दिखा दिए थे। जब हर समीकरण में समता (equality) का उपयोग किया तो समता की जरूरत समाज में दिखी।सर्वसमिका जैसी समता की कल्पना ने समाज के सभी वर्गो, सभी अंगों, सभी हिस्सों के मान एक जैसे होने और हमेशा के लिए होने की सत्यता को दिखाया।
त्रिकोणमिति तो सबसे पसंदीदा थी। उसमे भी समरूप त्रिभुज ही परम सुन्दरता की कल्पना थी। जिसको देख के निशब्द हो गए वो समरूप था। बिंदु से भुज कैसे बनाना है। भुजाओं को कैसे उपयोग करना है कितने कोण पर रखना है। भुजा और कोणों के अनुपातो ने ज्या कोज्या स्पर्शज्या (sine cosine tangent) को जन्म दिया। त्रिभुज के तीनों भुज जैसे तीन मित्र थे। जिसकी जिससे जितनी बनती वो उतने कोण पर रहा पर साथ रहा। तीनो अपने अपने अंतर्मन में एक दूसरे से आंतरिक कोण पर टिके रहे पर जिसने साथ छोड़ा वो बहिष्कोण पर बहिष्कृत हुआ। त्रिभुज सबसे कम भुजाओं वाला बंद घिरा हुआ था। बहभूज के आगे कुछ नहीं था। पर जो त्रिभुज ने किया वो अद्भुत था, त्रिभुज ने मापन नापन में नए आयाम स्थापित किए। त्रिकोणों के सहारे मापन की नई स्थापना हुई जिसने बहुमंजिला इमारतों से लेकर दुनिया के सबसे जटिल आकर बनाने में सर्वेक्षण और योजना बनाना आसान किया।
हम नाप सकते है हम माप सकते है इस सोच की ताकत त्रिकोणमिति बनी। कितना भी दूर हो मेरा लक्ष्य कितनी बाधाएं क्यों ना हो , पर हम अपना रास्ता उसकी दिशा दूरी निर्धारित करेंगे, योजना बनाएंगे। समकोण का उपयोग करेंगे, अपना आधार मजबूत करेंगे ,लक्ष्य को लम्ब का दंब नहीं भरने देंगे और उसे अपने कर्ण से भेद देंगे। सम बाहू विषम बाहू समद्विबाहु सबका अलग अलग उपयोग करेंगे। शीर्ष से मध्य तक माध्यिका पर जाएंगे। आंतरिक स्तर पर केंद्रक अतः केंद्र परिकेंद्र स्थिरता प्रदान करेंगे।
भुज और कोण की अनुपात ज्या ने पूरी ज्यामिति का भार लिया। बिंदु से रेखा, रेखा से भूतल और भूतल से लेकर घन जैसे ठोस तक पहुंचाया। ज्यामिति ने सम्पूर्ण विश्व को आकृतियों में तोड़ा। आकृतियों के आपसी संबंध, उनकी संरचना , उनमें समरूपता दिखाई। जैसे सरल रेखा ने सरल जीवन की कल्पना को सजीव किया। तब से लेकर आज तक ऐसा लगता है जैसे किसी कम प्रवणता (स्लोप) वाली सरल रेखा पर चलने का सपना पूरा नहीं हो पाया हो।
सरल रेखाओं को आपस में उलझाया तो वक्र जैसे वृत्त, दीर्घवृत्त, परवलय(parabola) दिखाई दिए। वक्र (curve)सीधा सरल नहीं था पर नियंत्रण का भी अभाव नहीं था। वृत्त का केंद्र था जो वृत्त को बांध के रखता था। दीर्घ वृत्त को दो नाभियों (focus) ने बांधा। परवलय अपनी नाभि (फोकस) और नियता (directrix) से बराबर दूरी पर रहा। वृत्त ने स्वयं को परिधि में पिरोना बताया। अपने अंतों को जोड़ना सिखाया। वक्रों की स्पर्श रेखाओं ने छूना सिखाया।
सब कुछ आकृतियों में दिखने लगा। मन में बनी इन आकृतियों को दर्शाना ज्यामिति ने सिखाया। रेखा, वृत्त, बेलन, शंकु, ठोस, घन, जैसे तमाम दोस्तों ने विश्व की किसी भी संरचना को सरल रूप में देखना आसान किया। संरचनाओं को अंदर से समझा जैसे वृत्त को केंद्र से समझा तो वृत्त अपनी संपूर्णता में समझ आया। अर्थात चीज़ों को उनके मूल में समझने के लिए अंदर से समझना आवश्यक है यह समझ आया। आकृतियों के आकार और उनके भार में संबंध देखा। आकार दिखता है भार होता है। भार आकार के अनुरूप होता है। आकार आवरण जैसा है भार आपके महत्त्व जैसा है। महत्व बढ़ाना है आकार को नियंत्रित रखना है।
गणित ने संचालन सिखाया। जो हम देख रहे है वो किसी नियम से संचलित होता है यह समझ आया। गणित के नियम की महत्वतता समझी तो राज्य के कानून का पालन करना जरूरी लगा। विधि और गणित में संबंध दिखा। गणित ने मानना सिखाया। मान्यताओं को आधार देकर परिणामों से फलीभूत किया। गणित ने अदिश से सदिश बनाया। परिमाण के साथ दिशा का समावेश किया। दिशाहीन होने से बचाया।
इधर संख्या पद्धतियों ने एक ही संख्या को अलग अलग तरीके से लिखना बताया। दशमलव , द्वयाधारी , अष्टाधारी या षोडशाधारी सबने एक ही संख्या को अलग अलग तरीके से लिखा। जिससे चीज़ों को भिन्न भिन्न नजरियों से देखना आया। गणित की सबसे बड़ी उपलब्धि यही रही की मुझे देखना सिखाया कई चस्मो से, कई नज़रों से, नजरियों से। नजरियों, समानताओं और समरूपता से खेलते खेलते नई कहानियां बनाना उनको देखना समझ आया। दुनिया को दूसरे तीसरे चौथे कई नजरियों से देखा अपने नहीं दूसरे के नजरिए से देखा तब कुछ ज्यादा समझ आया। उस दूसरे के प्रति सहानुभूति तब आई। किसी चीज को पूरा समझने के लिए आपको कई दृष्टिकोण चाहिए होते है। गणित ने उन दृष्टिकोणों को विकसित करवाया। जिससे समझ बढ़ी। नए चीज़ों सीखने को आतुर हुए। समझ की प्रकृति और समझ की मूल तक गए। जिससे चीजो की उनकी सूक्ष्मता में समझा। नए दृष्टिकोणों ने मस्तिष्क को और सरल और उदार और सहनशील बनाया।
गणित ने संख्या पकड़ना उससे खेलना और फिर जो होता है उसको देखना सिखाया। गणित ने दिमाग खोला चीज़ों को जोड़ना सिखाया।संख्या जोड़ते जोड़ते कल्पनाएं जोड़ने की ताकत दी। विषम परिस्थितियों में एक उपकरण की तरह काम आया। एक बौद्घिक खेल की तरह मन में पनप रही पहेलियों, समस्याओं और विरोधाभासों को सुलझाया। वस्तुनिष्ठ और व्यक्तिनिष्ठ का सम्मिश्रण दिखाया। परिकल्पना और तार्किकता की सबसे सहज विधा बनकर दिखाया। गणित तब भी साथ था गणित अब भी साथ है। स्वयं के विकास का साधन तब भी था अब भी है।
पिछले कुछ दिनों हुई यात्राओं में जब कुछ पुस्तक पढ़ने को उठाई तो गणित की पुस्तकें याद आ गई। उसी क्रम में मस्तिष्क में पुरानी यादें नए कलेवर में सामने आई। जिसे सोचा आप सभी से साझा करूं।
विनय तिवारी
SP पटना सेंट्रल सिटी।
टिप्पणी: यह मेरे बचपन के तीन गुरु- पिताश्री Omprakash Tiwari, गुरु श्री Mahipal Singh Bundela और श्री बृजमोहन तिवारी @दाऊ को समर्पित है। जिन्होंने गणित के माध्यम से बहुत कुछ सिखाया। आप तीनों हमेशा स्वस्थ रहे, व्यस्त रहे, मस्त रहे ऐसी मेरी मनोकामना है।